क्या केरल बीजेपी के लिए सुरेश गोपी बन गए हैं दोधारी तलवार, इनसाइड स्टोरी
सुरेश गोपी की खूबियां जो कभी उन्हें भीड़ खींचने वाला नेता बनाती थीं अब केरलBJP के लिए सिरदर्द बन गई हैं। अलग-थलग रहने की प्रवृत्ति जो उनकी ताकत थी, अब वही बोझ है।;
पिछले हफ्ते, राज्यसभा में, केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने ऐसा प्रदर्शन किया जो मानो उनकी किसी ब्लॉकबस्टर मलयालम फिल्म से सीधा उठा लिया गया हो। तारीख थी 3 अप्रैल, और वक्फ (संशोधन) विधेयक (अब अधिनियम) पर बहस चरम पर थी। जब वे सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास से भिड़े, तो केवल बहस नहीं की—बल्कि फट पड़े। उनकी आवाज गूंजी, हावभाव उग्र, और उन्होंने ब्रिटास के तीखे तंजों का जवाब नाटकीय अंदाज़ में दिया, जिससे पूरा सदन गूंज उठा। यह था सुरेश गोपी का पार्लियामेंट वाला अंदाज़—पुराने ज़माने की झलक, बेमिसाल, और पूरी तरह अनपेक्षित।
ब्रिटास ने सत्तापक्ष की तुलना "मुन्ना" से की
एक विवादित फिल्म L2: एंपुरान के ‘घातक’ किरदार से, और इशारा किया कि भाजपा का असर केरल के लिए ज़हर जैसा है, जिसे राज्य नकार देगा। लेकिन गोपी पीछे हटने वालों में नहीं हैं। उन्होंने पलटवार करते हुए ब्रिटास और सीपीआई(एम) समर्थित कैरली टीवी को चुनौती दे डाली कि वे फिर से राजनीतिक फिल्मों जैसे TP 51 और लेफ्ट राइट लेफ्ट को रिलीज़ करें, जिनमें सीपीआई(एम) की आलोचना की गई थी।
"क्या उनमें हिम्मत है?" उन्होंने गरजते हुए कहा, उनकी आंखें अंगारे सी, और उंगली हवा में लहराते हुए जैसे कोई हीरो विलेन से भिड़ रहा हो। यह था सुरेश गोपी का क्लासिक अंदाज़ बड़ा, बेलगाम और अप्रत्याशित।
जनता के नायक
यह सब तब हुआ जब उन्होंने लोकसभा में एक दिन पहले ही घोषणा की थी कि केरल विधानसभा द्वारा वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव "अरब सागर में डूबा दिया जाएगा"। केरल से भाजपा के पहले लोकसभा सांसद चुने जाने से पहले, गोपी की छवि एक जनप्रिय व्यक्ति की रही थी। उनके चुनाव पूर्व किस्सों में वे एक रहस्यमय करिश्माई व्यक्तित्व नज़र आते थे—कभी उन्होंने अपना काफिला रोककर एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर को सैल्यूट करने का आदेश दिया, जैसे वे फिल्मों में कमिश्नर की भूमिका में देते थे। एक और किस्सा था जब वे त्रिशूर में मछली विक्रेताओं की भीड़ में घुसकर उनके अधिकारों के लिए लड़ने का वादा करते नज़र आए।उनके समर्थकों ने उन्हें एक असली नायक माना जो अपने फिल्मी जोश को राजनीतिक जीत में बदल सकता था।
स्टार पॉवर का दांव
केरल की राजनीति की सख्त दीवार को तोड़ने के लिए भाजपा ने गोपी की स्टार पॉवर पर दांव लगाया। और कुछ समय के लिए, यह कारगर भी रहा—उनकी रैलियाँ जोशीली थीं, भाषणों में आक्रोश और जनप्रिय वादों का मिश्रण था। वे चर्चों और मस्जिदों में भी गए—लूर्ड्स मेट्रोपॉलिटन कैथेड्रल को सुनहरा मुकुट भेंट किया और एक मस्जिद से रमज़ान का खीर (पोरिज) भी प्राप्त किया।
हालांकि, वे विवादों से भी अछूते नहीं रहे। एक महिला टीवी रिपोर्टर के प्रति उनका असम्मानजनक बर्ताव, जिसमें उन्होंने रिपोर्टर की स्पष्ट असहमति के बावजूद उसे छू लिया, एक एफआईआर तक ले गया।
केरल बीजेपी के लिए सिरदर्द
अब, जब वे केंद्रीय मंत्री हैं, तो वही गुण जो उन्हें कभी जनप्रिय बनाते थे, अब पार्टी के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं।राज्यसभा के उस मुकाबले से कुछ दिन पहले कोच्चि एयरपोर्ट के बाहर पत्रकारों से हुई उनकी झड़प इसका ताज़ा उदाहरण है। जब उनसे जबलपुर में ईसाइयों पर हुए हमले को लेकर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने संयम नहीं रखा। उनकी आवाज गूंजने लगी—"तुम कौन हो? मुझे मीडिया से कुछ नहीं कहना! मेरे शब्द जनता के लिए हैं। बहुत हो गया तुम्हारा बकवास!" कहकर वे हाथ लहराते हुए वहां से निकल गए। यह पूरा दृश्य वायरल हो गया।
जब जॉन ब्रिटास ने कहा कि वे भाजपा का थ्रिसूर में खोला गया खाता बंद कर देंगे, तो गोपी ने आक्रामक अंदाज़ में जवाब दिया और एक शब्द को अपशब्द कहकर बदलने की सलाह दी।
राजनेता कम, सेलिब्रिटी ज़्यादा
जहाँ उनके प्रशंसकों को यह सुरेश गोपी का ‘एक्शन अवतार’ लगा, वहीं भाजपा के लिए यह एक और संकट बन गया। यहां तक कि उनके शुभचिंतक भी असहज हो गए—एक मंत्री, जो राजनेता कम और तुनकमिज़ाज सेलिब्रिटी ज़्यादा लग रहे थे।जब पत्रकारों ने भाजपा के नवनियुक्त राज्य अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर से इस पर पूछा, तो उन्होंने टालते हुए कहा, "मैंने पूरा मामला देखा नहीं है, किसने किसको उकसाया पता नहीं, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा।"
हर तरफ आलोचना
सीपीआई(एम) सांसद ब्रिटास ने कहा, "सुरेश गोपी एक भोले इंसान हैं जो अब भी स्क्रिप्ट राइटरों की लय पर चलते हैं। उन्होंने अपने फिल्मी किरदार को नहीं छोड़ा है। यहां तक कि उनके अपने पार्टी सहयोगी भी उनके नाटकीय अंदाज़ से खुश नहीं हैं। उन्हें राजनीति के लिए एक स्क्रिप्ट राइटर मिल जाना चाहिए—जैसे फिल्मों के लिए मिला करता था।"
केरल वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन (KUWJ) ने अपने विरोध पत्र में कहा, "सुरेश गोपी को मीडिया के प्रति यह शत्रुता समाप्त करनी चाहिए। एक केंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी गैर-जिम्मेदार प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि वे उस भूमिका में ढल नहीं पाए हैं। यह तमाशा अब बंद होना चाहिए।"
केरल बीजेपी में बढ़ती बेचैनी
यह फटकार इसलिए भी चुभी क्योंकि यह एक ऐसे संगठन की तरफ से आई थी जिसने पहले गोपी को संदेह का लाभ दिया था। पार्टी के वरिष्ठ नेता पहले से ही उनके अनियंत्रित स्वभाव से परेशान थे। प्रेस को उनका यह रवैया सिर्फ निजी झल्लाहट नहीं था—बल्कि भाजपा की केरल में तैयार की गई छवि में एक दरार था।
विवादित टोपी
इसके बाद केरल के परिवहन मंत्री केबी गणेश कुमार का तंज आया: "मैंने चुनाव से पहले ही कहा था कि वह (गोपी) ऐसे ही होंगे। वो वही आदमी हैं जो एक फिल्म में आईपीएस ऑफिसर बनने के बाद अपनी कार में पुलिस की टोपी लगाकर घूमते थे।" उन्होंने कहा, "जिन्होंने चुनाव के वक्त कहा था कि ‘कोई बड़ी बात नहीं’, अब मज़ा लें।"
हालाँकि, इसके तुरंत बाद गोपी की सोशल मीडिया टीम ने एक वीडियो साझा किया जिसमें वे वही पुलिस की टोपी एक 12 वर्षीय मुस्लिम लड़के को सौंपते नज़र आ रहे हैं—एक घरेलू हिंसा के शिकार बच्चे को।
दोधारी तलवार
'द फेडरल' से बात करते हुए कई भाजपा नेताओं ने उन्हें "जोशीला" बताया, लेकिन उनका स्वर संयमित और खिंचा-खिंचा सा था। "हम एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं," उन्होंने कहा। लेकिन निजी तौर पर असंतोष झलक रहा था—"वो पार्टी मजबूत करने से ज्यादा हीरो बनने पर ध्यान दे रहे हैं। हमें अनुशासन चाहिए, न कि नाटक।"कभी भाजपा का 'ट्रंप कार्ड' माने गए सुरेश गोपी अब दोधारी तलवार बनते जा रहे हैं। उनकी स्टार पॉवर अब भी भीड़ खींच सकती है, लेकिन उनके कारनामे उसी पार्टी मशीनरी को दूर कर रहे हैं जिसे वे मज़बूत करने आए थे।
राज्यसभा में ब्रिटास से उनका सामना सोशल मीडिया पर हिट हुआ। लेकिन पार्टी के ज़मीनी काम में कुछ खास फायदा नहीं हुआ। पत्रकारों से उनकी झड़प ने उनके अनुभवहीन नेता की छवि को और मज़बूत किया, और गणेश कुमार का ताना व पत्रकार संघ की फटकार ने उनके पतन की कहानी को और बल दी।
भाजपा ने सुरेश गोपी पर बड़ा दांव लगाया था। लेकिन अब सवाल उठ रहा हैक्या उनका ये एक्शन हीरो बनने का जोश पार्टी के लिए फायदेमंद है या नुक़सानदेह?