अवैध ट्रिब्यूनल और राजनीतिक भूचाल, शेख हसीना केस से क्यों हिले हालात?

बांग्लादेश में शेख हसीना का ना होना, फांसी की सजा और अवामी लीग पर प्रतिबंध के बाद राजनीतिक संकट गहरा गया है। छात्र आंदोलन, अंतरिम सरकार और भारत संबंधों पर भी असर बढ़ा है।

Update: 2025-11-19 01:42 GMT

बांग्लादेश इस समय अपने इतिहास के सबसे अस्थिर और तनावपूर्ण चरणों में से एक से गुजर रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अनुपस्थिति में फांसी की सजा सुनाए जाने और उनकी पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोक देने के बाद देश में राजनीतिक रिक्तता, गहरा ध्रुवीकरण और एक ऐसा अंतरिम शासन उभर आया है, जिस पर अतिक्रमण और मनमानी के आरोप लग रहे हैं।

इस विशेष बातचीत में बांग्लादेश के पूर्व शिक्षा मंत्री महीबुल हसन चौधरी बताते हैं कि वे इस फैसले को क्यों अवैध मानते हैं, छात्र आंदोलन किस तरह शासन परिवर्तन में बदल गया, और इस संकट का भारत–बांग्लादेश संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

क्या आप शेख हसीना को मौत की सजा की उम्मीद कर रहे थे? आपका कानूनी और राजनीतिक रुख क्या है?

सबसे पहले हमने इस फैसले में मौजूद कानूनी विसंगतियों पर प्रतिक्रिया दी। अंतरिम सरकार के पास संसद द्वारा पारित कानून में संशोधन करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं था। संसद के अभाव में उन्होंने कानून में अवैध बदलाव किए, ताकि हमें और अवामी लीग के नेताओं को निशाना बनाया जा सके। पूरा न्यायिक प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण रही—ट्रिब्यूनल के जज पिछले एक महीने से अनुपस्थित थे और कथित तौर पर घर से ही सुनवाई देखते थे।

हमें पता था कि यह सब होने वाला है। उनका उद्देश्य अवामी लीग की शीर्ष नेतृत्व को हटाना और पार्टी की राजनीतिक संरचना को नष्ट करना है। 8 अगस्त 2024 को सत्ता संभालते ही उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए। जमीनी स्तर से लेकर शीर्ष तक जो ‘पर्ज’ किया गया, उसने पार्टी कैडर और जनता के बीच एक स्वाभाविक एकता पैदा कर दी है।

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हम जानते हैं कि लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है और जब भी हम आंदोलन की घोषणा करेंगे, जनता स्वतः सड़कों पर उतरेगी। यह ट्रिब्यूनल ही अवैध है, हमें अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया, और इस सजा के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है। उन्हें भी पता है कि यह फैसला लागू नहीं किया जा सकता—यह सिर्फ हमें बदनाम करने का PR स्टंट है। वे संभवतः मनगढ़ंत अपील दाखिल करने का नाटक भी कर सकते हैं।लेकिन हम अपना विरोध आंदोलन शुरू करेंगे।

क्या यह अवामी लीग के स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा संकट है?

स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा संकट नहीं। 1975 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी—सिर्फ शेख हसीना और शेख रेहाना बचीं क्योंकि वे देश से बाहर थीं। हजारों कार्यकर्ताओं की हत्या हुई, पार्टी पर प्रतिबंध लगा, और देश सैन्य तानाशाही में चला गया।फिर भी अवामी लीग बची, क्योंकि यह बांग्लादेश के इतिहास और सामाजिक संस्कृति में गहराई से जुड़ी है।

2001–2006 के बीच BNP–जमात सरकार द्वारा अवामी लीग पर अत्याचार किए गए, करीब 3,000 कार्यकर्ता मारे गए। अवामी लीग सिर्फ राजनीतिक दल नहीं—यह उदार, धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील विचारधारा का प्रतीक है, जिसके कई कार्यकर्ताओं ने अपने परिवार खोए हैं।खुद मेरे परिवार ने कीमत चुकाई—मैं चार साल का था जब बम विस्फोट में मेरी मां की मौत हुई। मैं कुछ सेकंड से बचा। मेरे पिता बिना मुकदमे के वर्षों जेल में रहे। हमने हमेशा अत्याचार झेले हैं और हर बार राख से उठे हैं।

छात्र आंदोलन जिसने शेख हसीना सरकार को गिरा दिया—क्या सरकार इससे अलग तरह निपट सकती थी?

हमने शुरुआत से ही छात्रों के प्रति नरमी बरती। 1 जुलाई से छात्र ढाका की सड़कों पर बैठे थे। पुलिस भी कई जगहों पर उनके प्रदर्शन को सुविधा दे रही थी। लेकिन जैसे-जैसे हिंसा बढ़ी, कई लोगों ने सुझाव दिया कि हम तुरंत सभी मांगें मान लें।हमने कहा कि मामला हाई कोर्ट में लंबित है, हम सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन मामले में दखल नहीं दे सकते। फिर भी हमने आश्वासन दिया था कि मांगें पूरी होंगी। लेकिन प्रदर्शन का वास्तविक एजेंडा अलग था—खून-खराबा, दंगे और विनाश। स्थिति नियंत्रण से बाहर होते ही पुलिस पर बर्बर हमले शुरू हुए—थाने जला दिए गए, पुलिसकर्मियों को पीटा गया। उन्हें आत्मरक्षा करनी पड़ी। स्थिति और बिगड़ी तो हमें सेना बुलानी पड़ी।

इस बार पूरा प्लान ढाका शहर पर कब्ज़ा करने का था—एक सुविचारित रेजीम चेंज ऑपरेशन। बाद में खुद आंदोलनकारियों ने मीडिया में स्वीकार किया कि वे शुरू से झूठ बोल रहे थे और उनका लक्ष्य सरकार गिराना था। उन्होंने स्वीकार किया कि वे पुलिस की हत्या और शहरी गुरिल्ला युद्ध तक के लिए तैयार थे।

इसके पीछे विदेशी समर्थन था।

डॉ. मुहम्मद यूनुस ने स्वयं विदेशी सहायता का दावा किया। वे अत्यंत संपन्न हैं—ग्रामीनफोन में 25% हिस्सेदारी और ग्रामीन बैंक से मिली संपत्तियों के कारण। विवाद तब शुरू हुआ जब उन्होंने बड़े डिविडेंड पर टैक्स न देने का दावा किया और कहा कि पैसा “सोशल वेंचर” में गया। लेकिन उसका कोई लेखा-जोखा नहीं था। भारी राशि विदेश भेजी गई, जो अवैध था। वे एक समानांतर प्रणाली चला रहे थे।2007 से वे कई बार शासन परिवर्तन की कोशिश कर चुके थे, और अंततः 2024 में सफल हुए।

अवामी लीग पर चुनावी प्रतिबंध के बीच पार्टी का भविष्य क्या है?

असल सवाल यह नहीं है कि अवामी लीग लौटेगी या नहीं—वह लौटेगी ही। असली सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश स्थिरता वापस पा सकेगा।फरवरी के चुनाव अगर एकतरफा हुए और अवामी लीग को रोका गया, तो कोई भी नतीजा वैधता नहीं पाएगा।कमजोर जनादेश वाली सरकार ज्यादा समय नहीं चलती। सेना अभी समाज और सत्ता के बीच एक “बफर” है, लेकिन वह हमेशा पुलिस का काम नहीं कर सकती। एक बार सेना हटेगी, कमजोर सरकार गिर जाएगी।

अवामी लीग प्रतिरोध की पार्टी है। उसने पाकिस्तान की सेना, उसकी तानाशाहियों और बांग्लादेश की सैन्य तानाशाहियों—सबके खिलाफ लड़ाई लड़ी है। वह सत्ता से बाहर रहकर भी जीवित रहती है। अभी ही अंतरिम सरकार के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं, इसलिए वे जल्दबाज़ी में चुनाव कराने में लगे हैं। यह संकट भारत–बांग्लादेश संबंधों को कैसे प्रभावित करेगा? क्या भारत पर शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने का दबाव होगा?

भारत पर किसी का दबाव नहीं चल सकता—न अमेरिका का, न बांग्लादेश का।

भारत–बांग्लादेश संबंध परस्पर निर्भरता पर आधारित हैं। भारत के लिए बांग्लादेश में 17 करोड़ लोगों की स्थिरता बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि गरीबी और उग्रवाद के खतरे भारत को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। भारत एक स्थिर बांग्लादेश चाहता है।लोगों के बीच रिश्ते मजबूत हैं—काम, इलाज और आजीविका के लिए लाखों बांग्लादेशी भारत आते हैं। लेकिन कुछ नेता—जैसे डॉ. यूनुस—राजनीतिक समर्थन न होने के कारण उग्र बयान देते हैं, भारत पर टिप्पणी करते हैं, पाकिस्तान से नज़दीकी बनाते हैं—जो BNP तक नहीं करती।

अंतरिम शासन जवाबदेह नहीं है, इसलिए वे मनमानी कर रहे हैं।

बांग्लादेश कच्चे माल, खाद्य आपूर्ति और निर्यात उद्योगों के लिए भारत पर निर्भर है। हमारी खाद्य सुरक्षा भी कमजोर है, इसलिए हमें भारत के साथ व्यापार बनाए रखना ही होगा।वास्तविक खतरा उन उग्रवादी तत्वों से है—जमात-ए-इस्लामी और अंतरिम नेतृत्व—जो मिलिशिया, हथियारबंद युवकों और ग़ज़वा-ए-हिंद जैसी खतरनाक कल्पनाओं को हवा दे रहे हैं। लेकिन मुख्यधारा की राजनीतिक, सैन्य और प्रशासनिक नेतृत्व यूक्रेन या म्यांमार जैसा संकट नहीं चाहता। समस्या यह है कि जो लोग सत्ता में हैं, वे अराजकता में ही जीवित रह सकते हैं।

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