मलयालम अभिनेत्री के यौन उत्पीड़न के केस में एक्टर दिलीप दोषमुक्त, पीड़िता को अब तक न्याय नहीं

पीड़िता के लिए न्याय लगातार दूर होता गया, सिर्फ इसलिए नहीं कि अपराध से इनकार किया गया, बल्कि इसलिए भी कि प्रभाव का जाल इतना गहरा था कि कानूनी प्रक्रिया पूरी तरह उसे सुलझा नहीं पाई।

Update: 2025-12-08 12:53 GMT
मलयालम अभिनेता दिलीप (फाइल फोटो)

सोमवार (8 दिसंबर) की सुबह मलयालम अभिनेता दिलीप एर्नाकुलम प्रिंसिपल सेशंस कोर्ट से एक मुक्त व्यक्ति के रूप में बाहर निकले। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध करने में विफल रहा कि 2017 में एक अभिनेत्री के अपहरण और यौन उत्पीड़न के पीछे दिलीप किसी आपराधिक साज़िश का हिस्सा थे।

इसके बजाय, अदालत ने छह अन्य आरोपियों — जिनमें एम.एस. सुनील कुमार उर्फ पल्सर सुनी, जो मलयालम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा एक पूर्व ड्राइवर है — को बलात्कार, अपहरण और इससे जुड़े अपराधों को अंजाम देने का दोषी पाया।

यह फैसला लगभग आठ साल से चले सार्वजनिक ध्यान, अदालत की कार्यवाही और केरल की फिल्म इंडस्ट्री से लेकर समाज तक फैली बहस को एक पड़ाव पर लाता है। लेकिन जहां कुछ लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे थे, वहीं कई आवाजें उठीं कि पीड़िता के लिए न्याय अब भी अधूरा है, और एक प्रभावशाली व्यक्ति को बरी करना इस बात का संकेत है कि शक्तिशाली लोगों को पूरी तरह जवाबदेह ठहराने में सिस्टम असफल रहा।

राज्य सरकार ने कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील दायर करेगी। कानून मंत्री पी. राजीव ने मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद कहा, “सरकार पीड़िता के साथ मजबूती से खड़ी है।”

दिलीप की प्रतिक्रिया

दिलीप ने अदालत से बाहर निकलकर कहा,“हाँ, एक साज़िश थी — लेकिन वह मेरे खिलाफ थी। यह तब शुरू हुई जब मञ्जू वारियर ने इस अपराध के पीछे साज़िश की बात कही थी। कुछ आपराधिक पुलिस अधिकारी — एक वरिष्ठ महिला अधिकारी के नेतृत्व में — और मीडिया के एक हिस्से ने लगभग नौ साल तक झूठी कहानियों से मेरा शिकार किया। उनका झूठा नैरेटिव अब अदालत में टूट गया है।”

विभाजित प्रतिक्रियाएँ

जज हनी एम. वरघीज़ ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष दिलीप पर साज़िश का आरोप साबित करने के लिए आवश्यक मानक तक नहीं पहुंच सका। इसी कारण दिलीप और कुछ अन्य सह-आरोपियों को, जिनकी भूमिका प्रत्यक्ष नहीं थी, बरी कर दिया गया।

अदालत ने यह भी कहा कि हमला हुआ था और छह आरोपियों ने उसे अंजाम दिया, लेकिन उपलब्ध सबूत यह नहीं दिखा सके कि दिलीप ने उसकी योजना बनाई थी या उसे अंजाम दिलाने में भूमिका निभाई थी।

बाहर, प्रतिक्रियाएँ तेज़ी से दो हिस्सों में बंटी हुई थीं। फैसले का स्वागत करने वालों ने कहा कि तत्काल अपराधियों को दोषी ठहराए जाने से न्याय हुआ है। वहीं दिलीप समर्थक, जो खुद को उनके “फैन” बताते थे, मीडिया के खिलाफ गुस्से में दिखे — कुछ ने तो कोर्ट परिसर में पत्रकारों को घेरने की भी कोशिश की।

यह वही शत्रुतापूर्ण माहौल था जो पिछले आठ वर्षों से उन लोगों के खिलाफ ऑनलाइन अभियान के रूप में चलता रहा है, जिन्होंने पीड़िता के साथ सार्वजनिक रूप से खड़े होने की हिम्मत दिखाई।

दूसरी ओर, कई लोगों ने गहरी निराशा और हताशा व्यक्त की। बहुतों के लिए एक समय के शक्तिशाली स्टार रहे दिलीप को साज़िश के आरोपों से बरी किया जाना जवाबदेही पर सीधा प्रहार जैसा था। कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या वास्तव में पीड़िता को न्याय मिला है। उनका कहना था कि भले ही छह दोषियों को सज़ा मिलेगी, लेकिन कथित मास्टरमाइंड मुक्त हो गया — और उसके साथ वह पूरा सत्ता और प्रभाव का ढांचा भी, जिसने वर्षों तक आरोपियों को संरक्षण दिया।

अगला कदम

“एक क्रूर और अमानवीय अपराध को साफ करके रिकॉर्ड से मिटा देने के लिए धन, पहुंच और अपराधी मानसिकता ही काफी है। यहाँ तक कि तब भी, जब दूसरी ओर राज्य सरकार और जनता की सतर्क निगरानी मौजूद हो। अब अपराध को इस तरह पेश कर दिया गया है मानो छह दोषी ठहराए गए लोगों ने इसे सिर्फ अपनी व्यक्तिगत ‘बलात्कार की इच्छा’ के कारण किया,” कोझिकोड की वरिष्ठ वकील अथिरा पी.एम. ने कहा।

उन्होंने आगे कहा, “पीड़िता, उसके साथ खड़े रहने वाले लोग और केरल सरकार — सभी को इस निराशाजनक फैसले को पलटने के हर विकल्प को तलाशना चाहिए। संघर्ष तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक न्याय पूरी तरह न मिल जाए — बिना कमजोर पड़े, बिना निराश हुए।”

राज्य के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री साजी चेरियन ने कहा, “सरकार पीड़िता के साथ मजबूती से खड़ी है और आगे भी रहेगी। हम फैसले का अध्ययन करेंगे, कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेंगे और आगे के कदमों पर निर्णय करेंगे।”

न्याय अब भी दूर

यह फैसला एक लंबा अध्याय जरूर बंद करता है, लेकिन कई अहम सवाल खुला छोड़ देता है। क्या दोषियों को दी जाने वाली सज़ा 2017 में केरल भर में उठी न्याय की मांगों को संतुष्ट कर पाएगी? क्या यह नतीजा भविष्य में सत्ता के दुरुपयोग को रोक पाएगा, या फिर यह निराशा को और गहरा कर देगा कि शक्तिशाली लोगों की जवाबदेही अब भी मुश्किल है?

पीड़िता के लिए न्याय लगातार दूर होता जा रहा है — सिर्फ इसलिए नहीं कि अपराध से इनकार किया गया, बल्कि इसलिए भी कि प्रभाव और अनिश्चितता का जाल इतना गहरा था कि कानूनी प्रक्रिया उसे पूरी तरह सुलझा नहीं पाई।

करीब एक दशक तक आरोपों, सबूतों, सुनवाई और सार्वजनिक आक्रोश के बाद दिलीप की बरी होने से कुछ लोगों को राहत मिली होगी। लेकिन संस्थागत न्याय और प्रणालीगत सुधार में विश्वास रखने वालों के लिए यह एक निर्णायक क्षण है — यह परीक्षण कि क्या न्याय व्यवस्था पीड़ितों को ही नहीं, बल्कि सत्ता और विशेषाधिकार रखने वालों के खिलाफ भी न्याय दे सकती है।

12 दिसंबर को सज़ा का ऐलान नज़दीक आते ही सार्वजनिक ध्यान पूरी तरह इस मामले पर टिका है। आने वाले दिनों में हमला झेल चुकी अभिनेत्री के लिए कुछ राहत और दोषियों के लिए अंतिम फैसला आ सकता है। लेकिन बड़ा सवाल—क्या सच में न्याय हुआ है—शायद लंबे समय तक बना रहेगा।

वो वारदात

17 फरवरी 2017 की रात यह अभिनेत्री कार से यात्रा कर रही थीं, तभी कुछ लोग जबरन अंदर घुस आए। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, उन्हें एक नकली सड़क दुर्घटना का नाटक रचकर रोका गया, फिर चलती गाड़ी में ले जाकर उनके साथ क्रूरतापूर्वक यौन उत्पीड़न किया गया और पूरी घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई।

इस मामले में पहला आरोपी सुनी था, जो फिल्म उद्योग में ड्राइवर के तौर पर काम करता था।

जांचकर्ताओं ने शुरू से ही कहा कि यह हमला कोई अचानक हुई वारदात नहीं थी, बल्कि एक ठंडी, सोची-समझी साजिश का हिस्सा था। उन्होंने यह सिद्धांत पेश किया कि पीड़िता ने कथित रूप से दिलीप की उस समय की पत्नी को उसकी एक अन्य अभिनेत्री के साथ संबंध की जानकारी दी थी, जिससे नाराज़गी पैदा हुई। इसी नाराज़गी ने इस अपराध की योजना और क्रियान्वयन को जन्म दिया—ऐसा अभियोजन का दावा था। दिलीप पर सुनी और अन्य लोगों को हमला करवाने और उसे रिकॉर्ड करने के लिए नियुक्त करने का आरोप लगा।

कई गिरफ्तारियों और लंबी, कठिन जांच के बाद आरोप और भी बढ़ाए गए। दिलीप को आठवें आरोपी के रूप में नामज़द किया गया। जुलाई 2017 में उन्हें कई घंटों की पूछताछ के बाद औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया। वह लगभग तीन महीने जेल में रहे और उसी साल अक्टूबर में उन्हें जमानत मिल गई। एक पूरक चार्जशीट दायर की गई और आरोपियों की संख्या बढ़कर 10 हो गई।

मुकदमा

मुकदमे की शुरुआत जनवरी 2020 में हुई। अगले कई वर्षों में अदालत ने 261 गवाहों की गवाही सुनी। अभियोजन पक्ष ने 833 दस्तावेज़ और 142 सबूत पेश किए, ताकि यह स्थापित किया जा सके कि हमला पूरी तरह साजिश के तहत कराया गया था।

लेकिन पूरे मुकदमे में कई कठिनाइयाँ सामने आईं। मुख्य सबूत—हमले का वह वीडियो जिसे सुनील कुमार ने रिकॉर्ड किया था—विवाद का कारण बन गया। फॉरेंसिक रिपोर्टों से पता चला कि visuals रखने वाला मेमोरी कार्ड अदालत की हिरासत में रहते हुए कम से कम तीन बार (2018 में दो बार और 2021 में एक बार) अवैध रूप से एक्सेस किया गया। इससे इस अहम सबूत की सुरक्षा और सत्यता पर गंभीर सवाल उठे।

गवाहों ने भी मामला जटिल बना दिया

फिल्म उद्योग से जुड़े कई लोगों सहित कई गवाहों ने अपने पहले दिए गए बयान वापस ले लिए या गवाही के दौरान मुकर गए। इनमें ऐसे अभिनेता भी थे जिन्होंने पहले की सुनवाइयों में धमकियों और साजिश की चर्चाओं का दावा किया था। अंत तक आते-आते, अभियोजन पक्ष जिन गवाहियों पर निर्भर था, उनमें से एक बड़ा हिस्सा कमज़ोर पड़ चुका था।

दलीलें

अभियोजन पक्ष का तर्क था कि साजिश को साबित करना कठिन जरूर है, लेकिन बेहद आवश्यक है। उनका केस कम्युनिकेशन की कड़ी, डिजिटल सबूत, पैसे के लेन-देन और गवाहियों को जोड़कर साजिश का पूरा ढांचा दिखाने पर आधारित था।

वहीं बचाव पक्ष का कहना था कि ये सारे लिंक केवल परिस्थितिजन्य हैं और विश्वसनीय नहीं। उनका तर्क था कि दिलीप को अपराध से जोड़ने वाला कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है—न कोई चश्मदीद, न कोई स्वीकारोक्ति, न ही कोई ठोस दस्तावेज़ी प्रमाण। सालों तक गवाहों के मुकरने और सबूतों पर सवाल उठने के बाद अभियोजन की कहानी कमजोर पड़ती गई।

यह उन कुछ मामलों में से एक था जिसमें पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट तक जाकर उस समय के ट्रायल जज पर अविश्वास जताया—हालांकि यह आग्रह खारिज कर दिया गया। इसके बाद उनकी मांग पर एक महिला जज को मुकदमे की सुनवाई सौंपी गई, लेकिन बाद में यह बदलाव खुद पीड़िता के लिए एक असहज पहलू बन गया।

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