दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का ट्रायल: उम्मीद से हकीकत तक, उठे सवाल
दो बार कृत्रिम वर्षा का प्रयास, लेकिन नतीजे उम्मीद के विपरीत; विशेषज्ञ बोले “महंगी तकनीक का इस्सेतेमाल करने में जल्दबाजी क्यों की गयी ? ''
Cloud Seeding And Other Ways To Control Pollution: दिल्ली में मंगलवार को कृत्रिम वर्षा कराने के लिए दो बार क्लाउड सीडिंग का ट्रायल किया गया। इस प्रयोग को लेकर दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने शुरुआती तौर पर उत्साह जताया और इसके सफल होने की उम्मीद भी की।
लेकिन शाम होते-होते नतीजे उम्मीदों के विपरीत निकले और यह मुद्दा राजनीतिक बहस में बदल गया। सवाल उठने लगे कि जब प्रयोग की सफलता को लेकर पहले से अनिश्चितता थी, तो इतनी महंगी तकनीक पर करोड़ों रुपये क्यों खर्च किए गए? आखिर दिल्ली के करदाताओं की मेहनत का पैसा यूं ही क्यों बहाया गया?
द फ़ेडरल देश ने इस पर कुछ पर्यावरण विशेषज्ञों से बातचीत की, ताकि यह समझा जा सके कि जब क्लाउड सीडिंग की सफलता दर बेहद कम है, तो वायु प्रदूषण से निपटने के और कौन-से उपाय अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
क्लाउड सीडिंग से पहले अध्ययन ज़रूरी था
सेंटर फॉर साइंस की रिसर्चर शाम्भवी शुक्ला का कहना है कि दिल्ली सरकार को क्लाउड सीडिंग कराने से पहले गहन अध्ययन करना चाहिए था।
उनके अनुसार, “इस तकनीक के सफल होने के लिए वातावरण में कम से कम 50 प्रतिशत नमी आवश्यक होती है। तभी बारिश की संभावना बनती है, लेकिन तब भी कोई गारंटी नहीं होती।”
शाम्भवी शुक्ला के अनुसार एक बार की क्लाउड सीडिंग की लागत 50 से 60 लाख रुपये के बीच होती है। इतनी महंगी तकनीक का ट्रायल इतनी जल्दबाज़ी में क्यों किया गया, यह समझ से परे है। कई देशों में इसका प्रयोग किया गया है, लेकिन वहां भी यह लाभप्रद साबित नहीं हुआ।
उन्होंने याद दिलाया कि भारत में भी इस तकनीक का प्रयोग लगभग 50 साल पहले किया जा चुका है।
उनका मानना है कि दिल्ली सरकार प्रदूषण को लेकर गंभीर दिखना चाहती है, जो उचित है, लेकिन इसके लिए इतनी महंगी विधि अपनाने का औचित्य नहीं बनता।
“क्लाउड सीडिंग को आपातकालीन उपाय माना गया है, जबकि दिल्ली-एनसीआर में पहले से ही GRAP (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) जैसे तंत्र मौजूद हैं। उपाय पहले से तय हैं, लेकिन उनका सही अनुपालन नहीं हो रहा।
प्रदूषण पर नियंत्रण नामुमकिन नहीं, पर पालन कमजोर
शाम्भवी शुक्ला का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या लाइलाज नहीं है, बल्कि इसके उपायों का ठीक से पालन नहीं किया जा रहा।
उन्होंने बताया कि पिछले दो दिनों से डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) का डेटा अपडेट नहीं किया गया है, जो चिंताजनक है। कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिनमें दिखा कि मॉनिटरिंग स्टेशनों के आसपास अधिक छिड़काव कराया जा रहा है, जिससे वास्तविक आंकड़े प्रभावित हो रहे हैं। नतीजतन, प्रदूषण कम नहीं हो रहा, केवल डेटा में सुधार दिखाया जा रहा है।
GRAP के निर्देशों का पालन ही असली चुनौती
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की समस्या को देखते हुए CAQM (Commission for Air Quality Management) का गठन किया गया और इसी संस्था ने GRAP के दिशानिर्देश तैयार किए।
शाम्भवी शुक्ला कहती हैं, “हमने भी दिल्ली सरकार को कई सुझाव दिए हैं। लेकिन GRAP के निर्देश केवल अक्टूबर से लागू किए जाते हैं और यह जांच नहीं होती कि जमीनी स्तर पर उनका पालन हो भी रहा है या नहीं।”
उनके अनुसार, दिल्ली में वाहनों का उत्सर्जन प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है, परंतु इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे।
इसके अलावा, निर्माण स्थलों पर लगातार धूल उड़ने से भी हवा में डस्ट पार्टिकल्स की मात्रा बढ़ी हुई है। निर्माण स्थलों पर नियमित पानी का छिड़काव होना चाहिए, लेकिन यह हर जगह नहीं हो रहा। नतीजा यह है कि प्रदूषण के चलते बीमार होने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
नियम हैं सख्त, नीयत होनी चाहिए पक्की
अंत में शाम्भवी शुक्ला ने कहा, “नियम पर्याप्त सख्त हैं। अगर उनका पालन पूरी ईमानदारी से किया जाए तो प्रदूषण पर नियंत्रण पाना नामुमकिन नहीं। लेकिन इसके लिए किसी भी सरकार को राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर दृढ़ निश्चय दिखाना होगा।”