तेजस्वी यादव ने क्यों की नीतीश के बेटे की तारीफ, बिहार में 'तीर' या 'लालटेन'
बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर महीने में होने वाला है। लेकिन सियासी पारा चढ़ने लगा है। इस बीच नीतीश कुमार के बेटे पर तेजस्वी यादव-तेज प्रताप की टिप्पणी चर्चा में है।;
इस साल के अंत में दिल्ली के बाद हिंदी पट्टी का एक और सूबा बिहार चुनावी समर का गवाह बनेगा। 2025 की लड़ाई में क्या आरजेडी की लालटेन रोशनी बिखेर सकेगी या एनडीए का तीर उसकी लौ को बुझा देगा। बिहार की राजनीति को समझने में सियासी पंडित भी उलझ जाते हैं। अब यह उलझन क्यों होती है, उसे आप इस तरह से समझ सकते हैं। बिहार की कमान नीतीश कुमार के हाथ में है। बीजेपी, हम, लोजपा सहबाला की भूमिका में है। लेकिन खुद नीतीश कुमार कब अपने सहबाला को बदल देंगे उसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। बिहार की राजनीति में इस समय दो मुद्दों पर चर्चा हो रही है। पहला तो ये कि क्या विधानसभा चुनाव तक नीतीश कुमार का साथ एनडीए के साथ ही बना रहेगा। दूसरा यह कि अब चर्चा चल पड़ी है कि उनके बेटे को सक्रिय राजनीतिक का हिस्सा होना चाहिए।
नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का वैसे सक्रिय राजनीति से नाता नहीं रहा है, हालांकि सियासत में उनके एंट्री की संभावना पर आरजेडी के दो बड़े चेहरे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ने खास बयान दिया। तेजस्वी यादव ने कहा कि यह तो अच्छी बात होगी कि बिहार की सियासत में एक और युवा चेहरे की एंट्री होगी, वहीं तेज प्रताप यादव ने कहा कि अच्छा होगा कि नीतीश जी के बेटे उनकी पार्टी का हिस्सा बन जाएं। अब तेजस्वी और तेज प्रताप ने इस तरह का बयान क्यों दिया। इसका जवाब देते हुए तेजस्वी कहते हैं कि अब जेडीयू, नीतीश कुमार की पार्टी कहां रह गई। जेडीयू पर तो बीजेपी का कब्जा हो गया है। नीतीश जी की पार्टी पर सामंती ताकतों ने प्रहार कर दिया है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि इस तरह की बात क्यों कही जा रही है। इसके लिए बिहार की जातीय गणित और 2020 के अलग अलग दलों की ताकत पर नजर डालना होगा।
बिहार के समाज में ओबीसी, एससी-एसटी समाज बहुसंख्यक है, अगड़े समाज की आबादी करीब 15 फीसद है। आरजेडी के नेता बार बार कहते हैं कि आबादी में अधिक होते भी इस ओबीसी या दूसरे अल्पसंख्यक समाज की राजनीतिक भागीदारी बेहद कम है। ऐसे में सामाजिक न्याय को साकार करने के लिए फिर से समान विचार के दलों को एक साथ आने की आवश्यकता है। हालांकि अगर आप 2020 के नतीजों को देखें तो सबसे बड़े दल के तौर पर आरजेडी का उभार हुआ था। लेकिन नीतीश की पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई। अगर दोनों की सीट संख्या को देखें तो सदन में आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन मैजिक नंबर को आसानी से छू लेती है। नीतीश में आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन नीतीश को समझ में जब आया कि उनके खुद के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो सकता है तो पाला बदल लिया।