सीधी भर्ती बनाम प्रमोशन: उत्तराखंड सरकार के फैसले पर शिक्षकों का फूटा गुस्सा

Principal Direct Recruitment Dispute: उत्तराखंड के 1,385 सरकारी इंटर कॉलेजों में प्रिंसिपल के कई पद खाली हैं. सरकार ने इनमें से 50% पदों पर सीधी भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग के जरिए विज्ञप्ति जारी कर दी है, जिससे विरोध और तेज हो गया है.

Update: 2025-09-24 11:09 GMT
प्रदर्शन करते शिक्षक
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Uttarakhand Teachers Protest: उत्तराखंड सरकार के प्रधानाचार्य के पदों पर सीधी भर्ती करने के फैसले को लेकर शिक्षकों का विरोध लगातार जारी है. उनका कहना है कि यह भर्ती प्रक्रिया नाइंसाफी भरी है और इससे सीनियर और योग्य शिक्षकों के हक मारे जा रहे हैं. शिक्षकों की मांग है कि प्रिंसिपल के सारे पद पदोन्नति (Promotion) के जरिए ही भरे जाएं, न कि सीधे भर्ती से. राज्य के शिक्षक संगठन ने इसे हजारों शिक्षकों के साथ अन्याय बताया है और इस फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की है.

क्या है मामला?

उत्तराखंड के 1,385 सरकारी इंटर कॉलेजों में प्रिंसिपल के कई पद खाली हैं. सरकार ने इनमें से 50% पदों पर सीधी भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग के जरिए विज्ञप्ति जारी कर दी है. पिछले साल भी जब सरकार ने यही भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी तो शिक्षकों के विरोध के बाद इसे रोक दिया गया था. अब इस साल फिर से यही प्रक्रिया दोहराई जा रही है और एलटी (LT) ग्रेड के शिक्षकों को भी शामिल कर लिया गया है, जिससे विरोध और तेज हो गया है.

हाई कोर्ट में मामला

उत्तराखंड हाई कोर्ट में 25 सितंबर को इस मामले की सुनवाई होनी है. शिक्षक संघ का कहना है कि कोर्ट के आदेश के बाद ही अगली रणनीति बनाई जाएगी. कोर्ट के कहने पर शिक्षा विभाग ने तीन अलग-अलग वरिष्ठता सूची (Seniority List) तैयार की है, जो 24 सितंबर तक कोर्ट में पेश की जाएगी.

शिक्षकों का विरोध

शिक्षकों का कहना है कि जो लोग सालों से सेवा दे रहे हैं, उन्हें नजरअंदाज करके नए लोगों की भर्ती करना अन्याय है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए नियम बदल रही है, जिससे शिक्षकों का भविष्य अंधकार में जा रहा है. उनका कहना है कि हम वर्षों से पदोन्नति (Promotion) की उम्मीद लगाए बैठे हैं. लेकिन सरकार सीधे नई भर्तियां कर रही है.


 



मौन जुलूस निकालते शिक्षक

शिक्षकों की आपत्ति?

शिक्षकों का कहना है कि प्रधानाचार्य का पद हमेशा से पदोन्नति का रहा है. साल 2008 तक शिक्षक प्रमोशन पाकर जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) तक बनते रहे हैं. लेकिन अब, इन पदों को सीधी भर्ती के जरिए भरा जा रहा है, जो पुराने शिक्षकों के साथ अन्याय है. कई शिक्षक बिना प्रमोशन पाए ही रिटायर हो रहे हैं.

इतिहास और नियमों का हवाला

1 मार्च 2009 को शिक्षा विभाग में अकादमिक और प्रशासनिक पदों को अलग करने की सिफारिश की गई थी. इसके लिए साल 2011 में नई नियमावली बनाई गई. लेकिन शिक्षक संघ का कहना है कि इन बदलावों से ज्यादातर शिक्षकों के हितों की अनदेखी की जा रही है.

पिथौरागढ़ शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रवीण रावल ने 'द फेडरल देश' से बात करते हुए बताया कि उत्तराखंड में जितने भी हेडमास्टर (छठीं से 10वीं तक के स्कूल) और प्रिसिंपल (छठीं से 12वीं तक के स्कूल) के पद हुआ करते थे, वे सब प्रमोशन से भरे जाते रहे हैं. इनमें 55 फीसदी पद एलटी ग्रेड कोटे से और 45 फीसदी पद लैक्चरर से भरे जाते थे. लेकिन उत्तराखंड सरकार ने कोर्ट में सीनियरिटी को लेकर चल रहे विवाद का बहाना बनाकर साल 2018-19 से शिक्षकों के प्रिंसिपल के पद पर प्रमोशन नहीं किए. अब सरकार सीनियर शिक्षकों का प्रमोशन न कर सीधी भर्ती से 50 फीसदी पदों को भरना चाह रही है, जिसका हम विरोध कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि पिथौरागढ़ जिले की बात करूं तो यहां लगभग 128 इंटर कॉलेज हैं और उनमें महज 3 प्रिंसिपल हैं. गौर करने वाली बात तो यह है कि उनमें से 2 प्रिंसिपल रिटायर्ड हो चुके हैं और एक्सटेंशन में चल रहे हैं. इसके अलावा इस जिले में 86 हाईस्कूल हैं और उनमें से केवल एक में हेडमास्टर है, वह भी रिटायर होने वाले हैं. अभी इस जिलें में प्रिंसिपलों की स्थिति ऐसी है तो राज्य के 12 जिलों में क्या होगी, इसका आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं.

प्रवीण रावल ने बताया कि शिक्षकों की मांग है कि जैसे प्रमोशन होते आए हैं, वैसे ही हों. वहीं, सरकार की मंशा से साफ पता चलता है कि वह कोर्ट में लंबित सीनियरिटी के मामलों को निपटाना नहीं चाहती, यही वजह है कि प्रिंसिपलों के पदों की सीधी भर्ती निकाल रही है. ऐसा नहीं है कि सरकार से राजकीय शिक्षक संघ की बातचीच नहीं हुई, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए कोई हल निकलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं.

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