होर्मुज जलमार्ग पर मंडराया जंग का साया: भारत ही नहीं, चीन-जापान जैसे देशों की बढ़ी धड़कन

IEA के अनुसार, 2022 में होर्मुज से गुजरने वाला करीब 82% कच्चा तेल एशिया के लिए था. इसमें भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही.;

Update: 2025-06-19 15:39 GMT

Iran-Israel War: ईरान और इजरायल के बीच छिड़ी जंग अब महज दो देशों तक सीमित नहीं रह गया है. इस संघर्ष की लपटें पूरी दुनिया तक फैल रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह दुनिया का सबसे संवेदनशील तेल रूट 'होर्मुज जलडमरूमध्य' है. अगर यह रास्ता बंद हुआ तो भारत से लेकर अमेरिका तक हर देश को तेल संकट का सामना करना पड़ सकता है.

होर्मुज जलडमरूमध्य 33 किलोमीटर चौड़ा है और फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है. दुनिया के करीब 20% कच्चे तेल का व्यापार इसी रास्ते से होता है. ईरान कई बार इस रास्ते को बंद करने की धमकी दे चुका है. अगर यह जलमार्ग बंद हुआ तो पूरी दुनिया में तेल और गैस की कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं.

तेल का संकट तय

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मुताबिक, अगर ईरान इस रास्ते को थोड़े समय के लिए भी रोकता है तो दुनियाभर में तेल और गैस की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है. IEA का यह भी कहना है कि अगर सब कुछ सामान्य रहा तो 2030 तक यहां से हर दिन 105.5 अरब बैरल तेल की सप्लाई हो सकती है.

भारत पर भी असर

दुनिया की सबसे बड़ी तेल टैंकर कंपनी ‘फ्रंटलाइन’ ने कहा है कि वह अब होर्मुज जलमार्ग से कोई नया कॉन्ट्रैक्ट नहीं ले रही है. इसका असर तेल के दामों पर दिखने लगा है, जो लगातार बढ़ रहे हैं. हर महीने इस जलमार्ग से 3,000 से ज्यादा वाणिज्यिक जहाज गुजरते हैं. भारत भी इस रास्ते से 90% तक कच्चा तेल आयात करता है.

IEA के अनुसार, 2022 में होर्मुज से गुजरने वाला करीब 82% कच्चा तेल एशिया के लिए था. इसमें भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही. भारत अकेले ही अपने 40% से ज्यादा कच्चे तेल की ज़रूरतें मध्य पूर्व के देशों से इसी रास्ते के ज़रिए पूरी करता है.

भारत ने पहले भी तैनात की थी नौसेना

साल 2019 में जब इसी जलमार्ग पर टैंकरों पर हमले शुरू हुए थे, तब भारत ने अपनी नौसेना को तैनात कर दिया था. साथ ही ईरान के साथ ‘होर्मुज शांति पहल’ के तहत कूटनीतिक बातचीत भी की थी. तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हाल ही में आश्वासन दिया है कि भारत के पास 74 दिनों का तेल भंडार है. इसके अलावा IOC, BPCL और HPCL जैसी कंपनियों के पास भी अलग-अलग भंडार हैं, जो देश को संकट से बचा सकते हैं.

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