तब 10 हजार की मौत हुई थी आज जीरो, तूफानों को कैसे झेल जाता है ओडिशा

भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा ऐसा राज्य है जो सबसे अधिक चक्रवातों का सामना करना है। जगतसिंह पुर जिले की तबाही की चर्चा आज भी होती है। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-25 07:37 GMT

Super Cyclone News: फानी, बुलबुल, अम्फान और दाना ये चक्रवातों के नाम हैं। इन्हें आप तबाही का नाम भी दे सकते हैं। तबाही इसलिए कि इनमें इतनी ताकत होती है कि ये सब सामने आने वाली हर एक चीज को ध्वस्त और बर्बाद कर देते हैं। अपने पीछे तबाही के निशान छोड़ जाते हैं। 25 अक्टूबर को सुबह सुबह बंगाल की खाड़ी में बना चक्रवात दाना ओडिशा के भीतरकनिका और धामरा में सतह से 120 किमी की रफ्तार से टकराया। अपने साथ नुकसान की बारिश और आंधी ले आया और धीरे धीर उत्तर पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ने लगा। अच्छी बात यह है कि यह चक्रवात अब धीरे धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है। लेकिन जिस प्रसंग का जिक्र करेंगे उसका नाता 1999 से और ओडिशा राज्य से है।

जगतसिंह पुर पर टूटा था कहर
ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले पर चक्रवात कहर बनकर टूटा। उस जिले में शायद ही कोई ऐसा परिवार जो इस आपदा से बचा होगा। करीब करीब सभी परिवारों में से या उनके रिश्तेदार इस आपदा के शिकार हुए। 10 हजार से अधिक लोग जान गंवा बैठे। एक करोड़ से अधिक लोग किसी ना किसी रूप में प्रभावित हुए। उस आपदा ने ओडिशा को कई दशक पीछे धकेल दिया। लेकिन ओडिशा ने साहस और मेहनत के अनूठे मेल के जरिए देश ही दुनिया को संदेश दे रहा है कि मुश्किल कितनी भी बड़ी क्यों ना हो हम डरने वाले नहीं हैं। ओडिशा ने अगर इस बात को गांठ बांधी तो उसे करके भी दिखाया। यही वजह है कि यहां के सीएम कह रहे हैं कि इतने बड़े चक्रवात की वजह से एक भी मौत नहीं हुई है और जब वो इस बात का दावा करते हैं तो दिमाग में यह जानने की उत्सुकता बढ़ जाती है कि आखिर यह सब संभव कैसे हुआ।

आपदा पर कैसे मिली विजय

जगतसिंह पुर वाली आपदा के ओडिशा ने आपदा प्रबंधन में बड़ा बदलाव किया और आज यह दूसरे राज्यों के लिये नजीर है। आपदा प्रबंधन के मामले में ओडिशा मॉडल की चर्चा होती है। जानकार कहते हैं कि आप चक्रवातों को रोक नहीं सकते। यह मौसमी प्रक्रिया है जिस पर आपका नियंत्रण नहीं है। लेकिन आपके पास चक्रवात से पहले और बाद के हालात से निपटने की सुविधा है तो इससे होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। साल 1999 में ओडिशा के पास बेहतर चेतावनी प्रणाली नहीं थी। मौसम से संबंधित सटीक जानकारी नहीं मिल पाती थी। लेकिन मौसम संबंधित सैटेलाइट छोड़े जाने के बाद समुद्री और आसमानी हलचलों के बारे में जानकारी मिलने लगी और उसका फायदा यह हुआ कि तटीय जिलों से लोगों को समय से पहले हटाने में कामयाबी मिली। इसके साथ ही चक्रवात के बाद होने वाले हालात का सामना करने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमों द्वारा बेहतर समन्वय दिखाने का फायदा भी मिलता नजर आया।

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