नेपाल: राष्ट्रपति द्वारा संसद भंग करने के कदम पर राजनीतिक और कानूनी आलोचना

राजनीतिक दलों और वकीलों के संगठन ने 12 सितंबर के इस कदम को ‘असंवैधानिक’ और ‘लोकतंत्र पर गंभीर आघात’ बताया, जो अंतरिम प्रधानमंत्री की सिफारिश पर किया गया;

Update: 2025-09-13 09:55 GMT
लोग काठमांडू में शनिवार को हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद क्षतिग्रस्त संघीय संसद परिसर में झांकते हुए | पीटीआई फोटो

नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दलों और शीर्ष वकीलों के संगठन ने राष्ट्रपति द्वारा संसद भंग करने के फैसले की कड़ी आलोचना की है। इस कदम को असंवैधानिक, मनमान और लोकतंत्र पर गंभीर चोट कहा गया। आलोचना तब शुरू हुई जब राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने शुक्रवार (12 सितंबर) को अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की पहली बैठक की सिफारिश को तुरंत मंजूरी दे दी।

राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी सूचना के अनुसार, प्रतिनिधि सभा को 12 सितंबर रात 11 बजे से प्रभावी रूप से भंग कर दिया गया। राष्ट्रपति ने साथ ही अगले साल 21 मार्च को नए आम चुनाव की तारीख भी तय कर दी।

चारों ओर से आलोचना

राजनीतिक दलों ने संसद भंग करने के कदम पर कड़ी आपत्ति जताई। देश की सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने चेतावनी दी कि संविधान का उल्लंघन करने वाला कोई भी कदम अस्वीकार्य होगा।

'माईरिपब्लिका' पोर्टल की रिपोर्ट के मुताबिक, शनिवार को हुई नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय कार्यकारी समिति की बैठक ने निष्कर्ष निकाला कि संसद भंग करना देश की लोकतांत्रिक उपलब्धियों को “संकट में डालना” है, 

पार्टी ने अपने बयान में कहा,“संसद भंग करने का यह कदम हमारे संविधान की मूल भावना और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के खिलाफ है। यह पूरी तरह असंवैधानिक है।”

एनसी के महासचिव बिश्वप्रकाश शर्मा ने कहा कि संविधान का कोई भी उल्लंघन गंभीर सवाल खड़े करता है।

असंवैधानिक कदम?

सीपीएन-यूएमएल के महासचिव शंकर पोखरेल ने इस कदम को “विडंबनापूर्ण चिंताजनक” बताया। उन्होंने कहा, “अतीत में अधिकांश सरकारों के संसद भंग करने के प्रयासों को असंवैधानिक कहकर चुनौती दी गई थी। विडंबना यह है कि अब वही आवाज़ें इस बार संसद भंग करने का समर्थन कर रही हैं। हमें सतर्क रहना होगा।”

सीपीएन (माओवादी केंद्र) ने भी प्रतिनिधि सभा भंग करने के फैसले से कड़ा असहमति जताई। पार्टी के प्रवक्ता और उपाध्यक्ष अग्नि प्रसाद सापकोटा ने कहा कि यह निर्णय देश की संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है।

कानूनी चिंताएँ

नेपाल बार एसोसिएशन (एनबीए) ने देर रात बयान जारी कर संसद भंग करने के इस “मनमाने” कदम को संवैधानिक सर्वोच्चता को कमजोर करने वाला और “संवैधानिकता के मूल पर चोट” बताया।

वकीलों के इस शीर्ष संगठन ने चेतावनी दी कि यह कदम नेपाल की कठिन संघर्ष से हासिल लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करता है और संघीय ढांचे की उपलब्धियों को भी घटाता है।

एनबीए ने कहा—“राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा को भंग करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट के संसद पुनर्स्थापना से जुड़े पूर्व निर्णय के भी विपरीत है।”

बयान में यह भी चेतावनी दी गई कि कार्यकाल पूरा होने से पहले संसद को भंग करना लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के भरोसे को खत्म करता है और संवैधानिक व्यवस्था की बुनियाद को ही खतरे में डाल देता है।

एनबीए के अध्यक्ष विजय प्रसाद मिश्र और महासचिव केदार प्रसाद कोइराला ने संयुक्त रूप से बयान पर हस्ताक्षर किए और समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे “किसी भी प्रतिगामी कदम” का विरोध करें और भंग करने के फैसले के खिलाफ उनके आंदोलन व कार्रवाइयों का समर्थन करें।

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