जयशंकर की बीजिंग यात्रा: सिर्फ रणनीतिक कूटनीति या गलवान के बाद रिश्तों में नरमी?

विशेषज्ञों का मानना है कि जयशंकर की यह यात्रा भले ही नाटकीय बदलाव न हो, लेकिन यह संबंधों में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है।;

Update: 2025-07-15 12:05 GMT

विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया बीजिंग यात्रा को भारत-चीन के लंबे समय से तनावपूर्ण संबंधों में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद यह पहली उच्चस्तरीय राजनीतिक यात्रा है, जिसे दोनों देशों के बीच सावधानीपूर्वक सामान्यीकरण की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। हालांकि, बातचीत के स्तर पर शिष्टाचार के पीछे अब भी सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता जैसी जटिलताएं बनी हुई हैं।

संबंधों की बहाली की शुरुआत?

जयशंकर, जो पिछले पांच वर्षों से भारत की चीन-नीति के प्रमुख सूत्रधार रहे हैं, ने इस यात्रा को जानबूझकर सावधानीपूर्ण लहजे में रखा। उन्होंने कहा कि भारत-चीन संबंध धीरे-धीरे सुधर रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि दोनों पक्ष सीमा तनाव को कम करने की दिशा में धीरे-धीरे प्रगति कर रहे हैं। उन्होंने दोहराया कि भारत की स्थायी नीति यही है कि सीमा पर शांति और स्थिरता के बिना कोई भी सार्थक संबंध संभव नहीं है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जयशंकर की यह यात्रा भले ही नाटकीय बदलाव न हो, लेकिन यह संबंधों में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है। यह संभव है कि यह यात्रा एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री की संभावित यात्रा का मार्ग प्रशस्त करे। गौरतलब है कि शीर्ष नेतृत्व के बीच 2018 के वुहान शिखर सम्मेलन के बाद से कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई थी, सिवाय 2024 में कज़ान में एक संक्षिप्त मुलाकात के।


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चीन का रुख

हालांकि जयशंकर और उनके चीनी समकक्षों के बीच बातचीत में सकारात्मक लहजा था, लेकिन बुनियादी मुद्दे अब भी अधूरे हैं। हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन यात्रा के दौरान उन्होंने स्पष्ट रूप से सीमांकन (demarcation) की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, न कि सिर्फ LAC को मैनेज करने की। इसके जवाब में चीन ने फिर से 'विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता' का हवाला दिया, जो अब तक 23 दौर की वार्ता के बावजूद बहुत कम हासिल कर पाई है।

अन्य विवादास्पद मुद्दों का असर?

विश्लेषकों का मानना है कि चीन की सार्वजनिक मुद्रा में कोई बड़ा बदलाव नहीं है। हालांकि तिब्बत, QUAD में भारत की भूमिका और दलाई लामा जैसे विषय चीन के लिए संवेदनशील हैं, लेकिन इन मुद्दों को इस यात्रा में सामने लाने से परहेज किया गया।

व्यापारिक संतुलन

अमेरिका की टैरिफ धमकियों के बीच जयशंकर की चीन यात्रा संकेत देती है कि भारत व्यापारिक विविधीकरण की सोच रखता है। चीन और अमेरिका दोनों भारत के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार हैं, लेकिन परिप्रेक्ष्य अलग हैं — अमेरिका के साथ भारत को व्यापार में सरप्लस है, जबकि चीन के साथ भारी घाटा। उदाहरण: चेन्नई के पास iPhone निर्माण इकाई में कई उपकरण और कुशल श्रमिक चीन से आते हैं। भारत की चुनौती है कि चीन से ज्यादा भारतीय उत्पाद निर्यात करे और अमेरिका से आयात बढ़ाकर संबंधों को संतुलित बनाए।

विश्वास की कमी

विशेषज्ञों का मानना है कि विश्वास की कमी पूरी तरह बरकरार है। 1993, 1996, 2005 और 2012 में हुए सीमा समझौते 2020 के बाद लगभग निष्प्रभावी हो चुके हैं। अब संबंध मरम्मत के दौर में हैं, जिसमें समय और निरंतर प्रयास की ज़रूरत होगी।

पाकिस्तान को चीन का सैन्य समर्थन

विश्लेषकों का मानना है कि चीन का पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग नया नहीं है। हालांकि हालिया ऑपरेशन सिंदूर में चीन की भूमिका को लेकर कुछ रिपोर्ट आईं, लेकिन विशेषज्ञ उन्हें अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हैं। चीन पाकिस्तान को "लौह भाई" मानता है, लेकिन वह भारत-पाक संघर्षों में सीधी भागीदारी नहीं चाहता।

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