नीलांबुर उपचुनाव: राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने की लड़ाई
नीलांबुर उपचुनाव राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह न केवल क्षेत्रीय मुद्दों पर आधारित है, बल्कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच की रणनीतियों और गठबंधनों को भी उजागर करता है। 19 जून को होने वाले मतदान के परिणाम से यह स्पष्ट होगा कि क्षेत्रीय राजनीति में किसका दबदबा है।;
नीलांबुर विधानसभा क्षेत्र में 19 जून को होने वाले उपचुनाव के लिए चुनाव प्रचार समाप्त हो गया है। यह चुनाव न केवल क्षेत्रीय राजनीति के लिए, बल्कि राज्य की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मुख्य मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार आर्यदान शौकत, एलडीएफ के उम्मीदवार एम. स्वराज और निर्दलीय उम्मीदवार पीवी अनवर के बीच है।
सीपीआई(एम) के राज्य सचिव एमवी गोविंदन के 1977 में आरएसएस के साथ कथित सहयोग पर दिए गए बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने एक इंटरव्यू में में कहा था कि अपरिहार्य परिस्थितियों में, हम आरएसएस के साथ भी खड़े हुए हैं, जो कि इमरजेंसी के बाद की स्थिति की ओर इशारा करता है। इस टिप्पणी ने वामपंथी खेमे में असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है। हालांकि, गोविंदन ने बाद में स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी का आरएसएस के साथ कोई राजनीतिक संबंध नहीं है और उनके शब्दों को संदर्भ से बाहर प्रस्तुत किया गया है।
कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस ने आर्यदान मोहम्मद के पुत्र आर्यदान शौकत को उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया है। शौकत की उम्मीदवारी को उनके पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, शौकत ने 2016 में अनवर से हार का सामना किया था, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बनाने का निर्णय लिया। इस निर्णय के बाद, अनवर ने शौकत की उम्मीदवारी पर असंतोष व्यक्त किया और चेतावनी दी कि यदि उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो वह अपना पक्ष बदल सकते हैं।
निर्दलीय उम्मीदवार की भूमिका
पिछले चुनावों में सीपीआई(एम) के समर्थन से विधायक रहे पीवी अनवर ने हाल ही में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जॉइन की है और उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से शौकत की उम्मीदवारी पर पुनर्विचार करने की अपील की थी। हालांकि, कांग्रेस ने शौकत को ही उम्मीदवार बनाया है, जिससे अनवर ने नाराजगी व्यक्त की है और चेतावनी दी है कि वह चुनाव में भाग ले सकते हैं।
आरोप-प्रत्यारोप
एलडीएफ और यूडीएफ के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। एलडीएफ ने यूडीएफ पर जमात-ए-इस्लामी और वेलफेयर पार्टी से समर्थन प्राप्त करने का आरोप लगाया है, जिसे उन्होंने साम्प्रदायिक राजनीति के रूप में देखा है। वहीं, विपक्षी नेता वीडी सतीसन ने एलडीएफ पर साम्प्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह चुनाव यूडीएफ की राजनीतिक पुनरुत्थान की शुरुआत है।