आपका लड़का मजदूर नहीं तो और क्या बनेगा, प्रशांत किशोर ने क्यों कही ये बात

प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा अब मुकाम पर पहुंचने के बेहद करीब है। उससे ठीक पहले उन्होंने लोगों से ही पूछा कि क्या यह पता है कि आप लोगों का लड़का मजदूर क्यों बनता है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-29 08:42 GMT
Prashant Kishor:  पिछले ढाई साल से राजनीतिक सलाहकार और चुनावी रणनीतिककार बिहार के गांवों को मंथने का काम कर रहे हैं। जन सुराज यात्रा के जरिए वो लोगों से सीधे रूबरू हुए और अब 2 अक्टूबर को अपनी पार्टी बनाने जा रहे हैं। वो जब लोगों से मिलते हैं तो पूछते हैं कि आखिर लालू यादव के बेटों में ही डिप्टी सीएम और मंत्री बनने की काबिलियत क्यों है। क्या आप लोगों ने इसके बारे में सोचा। क्या आप लोग ऐसे ही पीछे पीछे घूमते रहेंगे या अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भी सोचेंगे। प्रशांत किशोर इसी के साथ गुजरात और बिहार में फैक्ट्री की बात करते हैं। वो लोगों से पूछते है कि आखिर मोदी जी ने गुजरात में इतनी फैक्ट्री क्यों लगवाई। उस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि दरअसल वहां के लोग सरकार से सनाल करते हैं कि आपने हमारे बच्चों के विकास के बारे में क्या सोचा। लेकिन बिहार में जब चार किलो चावल पर लोग अपना नुमाइंदा चुनेंगे तो क्या होगा। 

बिहार के सांसदों के सहयोग से चलने वाली केंद्र सरकार से नीतीश कुमार ने बिहार के लिए फैक्ट्री क्यों नहीं मांगी?2025 में जन सुराज अपने दम पर जीतकर आएगा। प्रशांत किशोर लोगों से मुलाकात के दौरान खरी खरी बात करते हुए कहते हैं कि आप लोग भी इस हाल के लिए खुद जिम्मेदार है। जब भात, दाल, मुर्गा, 500 रुपए और दारू पर वोट खरीदे जाएंगे तो वोटों की खरीद करने वाला आपके बारे में क्यों सोचेगा। वो बिल्कुल नहीं सोचेगा। लेकिन दुख की बात है कि पिछले 70 वर्षों में हम सब अपनी बदहाली के लिए जिम्मेदार है। प्रशांत किशोर की ये सब बातें लोगों को पसंद आ रही हैं। लेकिन असल सवाल यह है कि सीटों की लड़ाई में वो कामयाब हो पाएंगे जिसका दावा 2025 के लिए वो कर रहे हैं। इसके जवाब में राय अलग अलग है। 

कुछ लोगों का कहना है कि इस तरह की बातें कहने और सुनने में अच्छी लगती है, कुछ दिनों तक जोश को कायम रखती है। लेकिन कोशिश बेदम हो जाती है। कुछ लोग दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उभार और सत्ता तक पहुंचने से भी जोड़ते हैं। लेकिन इस मुद्दे पर सियासी पंडित कहते हैं कि होने को तो कुछ भी हो सकता है। कौन सोच सकता था कि इंदिरा गांधी को हराकर जनता पार्टी सत्ता में आएगी लेकिन वो संभव हुआ। कौन सोचता था कि अरविंद केजरीवाल सत्ता में आएंगे। लेकिन वो भी हकीकत में तब्दील हुआ। हालांकि दिल्ली और बिहार को एक नजरिए से नहीं देख सकते। दिल्ली कास्मोपोलिटन शहर है और यहां जाति की जकड़ ढीली है। लेकिन जिस राज्य का समाज जातियों को ही प्राथमिकता देता हो वहां इस तरह का बदलाव मुमकिन नहीं लगता।

 जिस तरह से प्रशांक किशोर व्यवहारिक तौर पर बात रख रहे हैं उसे सराहना मिल रही है। उदाहरण के लिए जब वो कहते हैं सरकार बनते ही शराबबंदी खत्म कर देंगे तो उसकी सराहना इसलिए नहीं होती कि महिलाओं को अच्छा लगता है। इस वजह से होती है जब वो इससे होने वाले 20 हजार करोड़ के राजस्व के इस्तेमाल की बात करते हैं। जब वो ये बताते हैं कि इसे हम बजट का हिस्सा नहीं बनाएंगे बल्कि इस संपूर्ण राशि को शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में खर्च करेंगे। 

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