उपराष्ट्रपति चुनाव: ‘नाम तय है, बस ऐलान बाकी’, थरूर के दावे से बढ़ा सस्पेंस
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है। इन सबके बीच शशि थरूर का कहना है कि NDA का ही होगा अगला उम्मीदवार। विपक्ष से सलाह की उम्मीद कम है।;
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के कुछ दिन बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा, लेकिन यह तय है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ही कोई नामित व्यक्ति होगा।थरूर ने कहा कि हमें केवल इतना पता है कि अगला उपराष्ट्रपति वही होगा जिसे सत्ताधारी पार्टी नामित करेगी, क्योंकि हमें पहले से ही निर्वाचक मंडल की संरचना का ज्ञान है। इसमें केवल लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य ही मतदान करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के विपरीत, जहां राज्य विधानसभा के सदस्य भी मतदान करते हैं, उपराष्ट्रपति के चुनाव में केवल संसद के दोनों सदनों की भूमिका होती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि अगला उपराष्ट्रपति सत्तारूढ़ पार्टी का ही उम्मीदवार होगा।"
थरूर ने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि केंद्र सरकार विपक्ष से इस पर बातचीत करेगी।हमें उम्मीद है कि वे विपक्ष से भी सलाह-मशविरा करेंगे, लेकिन कौन जानता है
चुनाव कार्यक्रम घोषित
भारत के अगले उपराष्ट्रपति का चुनाव 9 सितंबर को होगा। चुनाव आयोग ने बताया कि इसकी अधिसूचना 7 अगस्त को जारी की जाएगी और नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 21 अगस्त होगी। चुनाव परिणाम मतदान वाले दिन यानी 9 सितंबर को ही घोषित किए जाएंगे।
उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है, जिसमें राज्यसभा के निर्वाचित और नामित सदस्य तथा लोकसभा के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।दोनों सदनों की कुल सदस्य संख्या 782 है। ऐसे में, यदि सभी सदस्य मतदान करते हैं, तो किसी उम्मीदवार को जीत के लिए 391 वोटों की आवश्यकता होगी। वर्तमान में NDA के पास लोकसभा में 542 में से 293 और राज्यसभा में 240 में से 129 सदस्यों का समर्थन है, जिससे सत्तारूढ़ गठबंधन के पास कुल 422 सांसदों का समर्थन है।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा और पृष्ठभूमि
जगदीप धनखड़, जिन्होंने अगस्त 2022 में 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला था, ने 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के पहले दिन स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। हालांकि उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, सूत्रों के अनुसार उनके और केंद्र सरकार के बीच विश्वास में दरार आ गई थी।
धनखड़ और केंद्र सरकार के बीच मतभेद उस समय और बढ़ गए जब उन्होंने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग के मुद्दे पर सरकार की लाइन से अलग रुख अपनाया।उपराष्ट्रपति रहते हुए, धनखड़ राज्यसभा के पदेन सभापति भी थे और उन्होंने कई अहम सत्रों की अध्यक्षता की थी।पिछले एक साल में उनकी स्वास्थ्य स्थिति कई बार बिगड़ी, और हाल ही में उन्हें नैनीताल में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। हालांकि उनकी बीमारी का विस्तृत विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है।
यह घटनाक्रम न केवल भारत के उच्च संवैधानिक पद पर बदलाव की ओर इशारा करता है, बल्कि सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच संवाद की स्थिति पर भी सवाल खड़ा करता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार विपक्ष को भरोसे में लेकर सर्वसम्मति की ओर बढ़ेगी, या फिर यह चुनाव भी केवल संख्या बल के सहारे निपट जाएगा।