अध्यात्म से राजनीति तक, नीतीश कुमार के वारिस की बदलती राह

नीतीश कुमार के बेटे निशांत की बढ़ती सक्रियता ने बिहार चुनाव से पहले उत्तराधिकारी की चर्चा तेज कर दी है। जदयू में उन्हें लेकर पोस्टर भी लगने लगे।;

Update: 2025-09-02 01:57 GMT

बिहार के लंबे समय से मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार के इकलौते बेटे निशांत कुमार ने हाल ही में तीन दिनों के भीतर दो बार (18 और 20 अगस्त) सार्वजनिक मंच से कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उनके पिता एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे। चुनावी बिहार में बेटे का पिता के लिए बोलना भले ही चौंकाने वाला न हो, लेकिन निशांत की खासियत यह है कि वह अब तक राजनीति से दूर रहे हैं और शायद ही कभी सार्वजनिक जीवन में दिखाई देते हैं।

नीतीश की विरासत के उत्तराधिकारी?

हाल के महीनों में नीतीश की बिगड़ती सेहत के बीच निशांत को उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किया जा रहा है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने पिता के पक्ष में ऐसी टिप्पणी की हो, लेकिन विधानसभा चुनाव (अक्टूबर-नवंबर) से महज़ दो महीने पहले उनकी अचानक सक्रियता चर्चा का विषय बन गई है।

निशांत बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि "एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा और जीत के बाद नीतीश ही फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे।"

अध्यात्म से राजनीति तक

पिछले साल तक निशांत राजनीति से दूरी बनाए रखते हुए खुद को आध्यात्मिक रास्ते पर चलने वाला बताते थे। लेकिन अब उनका रुख धीरे-धीरे राजनीति की ओर झुकता दिख रहा है। इस हफ्ते उन्होंने शांत और आत्मविश्वास से कहा कि उनके पिता ने बिहार के विकास के लिए सड़कों, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा काम किया है। उन्होंने महिलाओं और वंचित वर्गों के सशक्तिकरण का भी उल्लेख किया।

निशांत के इन बयानों ने बिहार की राजनीति में अटकलों को हवा दे दी है कि वह जल्द ही जदयू (JD-U) में शामिल हो सकते हैं। हाल में वे मीडिया से संवाद कर रहे हैं, विपक्ष के विरोध-प्रदर्शनों और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। वे अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी सार्वजनिक रूप से तारीफ करने लगे हैं।

उत्तराधिकारी की तलाश

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निशांत की बार-बार की गई टिप्पणियाँ इस बात की ओर इशारा करती हैं कि जदयू और एनडीए के पास नीतीश के बाद कोई मज़बूत चेहरा नहीं है। राजनीतिक जानकार सरूर अहमद कहते हैं,"एनडीए के पास तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी चेहरे का विकल्प देने वाला कोई लोकप्रिय नेता नहीं है। लेकिन निशांत की एंट्री शायद देर से हो रही है।"

जदयू के अंदर भी कुछ नेताओं का मानना है कि निशांत ही पार्टी का अगला चेहरा बन सकते हैं। पार्टी कार्यालय के बाहर हाल ही में नीतीश और निशांत के पोस्टर लगे, जिन पर लिखा था— “कार्यकर्ताओं की मांग, चुनाव लड़े निशांत”।

बिहार की विरासत की राजनीति

1990 के दशक की मंडल राजनीति के बाद बिहार की सत्ता तीन नेताओं—लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान—के इर्द-गिर्द घूमती रही। लालू की विरासत अब उनके बेटे तेजस्वी संभाल रहे हैं, जबकि पासवान के निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान एलजेपी (आर) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री हैं। नीतीश के मामले में अब भी सवाल बना है कि उनकी राजनीतिक विरासत कौन आगे बढ़ाएगा—क्या यह जिम्मेदारी निशांत लेंगे?

जदयू में निशांत की मांग

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कई नेता चाहते हैं कि निशांत विधानसभा चुनाव लड़े। नालंदा जिले की हरणौत और अस्थावां सीटें उनके लिए संभावित विकल्प मानी जा रही हैं। कुछ नेताओं को तो डर है कि अगर निशांत आगे नहीं आए, तो पार्टी में टूट भी हो सकती है।

राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर कहते हैं,"अगर नीतीश एक बार फिर मुख्यमंत्री नहीं बन पाते, तो जदयू को बचाना मुश्किल होगा। निशांत की राजनीति में एंट्री पार्टी को एकजुट रख सकती है।"

भाजपा की दुविधा

भले ही जदयू बार-बार दावा करता रहा है कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा सिर्फ नीतीश होंगे, लेकिन भाजपा नेतृत्व अब तक इस पर खुलकर घोषणा करने से बच रहा है। गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही कहा हो कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़े जाएंगे, लेकिन उन्होंने साफ शब्दों में उम्मीदवार घोषित नहीं किया। यह पहली बार है कि ढाई दशक में भाजपा नीतीश को एनडीए का सीएम फेस घोषित करने से हिचकिचा रही है।

परिवारवाद का सवाल

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या नीतीश अपने बेटे को राजनीति में आगे लाएंगे, जबकि वे खुद बार-बार परिवारवाद के खिलाफ बोलते रहे हैं। नीतीश अभी तक इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं। जानकारों का मानना है कि चुनाव से पहले वे कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते।दिलचस्प बात यह है कि लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और चिराग पासवान तक चाहते हैं कि निशांत राजनीति में आएं। लेकिन अंतिम फैसला नीतीश कुमार के हाथ में ही है।

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