नेपाल संकट: उथल-पुथल के बाद अब क्या? भारत–चीन की भूमिका पर नजर

नेपाल में अब सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन की बात नहीं है। यह एक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का पल है।;

Update: 2025-09-13 06:11 GMT
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नेपाल में सार्वजनिक असंतोष और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद देश एक तीव्र राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। The Federal ने सलाहकार संपादक केएस दक्षिणा मूर्ति से बात की, जिन्होंने बताया कि यह सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन नहीं है, बल्कि कहीं गहरा बदलाव हो सकता है।

संवैधानिक प्रश्न

मूर्ति ने कहा कि यह सिर्फ नेतृत्त्व में खालीपन की बात नहीं है। नेपाल की संविधान की व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं — कुछ लोग तो इसे दोबारा विचार करने की मांग कर रहे हैं। साल 2008 के बाद से जो ही नेता सत्ता में आ रहे हैं — नेपली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा, सीपीएन (माओवादी केंद्र) के पुष्प कमल दहा ‘प्रचण्ड’ और सीपीएन-यूएमएल के ओली — ये तीनों विभिन्न समयों पर सत्ता में रहे, लेकिन जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं। मौजूदा हालात में बेरोजगारी 22–23 प्रतिशत है, आर्थिक सुधार कम हैं और कई लोग विदेश जाकर काम की तलाश कर रहे हैं। निराशा इतनी गहरी है कि कुछ लोग एक समय की राजशाही को भी याद कर रहे हैं।


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Gen-Z का उभार

9 सितंबर की भीड़-भाड़ वाले विरोध प्रदर्शन लगभग अचानक हुए — बिना किसी स्पष्ट नेतृत्व के। बालेन शाह और पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नाम मीडिया में तभी सामने आए, जब घटनाएं शुरू हो गईं। पुलिस कार्रवाई में हुई मौतें और संसद भवन को हुए नुकसान ने इस विद्रोह को एक परिणाम की ओर जाने लायक बना दिया है। नया राजनीतिक युग लगता है कि Gen-Z का है, एक ऐसी पीढ़ी जो स्थापित नेताओं से अलग किसी नए चेहरे की तलाश में है। नाम आज़ाद हैं, अप्रभावित हैं और संभवतः बदलाव ला सकते हैं।

राजनीतिक संस्कृति

इस सामाजिक आंदोलन की शुरुआत हुई, जब सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया। यह घटना ऐसी चिंगारी बनी, जिसने तीव्रता से फैलाव कराया। नेपाल अब दो रास्तों पर है:-

1. लोकतांत्रिक पुनरुद्धार— संविधान, संसदीय व्यवस्था और संस्थागत ढांचे को बरकरार रखते हुए नए नेतृत्व को प्रोत्साहित करना।

2. गहरा पुनर्निर्धारण— ऐसे प्रश्न, जो 2008–2015 में तय हुए थे, उन्हें फिर से उठाना; उदाहरण के लिए — क्या नेपाल को फिर से हिंदू राज्य घोषित किया जाए या राजशाही को पुनर्स्थापित किया जाए।

जहां ये विचार वर्तमान में सीमाओं में हैं, लेकिन सार्वजनिक बहस शुरू हो गयी है और पुराने नेता कुछ इसी हद तक पीछे हटे हुए दिखते हैं।

गुप्त शक्तियों का आरोप

“डीप स्टेट” के दावे अक्सर प्रकृति में साजिश सिद्धांतों से जुड़े होते हैं। मूर्ति के अनुसार, फिलहाल ऐसी कोई स्पष्ट बाहरी ताकत नहीं दिखी है जो पूरे आंदोलन को नियंत्रित कर रही हो। भारत, चीन और अमेरिका महत्वपूर्ण बाहरी हितधारक हैं, लेकिन इनमें से किसी के पास स्पष्ट प्रेरणा नहीं है कि उन्होंने इस आंदोलन को नियोजित तरीके से संचालित किया हो। आखिरकार आंदोलन लीडरलेस और अनियंत्रित नजर आया है — कुछ जगहों पर लगभग अराजकता जैसा।

श्रीलंका और बांग्लादेश से तुलना

नेपाल की स्थितियों में श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) जैसे हालात की झलक मिलती है — सार्वजनिक विद्रोह, आर्थिक कठिनाई, राजनीतिक असंतोष — लेकिन कारण अलग हैं। श्रीलंका में तो आर्थिक संकट और बुनियादी जरूरतों की कमी ट्रिगर थी। बांग्लादेश में राजनीतिक दबाव और न्यायपालिका के निर्णय ने प्रदर्शन को हवा दी। वहीं, नेपाल में मुख्य चिंता आर्थिक अस्थिरता, बेरोजगारी और राजनीतिक नेतृत्व की लगातार बारी-बारी से सत्ता में वापसी है।

भारत और चीन के लिए कड़ी परीक्षा

भारत और चीन, दोनों ही इस नए दौर में नेपाल के भविष्य को आकार देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन साथ ही सावधानी बरतने की ज़रूरत है। भारत–नेपाल संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषायी रूप से गहरे हैं। लेकिन नेपाल कोई उपनिवेश नहीं है — संवेदनशीलताएं हैं। चीन, विशेषकर 2015 के बाद से अधिक आर्थिक सहयोग के माध्यम से प्रभाव बढ़ा रहा है। लेकिन कोई भी बाहरी शक्ति यदि overt रूप से राजनीति में हस्तक्षेप करने लगे तो सार्वजनिक प्रतिक्रिया तेज हो सकती है।

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