बिहार चुनाव में किसका नुकसान करेंगे नीतीश कुमार के 'एक्स'?

कभी नीतीश के करीबी रहे आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर से हाथ मिला लिया। पूर्व सांसद उदय सिंह को उन्होंने अपनी पार्टी की कमान सौप दी। इसके क्या सियासी मायने हैं?;

Update: 2025-05-19 14:35 GMT
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने रविवार (18 मई) को अपनी पार्टी का विलय प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज में करा लिया

प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह ( पूरा नाम रामचंद्र प्रसाद सिंह) दोनों में एक समानता है। दोनों नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) में अहम पदों पर रह चुके हैं। आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो प्रशांत किशोर थे उपाध्यक्ष। ये दोनों उस समय नीतीश कुमार के लेफ्ट-राइट हैंड माने जाते थे। पार्टी के बड़े फैसलों में उनकी खूब चलती थी।

कभी नीतीश के साथ, अब ख़िलाफ़

लेकिन अब समय का चक्र ऐसे घूमा कि अब दोनों ही नेता नीतीश कुमार के खिलाफ ताल ठोकने उतर पड़े हैं। दोनों ने हाथ मिला लिया है और वो भी चुनावी साल में। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हुए एक अहम राजनीतिक घटनाक्रम में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज में आरसीपी सिंह की पार्टी का विलय हो गया है।

आरसीपी सिंह कभी नीतीश कुमार के लेफ्टिनेंट माने जाते थे।नीतीश ने पार्टी उनको सौंपी हुई थी और कहा जाता है कि आरसीपी सिंह ने जेडीयू के संगठन को खड़ा करने में अहम भूमिका भी निभाई। लेकिन नीतीश से मतभेद के बाद उन्होंने बीजेपी का दाम थाम लिया।

मोदी सरकार में केंद्र में कुछ समय मंत्री भी रहे, लेकिन जब नीतीश वापस बीजेपी के साथ लौट आए तो वहां आरसीपी सिंह की प्रासंगिकता खत्म हो गई। हाशिये पर पड़े आरसीपी सिंह ने उसके बाद अपनी पार्टी 'आसा' (आप सब की आवाज) बनाई लेकिन बकौल आरसीपी सिंह, "निर्दलीय रहने से किसी का फायदा नहीं होता इसलिए जनसुराज के साथ जुड़े।"

पीके के साथ आरसीपी, गेम प्लान क्या है?

लेकिन क्या सिर्फ यही वजह होगी कि आरसीपी सिंह को अपनी पार्टी का प्रशांत किशोर की पार्टी में विलय कराना पड़ा? प्रशांत किशोर की पार्टी तो अभी शुरू ही हुई है। फिर ऐसी विलय के पीछे क्या वजह हो सकती है?

इस पर 'द फेडरल देश' ने बात की पटना में वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय से। उन्होंने कहा, "दोनों खुद को नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं। प्रशांत किशोर ने बिहार में बदलाव यात्रा भी की। पटना के गांधी मैदान में बदलाव रैली भी की थी लेकिन वो फ्लॉप रही। मैदान में कुर्सियां खाली रहीं। विधानसभा की चार सीटों पर उन्होंने उपचुनाव लड़ा लेकिन वो भी हार गए। खाता भी नहीं खुला। लेकिन उनकी घोषणा है कि वो बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि अभी तक कोई पार्टी अकेले चुनाव नहीं लड़ी।"

पांडेय आगे कहते हैं, "प्रशांत किशोर को ये समझ में आ गया है कि अकेले इतनी बड़ी लड़ाई आसान नहीं है। अपने साथ वो नए लोगों को भी जोड़ रहे हैं। रविवार को उन्होंने आरसीपी सिंह को अपने साथ जोड़ा। अब सोमवार को पूर्णिया से सांसद रहे उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को उन्होंने जनसुराज का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है जिनका अपना ठीकठाक असर माना जाता है।"

किसको नुकसान पहुंचाएंगे?

तो क्या ब्यूरोक्रेट से नीतीश की बदौलत नेता बने रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) और नीतीश के लिए चुनावी रणनीतियां बनाते-बनाते कभी उनकी पार्टी के उपाध्यक्ष बन बैठे प्रशांत कुमार अब नीतीश का ही सियासी गेम बिगाड़ना चाहते हैं?

इस प्रश्न पर 'द फेडरल देश' से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय ने कहा, "चूंकि आरसीपी सिंह उसी कुर्मी समाज से आते हैं जिससे सीएम नीतीश कुमार आते हैं तो संभव है नुकसान वो नीतीश कुमार को करें। आरसीपी सिंह का एक समय नीतीश सरकार और ब्यूरोक्रेसी में बड़ा दबदबा था। बिहार में कुर्मी समाज की लगभग 2% से 2.5% आबादी है। कुर्मी समाज का वो लगभग 20% वोट झटक सकते हैं बाकी का 80% कुर्मी वोट तो नीतीश को ही जाएगा।"

बिहार में कुर्मी का कहां-कहां असर?

बिहार में कुर्मी समाज की सबसे ज्यादा आबादी नालंदा जिले में है, जहां से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आते हैं। लगभग पूरा नालंदा जिले में कुर्मी रहते हैं। इसके अलावा

भागलपुर, वैशाली और रोहतास जिले में भी कुछ कुर्मी आबादी है।

लेकिन क्या कुर्मी समाज अपने सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार को छोड़कर आरसीपी सिंह का साथ देगा?, इस पर अरुण पांडेय कहते हैं, "लालू की तरह नीतीश भी बड़े नेता हैं लेकिन उनकी अपनी जातीय पहचान भी है। तो जाहिर है कि नीतीश उनके सुप्रीम लीडर हैं। लेकिन कुर्मियों के बीच आरसीपी सिंह भी जाना-पहचाना चेहरा हैं, ऐसे में कोई स्वजातीय उन्हें खदेड़ तो नहीं देगा।"

इसका मतलब ये हुआ कि प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह की जोड़ी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने ही गढ़ में पसीना बहाने पर मजबूर कर सकती है। यानी नीतीश कुमार के मुख्य वोट बैंक को ये लोग हिला सकते हैं और नालंदा में नीतीश के गढ़ पर दबाव बढ़ा सकते हैं। 

क्या नीतीश को परेशान होना चाहिए?

प्रशांत किशोर, आरसीपी सिंह और उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह की यह तिकड़ी नीतीश कुमार को निशाना बनाएगी लेकिन क्या इससे नीतीश कुमार को परेशान होने की जरूरत है? इस सवाल पर पटना से वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय ने द फेडरल देश से कहा,"इस बार नीतीश के सामने 2020 के चुनाव जैसी चुनौतियां नहीं हैं। चिराग पासवान भी उनके साथ हैं जिनकी वजह से पिछले चुनाव में वो नंबर तीन पर पहुंच गए थे। मांझी भी साथ हैं। कुशवाहा भी साथ हैं। बिहार में कुशवाहा की आबादी करीब 6% है। इसलिए अभी तो मुख्य लड़ाई एनडीए और महागठबंध के बीच ही होती दिख रही है।"

पांडेय आगे कहते हैं, "केंद्र सरकार का जाति जनगणना का फैसला और ऑपरेशन सिंदूर को भी एनडीए भुनाने की कोशिश करेगी तो कहा जा सकता है कि फिलहाल नीतीश का अपर हैंड नजर आता है।"

पहले भी हुई जुगलबंदी

वैसे आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर एक-दूसरे के लिए अपरिचित नहीं हैं। ये दोनों पहले भी जेडीयू में रहने के दौरान साथ काम कर चुके हैं। बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में जब महागठबंधन में आरजेडी और जेडीयू एक साथ आए थे। लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने बीजेपी को रोकने के लिए हाथ मिला लिया था, तो उससे पहले आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर साथ काम करने लगे थे। ये दोनों नीतीश कुमार और जेडीयू की ताकत और कमजोरी, दोनों से भलीभांति परिचित हैं।

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