Pope Francis: जनता के पोप, जिन्होंने कैथोलिक सोच को दिया नया आयाम
पोप फ्रांसिस की जिंदगी एक मिशन थी— शांति, प्यार, समानता और संवाद का। वे न केवल कैथोलिक समुदाय, बल्कि पूरी दुनिया के लिए उम्मीद की एक किरण थे।;
"अब बहुत हुआ हिंसा और युद्ध। आइए, हम पवित्र भूमि और गाजा के लोगों के लिए शांति की प्रार्थना करें।" 22 अक्टूबर 2023 को गाजा में बढ़ती हिंसा के बीच पोप फ्रांसिस ने ये शब्द कहे थे। यह उनकी लगातार अपील थी कि युद्ध तुरंत रोका जाए और ग़ाजा के लोगों को मानवीय मदद दी जाए। 21 अप्रैल 2025 को, 88 वर्ष की उम्र में पोप फ्रांसिस का निधन हो गया। वे पूरी दुनिया में शांति के लिए आवाज उठाने वाले एक मजबूत नेता थे।
शांति की आवाज
पोप फ्रांसिस ने रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष तक, हर जगह शांति और इंसानियत की वकालत की। 2021 में इज़राइल और हमास के बीच लड़ाई के दौरान उन्होंने कहा था कि कृपया हथियार बंद करें और बातचीत का रास्ता खोलें। कई मासूम, बच्चे भी मारे गए हैं। यह अस्वीकार्य है।
न्याय की मांग
पोप ने हमेशा फिलिस्तीनियों को न्याय दिलाने और उनके आत्मसम्मान व स्वतंत्रता के अधिकार की बात की। उन्होंने दो देशों के समाधान (टू-स्टेट सॉल्यूशन) का समर्थन किया— यानी इज़राइल और फिलिस्तीन दोनों को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता मिले। 2014 में पवित्र भूमि की यात्रा पर उन्होंने कहा कि शांति तभी संभव है जब सभी को न्याय, अधिकार और सुरक्षा मिले।
धर्मों के बीच संवाद
पोप फ्रांसिस ने इस्लाम, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म सहित विभिन्न धर्मों के नेताओं से मिलकर आपसी समझ और सौहार्द बढ़ाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने धार्मिक उग्रवाद और नफरत के खिलाफ हमेशा आवाज़ उठाई। 2019 में उन्होंने अबू धाबी में इस्लाम के प्रमुख नेता अहमद अल तैयब के साथ “ह्यूमन फ्रेटरनिटी” दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए — जिसमें धार्मिक एकता, शांति और हिंसा के विरोध का संदेश था।
मुस्लिम नेताओं से मुलाकातें
- 2016: अल-अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल तैयब से मुलाकात।
- 2017: काहिरा में पीस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया।
- 2021: इराक में शिया नेता अयातुल्ला अली अल सिस्तानी से मुलाकात।
- 2018: तुर्की राष्ट्रपति एर्दोआन से वैटिकन में चर्चा।
इन सभी मुलाकातों में उन्होंने शांति, सह-अस्तित्व और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर चर्चा की।
पर्यावरण और मानवाधिकारों की रक्षा
पोप फ्रांसिस ने पर्यावरण संरक्षण, मृत्युदंड के विरोध और परमाणु हथियारों के खिलाफ भी अभियान चलाया।
- 2015: “लौदातो सी” नामक पत्र में पर्यावरण संकट को बताया।
- 2018: मृत्युदंड को “किसी भी हालत में गलत” कहा।
- 2019: हिरोशिमा में परमाणु हथियारों को “अनैतिक” करार दिया।
भारत और दलित प्रतिनिधित्व
पोप फ्रांसिस भारत नहीं आ पाए। हालांकि, उन्होंने भारत के प्रति प्रेम जताया। प्रधानमंत्री मोदी दो बार वैटिकन गए। लेकिन पोप को औपचारिक निमंत्रण नहीं मिला। भारत में दो मुद्दों पर उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही:-
1. सिरो-मलाबार चर्च में विवाद: जहां कुछ पादरी पुराने नियमों की जगह, लोगों की तरफ मुंह कर मसीहा पूजा करने की मांग कर रहे हैं।
2. दलित प्रतिनिधित्व: भारत में 180 में से केवल 20 से कम दलित बिशप हैं। 2022 में पोप ने एंथनी पूला को भारत का पहला दलित कार्डिनल बनाया।
LGBTQ+ और समावेशिता
पोप ने बार-बार प्यार और दया की बात की। 2016 में उन्होंने कहा कि चर्च को LGBTQ लोगों के साथ दयालुता और समझदारी से पेश आना चाहिए। 2021 में उन्होंने कहा कि किसी को भी यूखरिस्ट से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि यह पूर्णता के लिए पुरस्कार नहीं, बल्कि प्रभु का उपहार है। हालांकि, चर्च की आधिकारिक नीति अब भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देती।
विनम्र और क्रांतिकारी नेता
पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बेरगोलियो था, 1936 में अर्जेंटीना में जन्मे थे। उन्होंने केमिस्ट्री पढ़ने के बाद धर्म की राह चुनी। 2013 में वे इतिहास के पहले जेसुइट पोप बने, पहले अमेरिका से और पहले जिन्होंने फ्रांसिस नाम अपनाया। उन्होंने वैटिकन की भव्यता को पीछे छोड़, सादगी और सेवा को चुना। उन्होंने चर्च को गरीबों, हाशिए पर रह रहे लोगों और पीड़ितों के करीब लाने की कोशिश की।