क्या बिहार में ‘घुसपैठ’ का मुद्दा उठाकर मोदी फिर से गलती कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री के हालिया बयान बिहार के सीमांचल क्षेत्र में घुसपैठ पर केंद्रित थे, जो 2024 के झारखंड चुनाव में अपनाई गई रणनीति से मेल खाते हैं, जहां बीजेपी हार गई थी।;

Update: 2025-09-17 16:55 GMT
आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में चुनावी राज्य में कथित घुसपैठियों की मौजूदगी के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई
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नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनाव से पहले “घुसपैठिया” कार्ड खेलने का फैसला किया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उन्होंने झारखंड विधानसभा चुनाव की हार से सबक नहीं लिया है। पिछले साल झारखंड के संथाल परगना इलाके में उन्होंने घुसपैठ को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। मकसद था—आदिवासियों को लुभाना और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन को चुनौती देना। लेकिन परिणाम यह रहा कि 2000 में राज्य गठन के बाद से बीजेपी का यह सबसे खराब प्रदर्शन था।

मोदी फिर वही कर रहे हैं

सोमवार (15 सितम्बर) को पूर्णिया की रैली में जब मोदी ने यह मुद्दा उठाया, तो यह साफ हो गया कि एनडीए बिहार के सीमांचल में अपने पुराने ध्रुवीकरण वाले राजनीतिक मॉडल को छोड़ने के मूड में नहीं है। यह आने वाले साल में पश्चिम बंगाल और असम जैसे सीमावर्ती राज्यों के विधानसभा चुनाव की रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है, जहां घुसपैठ बड़ा मुद्दा है।

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लेकिन सवाल यह है कि मोदी, जो आमतौर पर विकास पर अपनी राजनीति केंद्रित करते हैं, उन्होंने सीमांचल को समृद्ध बनाने जैसे वादों की बजाय घुसपैठ पर जोर क्यों दिया? पूर्णिया में उन्होंने यह तक कहा कि “यह मेरी गारंटी है कि घुसपैठियों पर कार्रवाई होगी।” लेकिन सरकार के पास इस दावे का समर्थन करने वाला कोई आधिकारिक आंकड़ा उन्होंने पेश नहीं किया।

आंकड़ों के बिना ‘जुमला’?

एक पर्यवेक्षक ने कहा कि मोदी ने चुनाव से पहले घुसपैठ का मुद्दा उठाया है, लेकिन यह एक ‘जुमला’ (खाली बात) हो सकता है क्योंकि बिना ठोस आंकड़ों के इसे साबित करना मुश्किल है।

बिहार के राजनीतिक विश्लेषक सरूर अहमद ने सवाल उठाया कि मोदी सरकार को किसने रोका है कि वह घुसपैठियों का पूरा आधिकारिक डेटा जारी करे, उन्हें पहचानें और बाहर निकाले। उन्होंने कहा कि सरकार इस मुद्दे का इस्तेमाल लोगों का ध्यान असली समस्याओं से भटकाने के लिए कर रही है।

अहमद ने कहा,“यह मुद्दा अब पुराना हो गया है और मोदी ने कुछ नया नहीं कहा। सीमांचल के लोग चार दशक से ऐसे भाषण सुनते आ रहे हैं। अब वे एनडीए नेताओं से पूछ रहे हैं कि जब आप राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता में हैं, तो एक दशक से अधिक समय में आपने क्या किया? इसलिए मोदी का ताजा बयान उल्टा पड़ सकता है, जैसा झारखंड में हुआ।”

झारखंड में ‘घुसपैठिया कार्ड’ फेल

मोदी ने बिहार की विपक्षी पार्टियों—कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी)—पर भी घुसपैठियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया, जैसा उन्होंने झारखंड चुनाव में किया था। नवंबर 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जेएमएम-गठबंधन का मजाक उड़ाते हुए उसे ‘घुसपैठिया बंधन’ कहा था, जो बांग्लादेशी घुसपैठियों का समर्थन करता है।

यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने भी झारखंड चुनाव में डेरा डालकर आरोप लगाया था कि बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासियों को अल्पसंख्यक बना रहे हैं और उनकी बेटियों की सुरक्षा और जमीन के लिए खतरा हैं।

लेकिन बीजेपी की रणनीति मतदाताओं को प्रभावित करने में नाकाम रही, जैसा कि चुनाव नतीजों से साबित हुआ। उदाहरण के लिए, संथाल परगना में बीजेपी और उसकी सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पूरी तरह नाकाम रही और क्षेत्र की 18 सीटों में से केवल एक सीट ही जीत सकी। झामुमो के वरिष्ठ नेता और विधायक स्टीफन मरांडी ने कहा कि बीजेपी का ‘घुसपैठिया’ वाला मुद्दा आदिवासी मतदाताओं पर कोई असर नहीं डाल सका। उन्होंने *द फेडरल* से कहा, “बिहार की जनता भी आगामी चुनावों में झारखंड का रास्ता अपनाएगी।”

क्या सचमुच ‘घुसपैठिया’ मतदाता मौजूद हैं?

चौंकाने वाली बात यह है कि व्यापक प्रचार और अफवाहों के बावजूद कि बड़ी संख्या में घुसपैठिए, खासकर बांग्लादेश से, सीमांचल क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल हो गए हैं — चुनाव आयोग (ईसी) द्वारा अगस्त में जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची से एक भी ‘घुसपैठिया’ मतदाता का नाम नहीं हटाया गया। यह सूची आयोग के विवादास्पद विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभ्यास के पहले चरण के पूरा होने के बाद जारी हुई थी।

जुलाई में, जब SIR अभ्यास अपने चरम पर था, एक रिपोर्ट आई जिसमें प्रक्रिया से जुड़े आयोग के कुछ फील्ड-लेवल अधिकारियों का हवाला दिया गया था। उन्होंने दावा किया था कि सीमांचल (जो नेपाल की सीमा से सटा है) की मतदाता सूची में घुसपैठियों के नाम पाए गए हैं। इस दावे ने राज्य की मतदाता सूची में कथित घुसपैठियों की मौजूदगी को लेकर नई बहस छेड़ दी। बाद में बिहार में चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से कथित घुसपैठियों के आधार पर एक भी मतदाता का नाम नहीं हटाया गया। SIR के दौरान ऐसा कोई मतदाता चिन्हित या पाया ही नहीं गया।” अधिकारी ने यह भी बताया कि सीमांचल में 7.6 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए, लेकिन यह घुसपैठ के आधार पर नहीं बल्कि इसलिए कि वे या तो मृत थे, स्थायी रूप से कहीं और चले गए थे, अनुपस्थित थे या दो जगहों पर उनके नाम दर्ज थे।

ध्रुवीकरण की कोशिश में दक्षिणपंथी संगठन

बीजेपी, उसकी वैचारिक संरक्षक आरएसएस और अन्य दक्षिणपंथी संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल लगातार सीमांचल के स्थानीय लोगों में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर डर फैलाने की कोशिश करते रहे हैं। चूंकि इस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी 47% है, जबकि राज्य की औसत आबादी 17.7% है, इसलिए ध्रुवीकरण की कथा गढ़ना मुश्किल नहीं है। यहां बड़ी संख्या में बंगाली-भाषी मुस्लिमों को बांग्लादेशी बताकर हिंदू वोट बैंक (गैर-मुस्लिम भाषाई और जातीय समूहों) को साधने की रणनीति अपनाई जाती है।

अक्सर गौ-तस्करी और वध, लव जिहाद, मुस्लिम आबादी बढ़ने और हिंदू आबादी घटने जैसे मुद्दों के साथ-साथ बांग्लादेश से कथित अवैध घुसपैठ जैसे विषय उछाले जाते हैं। किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68%, कटिहार में 44%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 38% है।

‘घुसपैठ’ का आरोप नया नहीं

सीमांचल में बाढ़-प्रवण जिले जैसे पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज शामिल हैं। यह क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़ा है और बहुआयामी गरीबी, बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं से जूझता है। इसके बावजूद भगवा खेमे को अवैध घुसपैठ का मुद्दा अधिक उपयुक्त लगता है क्योंकि यह क्षेत्र नेपाल और पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है, जहां से बांग्लादेश की सीमा लगती है।

स्कूल शिक्षक ज़फर आलम ने कहा, “हम सालों से बिना आधार के ‘घुसपैठिया’ (मुख्य रूप से बांग्लादेशी) कहे जाते रहे हैं। सिर्फ इसलिए कि यहां मुस्लिम आबादी बड़ी है, शक के आधार पर सीमांचल को निशाना बनाना आसान है।” वे अकेले नहीं हैं। इस गरीब इलाके के अन्य लोग भी ऐसा ही सोचते हैं। कार्यकर्ता ग़ालिब कलीम ने कहा, “जब भी घुसपैठियों का मुद्दा उठता है, सीमांचल का नाम अपने आप मीडिया की सुर्खियों में आ जाता है क्योंकि यहां बड़ी मुस्लिम आबादी है।”

हालांकि सीमांचल कांग्रेस और राजद का गढ़ है। यहां की 24 विधानसभा सीटें पटना में सत्ता गठन की कुंजी मानी जाती हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए ने इनमें से आधी यानी 12 सीटें जीती थीं, जबकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया था।

2024 लोकसभा चुनाव में दोनों गठबंधनों ने सीमांचल में अच्छा प्रदर्शन किया। कांग्रेस ने किशनगंज और कटिहार जीता, बीजेपी ने अररिया, जबकि पूर्णिया से कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव विजयी रहे।

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