आवारा कुत्तों पर सख्ती, सुप्रीम कोर्ट ने दिए कड़े निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में आवारा कुत्तों को तुरंत हटाने और 5,000 क्षमता वाले शेल्टर बनाने का आदेश दिया, डॉग बाइट रोकने हेतु हेल्पलाइन भी बनेगी।;
Delhi Stray Dogs News: दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या को “बेहद गंभीर” बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 अगस्त) को दिल्ली सरकार और नगर निकायों को निर्देश दिया कि सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को तुरंत हटाकर डॉग शेल्टर में रखा जाए।कुत्तों के काटने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अदालत ने कई दिशा-निर्देश जारी किए और चेतावनी दी कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन अधिकारियों द्वारा आवारा कुत्तों को उठाने की कार्रवाई में बाधा डालता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कुत्तों के लिए शेल्टर का निर्माण
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि फिलहाल ऐसे डॉग शेल्टर बनाए जाएं जिनमें लगभग 5,000 आवारा कुत्तों को रखा जा सके, और वहां पर्याप्त कर्मचारी तैनात हों जो कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण कर सकें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इन कुत्तों को सड़कों, कॉलोनियों और सार्वजनिक स्थानों पर वापस नहीं छोड़ा जाए।
पीठ ने कहा, “हम यह निर्देश व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए जारी कर रहे हैं।” अदालत ने जोर दिया कि किसी भी कीमत पर शिशु और छोटे बच्चे आवारा कुत्तों के काटने और उसके कारण होने वाले रेबीज़ के शिकार न हों।
हेल्पलाइन शुरू करने का निर्देश
अदालत ने अधिकारियों को एक सप्ताह के भीतर हेल्पलाइन शुरू करने का आदेश दिया, ताकि सभी डॉग बाइट मामलों की तुरंत सूचना दर्ज की जा सके।गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को स्वत: संज्ञान लेते हुए एक मीडिया रिपोर्ट पर कार्रवाई शुरू की थी, जिसमें दिल्ली में कुत्ते के काटने से हुई रेबीज़ की घटना का जिक्र था।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने सुनवाई की। अदालत ने यह कदम एक समाचार रिपोर्ट को देखते हुए उठाया, जिसमें आवारा कुत्तों के हमलों के बाद बढ़ते रेबीज़ मौतों का जिक्र था। कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस मामले में केवल केंद्र सरकार की दलीलें सुनी जाएंगी, किसी डॉग लवर या अन्य पक्ष की याचिका नहीं।
'यह जनहित के लिए'
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, हम यह अपने लिए नहीं, बल्कि जनहित के लिए कर रहे हैं। इसमें किसी भी तरह की भावनाएं नहीं आनी चाहिए, तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए।” उन्होंने अमीकस क्यूरी गौरव अग्रवाल से कहा सभी इलाकों से कुत्तों को उठाकर शेल्टर में भेजो, फिलहाल नियम भूल जाओ।
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं पर सवाल
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि दिल्ली में आवारा कुत्तों को स्थानांतरित करने के लिए एक जगह चिन्हित की गई थी, लेकिन पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की याचिका पर रोक लग गई। इस पर पीठ ने कहा, क्या ये कार्यकर्ता उन लोगों को वापस ला सकते हैं जो रेबीज़ से मारे गए? हमें सड़कों को पूरी तरह आवारा कुत्तों से मुक्त करना है। अदालत ने यह भी कहा कि फिलहाल किसी को भी आवारा कुत्ता गोद लेने की अनुमति नहीं होगी।
शेल्टर निर्माण और सुरक्षा प्रबंध
दिल्ली-एनसीआर (दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम) के नगर निकायों को तुरंत डॉग शेल्टर बनाने, आवारा कुत्तों को वहां शिफ्ट करने और कोर्ट को अपडेट देने के आदेश दिए गए हैं। इन शेल्टरों में प्रशिक्षित कर्मचारी हों, जो नसबंदी और टीकाकरण कर सकें। कुत्तों को बाहर नहीं छोड़ा जाएगा और भागने से रोकने के लिए सीसीटीवी लगाए जाएंगे। साथ ही, डॉग बाइट की शिकायतों के लिए हेल्पलाइन शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि
मेहता ने कहा, “कुछ डॉग लवर्स के कारण हम अपने बच्चों की जान दांव पर नहीं लगा सकते। अदालत ने कहा कि नगर निकाय चाहें तो विशेष बल बना सकते हैं और जो भी इस कार्रवाई में बाधा डालेगा, उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होगी।
तत्काल और सख्त कार्रवाई का आदेश
आदेश में कहा गया एनसीटी दिल्ली, एमसीडी और एनएमडीसी तुरंत सभी इलाकों, खासतौर पर संवेदनशील जगहों से कुत्ते उठाना शुरू करें। यदि इसके लिए बल बनाना पड़े, तो तुरंत बनाएं। कोई समझौता न किया जाए और एक भी कुत्ता वापस न छोड़ा जाए, वरना कड़ी कार्रवाई होगी।
रेबीज़ वैक्सीन पर चिंता
अदालत ने कहा कि रेबीज़ वैक्सीन की उपलब्धता पर भी ध्यान देना जरूरी है। दिल्ली सरकार को आदेश दिया गया कि वैक्सीन उपलब्ध स्थानों, स्टॉक और हर महीने इलाज कराने आने वाले लोगों की संख्या की जानकारी सार्वजनिक करे।
आंकड़े बताते हैं गंभीर स्थिति
दिल्ली नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी से जून 2024 के बीच 49 रेबीज़ के मामले दर्ज हुए, जबकि इसी अवधि में 35,198 पशु काटने की घटनाएं सामने आईं। रेबीज़ एक वायरल संक्रमण है, जो मुख्यतः कुत्ते के काटने से फैलता है और इसकी मृत्यु दर बेहद ऊंची है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल करीब 60,000 लोग इसकी चपेट में आकर जान गंवाते हैं, जिनमें 36 फीसद मामले भारत के हैं।