नेताजी ही नहीं अखिलेश से भी बेहतर रिश्ता, आजम खान बोले- बिल्कुल चुनाव लड़ेंगे
जेल से लौटे समाजवादी नेता आज़म खान ने मुलायम-अखिलेश संग रिश्तों, संघर्ष, मुकदमों और अधूरे कामों और चुनाव लड़ने पर खुलकर अपनी बात कही।
Azam Khan on Mulayam Singh Yadav-Akhilesh Yadav: यूपी की सीतापुर जेल से बाहर आने के बाद समाजवादी पार्टी के संस्थापक और कद्दावर नेता आजम खान ने कहा कि सफर, संघर्ष का है और यह जारी है। उन्हें क्या मिलेगा या नहीं मिलेगा अल्लाह जानता है। लेकिन जज्बे में कमी नहीं है, हिम्मत पस्त नहीं है। आजम खान से एक साक्षात्कार में नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव से सवाल किये गए। सवाल यही था कि पिता और पुत्र दोनों से रिश्ते कैसे रहे। दोनों से अपने संबंधों पर खास तरीके से आजम खान ने अपनी बात रखी।
नेता जी से दिल के रिश्ते थे
यह मुल्क 1857 में आजाद हो चुका होता। मेरठ से निकले हुए जाले- मुरादाबाद तक जीतते हुए चले आए थे। रामपुर की ही फौज ने उनका कत्लेआम किया था। और उसके इनाम में रामपुर के नवाब को फरजंदे दिलपजीर और फरजंदे इंग्लिशिया यानी अंग्रेजों की औलाद अपने बाप की नहीं अंग्रेजों की औलाद का लक मिला था। और यह लकब अगर आपको देखना है तो आज भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का जो सेंट्रल हॉल है उसके डोम के अंदर यह लकब लिखे हुए हैं। किताबों में तो है ही इतिहास में तो है ही लेकिन वहां भी है। मलका विक्टोरिया के बराबर कुर्सी पहुंचती थी। उस वाक्य के बाद लेकिन सन 80 तक जब पहली बार मैं विधायक हुआ।
इस शहर में एक मकान पक्का नहीं था। एक का मतलब एक सिवाय उन चंद घरों के जिनकी रिश्तेदारियां नवाब से होती थी। यहां कपड़ थी और फस के छप्पर थे। आज आप देख लीजिए मैंने कुछ नहीं किया। लेकिन मैंने उनके अंदर एक एक खुद्दार इंसान को जो सोया हुआ था उसे जगा दिया था। 250 वोट मिले थे। नवाब साहब मेरे खिलाफ लड़े थे।
'पार्टी से निकाला गया था'
मैं तो पार्टी से निकाला जा चुका हूं। उसके बाद भी नहीं छोड़ी थी। घर बैठ गया था। तब भी मैं फाउंडर मेंबर था। आज भी हूं। कितने चरित्रवान लोगों के लिए निकाला गया था। कितने बड़े नेताओं के लिए, कितने बड़े समाज सुधारकों के लिए, कितने बड़े समाजवादियों के लिए निकाला गया था। कितने बड़े इतिहास पुरुषों के लिए निकाला गया था और फिर लिया भी गया था। लेकिन तब तो मुलायम सिंह थे ना। उन्हीं ने निकाला था। उन्हीं ने निकाला तो कहां शिकायत है? मुझसे ज्यादा तो उनसे किसी ने मोहब्बत भी नहीं की होगी। वो उनका हक था। और मुझे निकालना उनकी मजबूरी थी। मुझे लेना उनकी मोहब्बत थी। मुझे निकालना उनकी मजबूरी थी। उसके लिए मैं किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा और मैं चमन में चाहे जहां रहूं मेरा हक है फसले बहार में। इस चीज का कोई यहां रहूं यहां रहूं। आप मुझे वहां बिठा दें तब भी यही ड्राइंग रूम। वहां बिठा देंगे तब भी यही है। मैं चमन में चाहे जहां रहूं।
लड़ेंगे, बिल्कुल लड़ेंगे
चुनाव लड़ने के सवाल पर आजम खान ने कहा कि क्यों नहीं लड़ेंगे अब गिरे हैं तो गिरते हैं शहसवार ही मैदान जंग में वो तिफिल क्या लड़ेंगे जो घुटनों के बल चल गिरेंगे। इधर डूबे, उधर निकले सूरज का क्या है। उभरा हुआ डूब गया जमाना समझा कि ये डूब गया लेकिन इधर डूबे उधर निकला तो रामपुर फिर से लड़ेंगे।
क्या जरूरी है रामपुर से लड़ेंगे। बहुत बड़ा देश है कहीं से भी लड़ लेंगे नहीं लड़ेंगे तो लड़ा देंगे। पार्टी तो बड़ी चीज होती है। पार्टी का फैसला माना गया है। हां हमने ना हिमायत की ना मुखालिफत की। एक मोहतरमा और भी जीती थी यहां से जिन्हें हम ही लेकर आए थे। जिताया भी था। दूसरी बार हमने उनको नहीं लड़ाया फिर भी जीती थीं। लेकिन ढाई लाख वोट से हराया भी हमने ही था तो कोई शख्स अपनी जीत को हमारी हार समझने की गलती ना कर ले। अपनी इस छोटी सी जीत को जो हालात के तहत हुई है सिर्फ इसलिए कि मैं जेल में था वो मेरी हमदर्दी की जीत है अपनी जीत को ही ना समझ ले इस गलतफहमी में ना रह जाए कोई।
ऐसा कभी नहीं मैं चाहता था अखिलेश यादव लड़े उन्होंने वायदा भी किया था मुझसे। लेकिन पार्टी ने उन्हें यह मशवरा दिया कि आप वहां से ना लड़े और यह उनका बड़प्पन है कि अध्यक्ष होने के बावजूद, मुख्यमंत्री रहने के बावजूद मुलायम सिंह यादव जी का बेटा होने के बावजूद उन्होंने पार्टी की ख्वाहिश को माना। पार्टी के आदेश बिल्कुल एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह माना। मुझे उसकी कोई शिकायत नहीं है कि वो नहीं लड़े। मैं कोई शिकायत थोड़ी कर रहा हूं। आज भी नहीं कर रहा हूं। पार्टी का फैसला था। पार्टी के सर्वे में पहले भी तो हुआ था यही फैसला। तो क्या मैंने पार्टी छोड़ दी थी?
'अखिलेश यादव से भी वैसे ही रिश्ते'
ये तो मेरी अपनी मजबूरियां है कि मैं बहुत नाकारा और फिजूल का आदमी हो गया, कमजोर हो गया, बीमार हो गया। हां, लेकिन मशवरा तो दे सकता हूं, लोगों को राह भी बता सकता हूं, रास्ता भी दिखा सकता हूं। और अभी इतना भरोसा है कि लोग मेरी बात पर संजीदगी से गौर जरूर करेंगे क्योंकि मैंने यह साबित कर दिया है कि मैं सही को गलत नहीं कहूंगा और गलत को सही नहीं। अभी तो देखिए मैं 8 सात बरस से तो हूं बहुत दूर हूं। फिर वैसे भी मैं बहुत ज्यादा आना जाना मेरा नहीं था। मैं बहुत महदूद जिंदगी गुजारने वाला व्यक्ति हूं। तो जैसा था वैसी ही हूं। अगर ऐसा ही कोई मुझे कबूल कर ले तो उसका शुक्रिया। ना कर ले उससे भी ज्यादा शुक्रिया। मुझे आजादी मिल जाएगी।
'एसटी हसन की बात नहीं करेंगे'
देखिए मैं एसटी हसन की बात तो नहीं करूंगा सुधार गृह वालों की। लेकिन जिनका आपने मुरादाबाद के एमपी साहब का नाम लिया कि नहीं आएंगे उन्हें टिकट दिलवाया किसने था आपने दिलवाया जब वो एमपी हुए थे तो उनके खिलाफ टिकट इशू हो चुका था और जिनको टिकट मिला था वो गाड़ी से रवाना होकर आधे रास्ते आ चुके थे। अखबार के कोने पर लिखकर गया था मैसेज कि कुछ था ही नहीं तो उस और यह मेरे लिए पार्टी में मोहब्बत है मुखिया की मोहब्बत थी कि वहीं से गाड़ी मुड़वा कर वापस बुला ली गई उनसे फार्म वापस ले लिया गया और मौसूफ को फार्म दे दिया गया। यह याद नहीं रहा उन्हें। काश वो इसको याद रख लेते तो अपनी बहुत सी बातों के लिए और अपने अजीजों ने जो उनके हमारे लिए कहा उसके लिए थोड़े से शर्मिंदा होते। मैं उन्हें मना लाऊंगा। मना लाएंगे। फिर मैं अभी चला जाऊंगा। बाहर मिलेंगे इंशाअल्लाह मुझे रिसीव करने के लिए। खत्म कर दो गिले आज मिलकर। खैर यूं ही सही हम बुरे तुम भले।मैं आपसे सच कहता हूं मैं इस वक्त भी बहुत बीमार हूं। और मैं बहुत दिनों से बीमार हूं। मैं शायद अगर अभी ना छूटा होता तो मैं मेरे लीवर और किडनी बिल्कुल खत्म हो चुके होते और मैं फिर नहीं बच पाता। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। एक जिंदा लाश किसी से क्या शिकायत करेगी? मुझे कितने दर्द और कितनी तकलीफें हैं। मेरी उम्र ही है और मेरी तकलीफों की भी तो इंतहा है।
आप अगर हिमालय की चोटी पर इतने मुकदमे लिखकर रख देते तो पिघल कर पानी हो जाता। अगर एक बरगद के 100 साला दरख्त में आप एक संजीदा मुकदमा टांग दें लिखकर सूख जाएगा दरख्त। और मेरी टहनी में तो सैकड़ों मुकदमे हैं और वह टहनी आज भी हरी है। तनावर है और लचकेगी नहीं टूट जाएगी। लचकेगी नहीं टूट जाएगी। अभी मैं तो अभी इस पोजीशन में ही नहीं हूं कि मैं ठीक से चल सकूं। देखा था आपने मैं कैसा लड़खड़ाता आ रहा था। मेरे पैर तो चलना भूल गए हैं।
पांच साल जो शख्स एक तख्त पर बैठा और लेटा रहा हो। तो पैरों की आदत खत्म हो गई है। मैं तो प्रैक्टिस कर रहा हूं चलने की। पैर उठना भूल गए हैं तो टकरा जाता हूं। ऊंची नीची जगह से कोई नहीं मुकद्दर के फैसले थोड़ी बदले जाते हैं। कातिबे तकदीर ने जो लिख दिया वो लिख दिया तो उसे खुशी से उसे कबूल कर लिया है। ये वक्त मुझे तो गुजारना ही था। मैं रोकर गुजारता या खुशी से गुजार देता तो उसको अल्लाह की रजा मानकर गुजारती।आगे होगा आगे भी गुजार दूंगा जिया तो जिंदा आ जाऊंगा मरा शहीद का जनाजा आ जाएगा।