श्रीलंका यात्रा में मोदी की प्राथमिकता: मछुआरे और चीन के बढ़ते प्रभाव पर चर्चा
प्रधानमंत्री की यात्रा से भारत-श्रीलंका के बीच मछली पकड़ने के विवाद के समाधान की उम्मीद जगी है और यह यात्रा हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ नई दिल्ली के प्रतिरोध के बीच हो रही है.;
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 और 5 अप्रैल को श्रीलंका की राजकीय यात्रा पर जा रहे है. इस यात्रा के दौरान स्थानीय मुद्दों और भू-राजनीतिक रणनीतियों का समागम देखने को मिल रहा है. तमिलनाडु के मछुआरे, जो श्रीलंकाई जेलों में क़रीब 90 मछुआरों की बंदी की स्थिति से जूझ रहे हैं, इस यात्रा को एक नए समाधान की उम्मीद के तौर पर देख रहे हैं.
समाधान की आवश्यकता
रामेश्वरम मछुआरी समुदाय के प्रतिनिधि वीपी जेसुराज, जो हाल ही में श्रीलंकाई उत्तरी प्रांत में मछुआरों के साथ बातचीत कर चुके थे, ने The Federal से कहा कि हमारे 80 से ज्यादा मछुआरे श्रीलंका में बंद हैं और उनकी रिहाई की आवश्यकता है. वे 2016 में सुषमा स्वराज द्वारा किए गए प्रयासों की विफलता को याद करते हुए कहते हैं कि हमें प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से कुछ ठोस और स्थायी समाधान की उम्मीद है.
हालिया चर्चा
पिछले साल दिसंबर में राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके की भारत यात्रा के दौरान भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी का मुद्दा एक प्रमुख चर्चा का विषय बना था. दोनों नेताओं ने इस मानवीय संकट का समाधान खोजने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की थी और मोदी ने दोनों देशों के मछुआरों की आजीविका का ध्यान रखते हुए एक स्थायी समाधान का आग्रह किया था. दिसानायके ने इस मुद्दे पर सहयोग का आश्वासन दिया था और यह भी कहा था कि श्रीलंका अपनी ज़मीन का उपयोग भारत के हितों के खिलाफ नहीं करेगा.
कानूनी विवाद
एक महत्वपूर्ण मुद्दा जो इस समय चर्चा में है, वह है "बॉटम ट्रॉलिंग" (नीचे की ट्रॉलिंग) तकनीक, जिसे श्रीलंकाई मछुआरे तमिलनाडु के मछुआरों से छोड़ने की मांग कर रहे हैं. श्रीलंकाई मछुआरे इस विधि को समुद्री पारिस्थितिकी के लिए हानिकारक मानते हैं. जेसुराज ने बताया कि श्रीलंकाई मछुआरे चाहते हैं कि तमिलनाडु के मछुआरे गहरे समुद्र की मछलियां पकड़ने की तकनीक छोड़ दें. जबकि पहले से प्रस्तावित उपायों जैसे संयुक्त गश्त, जीपीएस सहायता और गहरे समुद्र की ट्रेनिंग पर फिर से विचार किया जा सकता है, श्रीलंका का कानूनी ढांचा इस मामले में काफी कड़ा है.
कानूनी संदर्भ
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में राज्यसभा में बताया कि फिलहाल 97 मछुआरे श्रीलंकाई जेलों में बंद हैं, जिनमें से 86 मछुआरे पहले से गिरफ्तार थे और 11 अन्य को हाल ही में एक ट्रॉलर की जब्ती के बाद गिरफ्तार किया गया. उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला 1974 के भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते और 1976 में कच्छथेवु के पास मछली पकड़ने के अधिकारों की अदला-बदली से जुड़ा हुआ है.
चीन की चुनौती और भारत की रणनीति
प्रधानमंत्री मोदी की श्रीलंका यात्रा सिर्फ मछुआरों के मुद्दे पर नहीं, बल्कि एक बड़ी रणनीतिक चुनौती के रूप में भी देखी जा रही है. चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, मोदी की यह यात्रा भारत के क्षेत्रीय रिश्तों को मजबूत करने का एक मौका है. चीन के हंबनटोटा पोर्ट और कोलंबो पोर्ट सिटी में निवेश से उसे आर्थिक और सामरिक लाभ हुआ है. जो भारत के लिए एक चिंता का विषय है. मोदी की यात्रा को इस दृष्टिकोण से देखा जा रहा है कि भारत श्रीलंका के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत करेगा और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए रणनीतिक विकल्प प्रस्तुत करेगा.
भविष्य की रणनीति
भारत-श्रीलंका के संबंधों में गहरी समझ है. जैसा कि सेवानिवृत्त राजनयिक पार्थसारथी जी ने The Federal से बातचीत में बताया. उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा श्रीलंका के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे हैं, जबकि चीन का नजरिया लोन आधारित है, जो श्रीलंका को मुश्किल में डाल सकता है. भारत को अपनी रणनीति में सतर्कता बरतनी होगी, ताकि हम चीन के जाल में न फंसे.
श्रीलंका में निवेश
भारत अब श्रीलंका में अपनी निवेश योजनाओं को सशक्त कर रहा है, जिनमें ऊर्जा परियोजनाओं और डिजिटल सहयोग जैसी पहलें शामिल हैं. मोदी की यह यात्रा सिर्फ मछुआरों की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के बढ़ते क्षेत्रीय प्रभाव को भी दर्शाती है. भारत श्रीलंका को अपने विकास में सहारा देने के लिए तत्पर है, ताकि वह चीन के कर्ज़ जाल में फंसने से बच सके.