गृहमंत्रालय से स्पीकर तक, बिहार में बीजेपी ने बना लिया पूरा दबदबा?
2025 में बीजेपी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी और गृहमंत्रालय व स्पीकर जैसे अहम पद अपने पास कर लिए। क्या यह पावर शेयरिंग है या बिहार की राजनीति में बड़ा पावर शिफ्ट?
Bihar BJP Politics: 20 नवंबर को बिहार की राजनीति में एक बार फिर महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब नीतीश कुमार ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नीतीश के साथ दो ऐसे चेहरे भी शपथ मंच पर दिखे जो बिहार की राजनीति में पहले से पहचाने जाते रहे हैं। सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा। दोनों को क्रमशः डिप्टी सीएम बनाया गया। लेकिन वास्तविक बहस का मुद्दा इन नियुक्तियों से ज्यादा वो सवाल था, जो शपथ ग्रहण के बाद राजनीतिक गलियारों में तेजी से तैरने लगा—क्या नीतीश कुमार गृहमंत्रालय अपने पास रखेंगे या इस बार सत्ता का समीकरण कुछ और कहानी कहेगा?
गृहमंत्रालय किसके पास जाएगा—पहला बड़ा सवाल
लंबे समय से बिहार में गृहमंत्रालय मुख्यमंत्री के पास ही रहने की परंपरा रही है। सुरक्षा व्यवस्था से लेकर प्रशासनिक नियंत्रण तक, यह विभाग सत्ता का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। इसीलिए यह माना जा रहा था कि चाहे कुछ भी हो, नीतीश कुमार इस विभाग को अपने पास ही रखेंगे।लेकिन जब नीतीश ने अचानक यह विभाग छोड़कर इसे बीजेपी के नेता और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को सौंप दिया, तो राजनीति का पारा चढ़ गया।
यह साफ हो गया कि सत्ता के केंद्र में इस बार कुछ नया समीकरण बन रहा है। गृहमंत्रालय, जिसे हमेशा सीएम का विभाग कहा गया, पहली बार इतने बड़े स्तर पर बीजेपी के पास गया। इससे विपक्ष के साथ-साथ कई राजनीतिक विश्लेषकों के मन में भी यह सवाल खड़ा हो गया—क्या बिहार में बीजेपी ने चुपचाप सत्ता का पावर बैलेंस अपने पक्ष में खींच लिया है?
स्पीकर का पद—दूसरा बड़ा विवाद
गृहमंत्रालय के बाद अगला बड़ा सवाल यह था कि विधानसभा स्पीकर का पद किस पार्टी के हिस्से आएगा। यह पद भले सरकार का हिस्सा न माना जाए, लेकिन विधान प्रक्रिया में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।इस पद को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच तनातनी की खबरें लगातार सामने आ रही थीं। जेडीयू यह पद अपने खाते में लेना चाहती थी क्योंकि 2020 में संख्या बल कम होने के बावजूद सत्ता का नियंत्रण उसके पास बना रहा था। लेकिन इस बार समीकरण बदल चुके थे। जब प्रेम कुमार ने स्पीकर पद के लिए नामांकन किया, तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो गई—स्पीकर का पद भी बीजेपी के पास चला गया।इस तरह दो बड़े पद—गृहमंत्रालय और विधानसभा अध्यक्ष—दोनों बीजेपी के हिस्से में गए। स्वाभाविक रूप से सवाल उठने लगे कि क्या जेडीयू ने अपनी ताकत कम कर दी है? क्या नीतीश इस बार दबाव में हैं या यह सब एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है?
2025 के नतीजों ने बदला पूरा गणित
इस सवाल का जवाब समझने के लिए विधानसभा के नए समीकरणों को देखना जरूरी है। 2025 के चुनाव नतीजों में बीजेपी 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि जेडीयू 85 सीटों पर रही। सीटों में अंतर बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन राजनीतिक मायने बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। सबसे बड़ा दल होने के नाते स्वाभाविक है कि बीजेपी सरकार में ज्यादा हिस्सेदारी चाहेगी।लेकिन 2020 में स्थिति बिल्कुल उलट थी।तब जेडीयू के पास 43 सीटें ही थीं, फिर भी गृहमंत्रालय सीएम के पास था और पूरी सत्ता पर नीतीश का नियंत्रण था।इसलिए तुलना की जा रही है—जब 43 सीटों पर जेडीयू इतनी मजबूत थी, तो 85 सीटों पर वह कमजोर क्यों दिख रही है?
तो क्या नीतीश ने दबाव में पद छोड़े?
यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि जेडीयू ने इस बार दो बड़े पद बीजेपी को सौंप दिए। लेकिन कहानी में एक और परत है। जेडीयू के भीतर कुछ ऐसे चेहरे और समूह सक्रिय बताए जाते हैं, जो मानते हैं कि विपक्ष को कमजोर करने के लिए बीजेपी के साथ मजबूत तालमेल जरूरी है। 2024–25 के आसपास देश की राजनीति बड़े बदलावों से गुजर चुकी है, और राष्ट्रीय परिदृश्य में बीजेपी पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक है। ऐसे में जेडीयू के कुछ रणनीतिकार मानते हैं कि बीजेपी से टकराव के बजाय सहयोग बेहतर रहेगा।
नीतीश कुमार खुद भी पिछले कुछ वर्षों में कई राजनीतिक उलटफेर कर चुके हैं—एनडीए, महागठबंधन और फिर एनडीए। इस वजह से पार्टी में यह संदेश देने की आवश्यकता भी है कि इस बार स्थिरता और संतुलन बनाए रखना जरूरी है।इसलिए यह तर्क दिया जा रहा है कि नीतीश ने स्वेच्छा से ये पद सौंपे ताकि गठबंधन में किसी तरह का अविश्वास न पनपे।
क्या यह रणनीति नीतीश की मजबूरी है?
जेडीयू की 85 सीटें निश्चित रूप से 2020 की तुलना में बेहद मजबूत स्थिति हैं।लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि बीजेपी 89 सीटों के साथ उससे ऊपर है।सबसे बड़ा दल होने के नाते बीजेपी का दावा अधिक स्वाभाविक माना जा रहा है।इसके साथ ही जेडीयू के कई नेता और समूह बिहार में विपक्ष को कमजोर रखने की रणनीति के समर्थक हैं।यह भी माना जा रहा है कि गृहमंत्रालय और स्पीकर पद देने से जेडीयू ने एक संदेश यह भी दिया कि वह सरकार में "झगड़े की राजनीति" नहीं, बल्कि संतुलन बनाने की राजनीति करना चाहती है।
बीजेपी की रणनीति—साइलेंट लेकिन असरदार
बीजेपी ने बिना किसी हंगामे के दो सबसे महत्वपूर्ण पद अपने पास कर लिए।जहां 2020 में वह कम सीटों के बावजूद "छोटा साझेदार" दिखाई देती थी, वहीं 2025 में वह "वास्तविक शक्ति केंद्र" बनकर उभरी है।गृहमंत्रालय मिलने से प्रशासनिक नियंत्रण और कानून-व्यवस्था जैसे बड़े मसले बीजेपी के हाथ में आ गए हैं।स्पीकर पद मिलने से विधायी प्रक्रिया में भी उसका प्रभाव बढ़ गया है।
बीजेपी ने इस रणनीति में सार्वजनिक रूप से आक्रामक रुख नहीं अपनाया—यह उसका सबसे बड़ा राजनीतिक कौशल माना जा रहा है।चुपचाप, धीरे-धीरे और बिना किसी विवाद के उसने दो बड़े पद हासिल किए और संदेश भी दिया कि सरकार में उसकी भूमिका पहले से कहीं अधिक होगी।
नीतीश की राजनीति—समझौता या गणित?
नीतीश कुमार को देश की राजनीति में "पलटनिहा" कहकर विरोधी चाहे जैसे व्याख्या करें, लेकिन यह सच है कि उन्होंने हमेशा परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालकर सत्ता में बने रहने का कौशल दिखाया है। 2025 में 85 सीटें लाने के बावजूद अगर उन्होंने बीजेपी को ये बड़े पद दिए, तो इसके कई राजनीतिक अर्थ हो सकते हैं—
स्थिर सरकार की छवि बनाए रखना
लगातार राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बाद नीतीश शायद नहीं चाहते कि सरकार में अस्थिरता का माहौल बने।
बीजेपी के साथ मजबूत तालमेल
आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति केंद्र द्वारा प्रभावित होगी। ऐसे में केंद्र की पार्टी के साथ निकटता फायदे का सौदा हो सकती है।
विपक्ष की आवाज को कमजोर करना
अगर जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते मजबूत रहते हैं, तो विपक्ष के लिए कोई बड़ा मोर्चा खोल पाना मुश्किल होगा।
नीतीश की भविष्य की भूमिका
राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश का भविष्य भले अनिश्चित हो, लेकिन बिहार में स्थिर सत्ता उन्हें हमेशा मजबूत स्थिति में रखती है।
क्या यह पावर शेयरिंग या पावर शिफ्ट?
गृहमंत्रालय और स्पीकर का पद बीजेपी को जाने से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह पावर शेयरिंग है या पावर शिफ्ट? कई विश्लेषक मानते हैं कि यह दोनों का मिश्रण है।बीजेपी ने सत्ता तंत्र पर अपनी पकड़ मजबूत की है, जबकि नीतीश ने गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखने के लिए यह रणनीतिक कदम उठाया है।एक बात निश्चित है—2025 का यह नया समीकरण बिहार की राजनीति में आने वाले कई बड़े बदलावों का संकेत है।बीजेपी की बढ़ती ताकत, जेडीयू की बदलती प्राथमिकताएं और नीतीश की संतुलनकारी राजनीति आने वाले वर्षों में बिहार का राजनीतिक स्वरूप तय करेगी।