बिहार में ‘दस हजार’ योजना का चुनावी खुमार, कैश ट्रांसफर स्कीम से हलचल, बैंकों और साइबर कैफे में महिलाओं की कतारें
एनडीए सरकार की 10,000 रुपये की नकद हस्तांतरण योजना ने महिलाओं में उम्मीद और उमंग जगाई है, लेकिन कर्ज़जाल और चुनावी समय को लेकर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
चुनावी मौसम में बिहार में इन दिनों हर जुबान पर सिर्फ एक ही शब्द है –“दस हजार”। यह वाक्यांश अचानक आम बातचीत का हिस्सा बन गया है। हजारों महिलाएँ, ज़्यादातर गरीब तबकों से, बैंकों, प्रखंड कार्यालयों, साइबर कैफे और ऑनलाइन दुकानों के चक्कर लगा रही हैं, उम्मीद में कि उनके खाते में सीधे 10,000 रुपये आ जाएँ।
यह उत्साह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार द्वारा इस महीने शुरू की गई एक नई कल्याणकारी योजना के कारण है। सितंबर 2025 के दूसरे हफ्ते से ही महिलाएँ लगातार आवेदन केंद्रों के चक्कर काट रही हैं ताकि मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की लाभार्थी बन सकें।
यह योजना नवंबर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई है। इसके तहत पूरे बिहार की 2.77 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये की सहायता देने का वादा किया गया है। हर परिवार से एक महिला को यह लाभ मिलेगा।
आसान पात्रता
इस योजना के नियम बेहद सरल हैं, आवेदिका और उसके पति आयकरदाता नहीं होने चाहिए। यानी यह योजना सीधे तौर पर गरीब और वंचित तबकों की महिलाओं को लाभ पहुंचाने वाली है।
बैंकों-साइबर कैफे में भीड़
एक सरकारी बैंक के कर्मचारी ने कहा,“बिहार ने कभी इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं को बैंकों और साइबर कैफे की ओर दौड़ते नहीं देखा। यह सब तब शुरू हुआ जब नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए सीधे नकद हस्तांतरण की घोषणा की।”
एक अन्य बैंक प्रबंधक ने बताया,“हर दिन दर्जनों महिलाएँ नए खाते खुलवा रही हैं या पुराने खातों का केवाईसी करवा रही हैं। केवल इस शाखा में रोज़ाना 50 से अधिक नए महिला खाते खुल रहे हैं। सोचिए बाकी शाखाओं में कितना दबाव होगा।”
साइबर कैफे पर भी यही हाल है। राहुल कुमार, जो एक छोटा कैफे चलाते हैं, ने कहा,“सिर्फ पिछले हफ्ते ही सैकड़ों महिलाएँ आवेदन भरने मेरे और आसपास के कैफे में आईं। शुक्रवार को जब कई महिलाओं के खाते में पहली किस्त आई, तो भीड़ और बढ़ गई।”
पहली किस्त जारी
जीविका (विश्व बैंक समर्थित ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम) के अधिकारियों के अनुसार, अब तक 1.5 करोड़ से अधिक महिलाएँ आवेदन कर चुकी हैं, जबकि 1 करोड़ से ज्यादा अभी बाकी हैं।
शुक्रवार (26 सितंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिलकर 75 लाख महिलाओं को सीधे खाते में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए। शेष महिलाओं को अक्टूबर के पहले हफ्ते से राशि मिलने लगेगी।
पहली किस्त 10,000 रुपये (डीबीटी के जरिए) है, जबकि 6 महीने बाद 2 लाख रुपये देने का वादा किया गया है।
उम्मीद और संघर्ष
जो महिलाएँ राशि पा चुकी हैं, उनमें खुशी और राहत है। शकीला खातून (32), पटना की एक घरेलू नौकरानी, ने कहा –“मैं महीने में मुश्किल से 5,000 रुपये कमाती हूँ। घर चलाना बहुत कठिन है। अगर मुझे यह राशि मिलती है तो मैं ठेला लगाकर सब्ज़ी-फल बेचने का छोटा कारोबार शुरू करना चाहती हूँ।”
कर्ज़ के जाल में फँसी महिलाएँ
लेकिन सभी महिलाएँ उतनी उत्साहित नहीं हैं। लक्ष्मी देवी, मीनू देवी, कांति देवी और सुषमा देवी जैसी महिलाएँ कर्ज़ में डूबी हैं। उन्होंने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से उधार लिया था, किसी ने छोटे व्यापार के लिए, किसी ने इलाज, बच्चों की पढ़ाई या शादी के लिए।
सुषमा देवी, दानापुर ने कहा –“अगर मुझे यह 10,000 रुपये मिलेंगे तो सीधे कर्ज़ चुकाने में ही चले जाएँगे।” उनका कहना है कि बड़ी संख्या में जीविका से जुड़ी महिलाएँ माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज़ में जकड़ी हुई हैं।
उन्होंने कहा, “सरकार को यह योजना लाने के बजाय हमारे कर्ज़ माफ करने चाहिए थे।” लक्ष्मी देवी (पुनपुन ब्लॉक, पटना) ने सवाल उठाया, “सिर्फ 10,000 रुपये से कौन-सा कारोबार शुरू हो सकता है, वह भी महंगाई के इस दौर में?”
कर्ज़ की जकड़न और शोषण
अध्ययन बताते हैं कि गरीब महिलाएँ माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर ही निर्भर रहती हैं। अक्सर उन्हें धमकाया और प्रताड़ित भी किया जाता है।
कंचन बाला, महिला कार्यकर्ता, ने कहा –“10,000 रुपये का नकद हस्तांतरण माइक्रोफाइनेंस संकट का हल नहीं है।”
मीना तिवारी (AIPWA) ने बताया कि बिहार का माइक्रोफाइनेंस कारोबार 2020 में 6,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023 में 49,500 करोड़ रुपये हो गया।
“यह दिखाता है कि कैसे महिलाएँ कर्ज़ में डूबती जा रही हैं, और कंपनियाँ ऊँचे ब्याज दर पर शोषण कर रही हैं।”
सीपीआई (एमएल) की विधायक शशि यादव ने कहा –“जब तक सरकार पुराने कर्ज़ माफ नहीं करती, यह योजना आत्म-रोज़गार को बढ़ावा नहीं दे पाएगी।”
क्या ‘गेम-चेंजर’ बनेगी योजना?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बिहार की महिलाओं के लिए अब तक का सबसे बड़ा चुनावी ऑफर है।
बिहार में 3.5 करोड़ महिला वोटर (कुल मतदाताओं का आधा हिस्सा) हैं। 2020 के चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया था, 243 में से 167 सीटों पर।
हालांकि उस चुनाव में जेडीयू कमजोर साबित हुई थी — उसे 115 में से केवल 43 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी ने 110 में से 74 सीटें जीतीं।
इसके बावजूद, नीतीश कुमार महिलाओं में अब भी लोकप्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने साइकिल योजना, 35% नौकरी आरक्षण, शराबबंदी, पंचायत और निकाय चुनावों में 50% आरक्षण, और जीविका दीदियों के स्व-सहायता समूहों जैसी योजनाओं से लंबे समय से महिलाओं का भरोसा जीता है।