बिहार की तरक्की में 2 फीसद ईमानदारी की जरूरत, 'पीके' ने क्यों कही ऐसी बात
2 अक्टूबर को प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा संपन्न होगी। उस खास दिन वो पूर्ण रूप से सियासी अवतार में सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि आंदोलनों में उन्हें भरोसा नहीं है।
Prashant Kishor: बिहार का पतन ना तो किसी आंदोलन से हुआ है और इसका सृजन भी किसी आंदोलन से नहीं हो सकता। कुछ इसी उद्गार के साथ जन सुराज के संस्थापक अपनी बात लोगों के बीच रख रहे थे। प्रशांत किशोर ने कहा कि वो आंदोलनों में भरोसा नहीं करते। उन्होंने पिछले 2 साल में कहीं भी आंदोलन नहीं किया, धरना प्रदर्शन नहीं दिया। पटना के गांधी मैदान में मजमा इकट्ठा नहीं किया। अगर आप दुनिया के आंदोलनों को देखें तो अपवाद के तौर पर फ्रांस की क्रांति को देख सकते हैं। बाकी जगह आंदोलन से क्या हासिल हुआ। एक बनी बनाई सत्ता को हटाने में कामयाबी तो मिली। लेकिन व्यवस्था कहां बदली। पिछले दो साल में वो गांव गांव 15 से 20 की टोली में जा चुके हैं और सिर्फ एक ही अपील करते हैं कि आप लोग अपने बच्चों को पढ़ाइए। आप किसी के पीछे मत भागिए। यही नहीं जब मुर्गा भात, दारू और 500 रुपए पर वोट करेंगे तो बदले में क्या मिलेगा।
'मुर्गा भात, शराब से नहीं बनेगी बात'
प्रशांत किशोर यह भी कहते हैं कि व्यवस्था में बदलाव के लिए बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत नहीं होती। वैज्ञानिक तौर पर यह सिद्ध है कि यदि 2 फीसद लोग ईमानदारी के साथ बदलाव के लिए उठ खड़े हों तो व्यवस्था अपने आप बदल जाएगी और उनकी लड़ाई उस 2 फीसद की है। हम आंदोलन के जरिए नीतीश कुमार को सत्ता से हटा सकते हैं, लालू प्रसाद को सत्ता में आने से रोक सकते हैं। लेकिन सवाल तो यही है कि उसके बाद क्या करेंगे और वो उसी सवाल को लेकर जनता के बीच जवाब पाने के लिए निकले हैं।
प्रशांत किशोर की मंशा क्या है
अब सवाल ये कि प्रशांत किशोर की मंशा क्या है। वो कहते हैं कि व्यवस्था में बदलाव बिहार के विकास के लिए जरूरी है। जन सुराज पार्टी के जरिए वो खुद को सामाजिक से राजनीतिक शख्सियत के रूप में अवतरण करने वाले हैं और यहीं से सवाल शुरू होता है कि क्या वो उन लोगों की तरह ही तो नहीं बन जाएंगे जो व्यवस्था बदलने का दावा करते थे। भारत की सियासत में हर कालखंड में कई चेहरे लोगों के बीच आए। व्यवस्था बदलाव का लेकिन वो खुद किसी ना किसी रूप में उस सिस्टम का हिस्सा बन गए जिसे बदलने चले थे।
उम्मीदें बंधी और टूटीं
असम में प्रफुल्ल मोहंता, यूपी में मायावती, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, गुजरात में हार्दिक पटेल। प्रशांत किशोर क्या बिहार में जाति के जाल को तोड़ पाएंगे जब जाति जनगणना की पैरोकारी ना सिर्फ लालू प्रसाद यादव की पार्टी बल्कि सत्तासीन जेडीयू भी कर रही है। प्रशांत किशोर ऐसी राजनीति की बात करते हैं जिसका जाति, धर्म और मजहब सिर्फ और सिर्फ शिक्षा, रोजगार और भ्रष्टाचार मुक्त समाज हो। लेकिन जो राज्य जाति की जाल में जकड़ा हुआ हो। जहां पर नाजायज काम के साथ साथ जायज काम के लिए पैसे लिए जाते हों क्या वो स्थापित व्यवस्था को तोड़ पाएंगे। बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि प्रशांत किशोर की यात्रा को समर्थन मिला है। लेकिन इलेक्टोरल राजनीति में सिर्फ आप मुद्दों को उठा कर आगे नहीं बढ़ सकते। जमीनी स्तर पर परिवर्तन के लिए शासन व्यवस्था का हिस्सा बनना होगा और उसके लिए आपके पास जनप्रतिनिधियों की ताकत होनी चाहिए। बिहार की राजनीति में उस तरह का बदलाव क्या प्रशांत किशोर कर सकेंगे वो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन लोगों में उम्मीद जगी है।