श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके की भारत यात्रा, ठोस शुरुआत की कवायद

Dissanayake india visit: ऐसे कई मुद्दे हैं, जो भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय एजेंडे पर हावी रहेंगे. इनमें वे क्षेत्र शामिल हैं, जिनके बारे में जेवीपी बहुत सहज नहीं है और जिन पर उसने अतीत में आलोचनात्मक बातें कही हैं.;

Update: 2024-12-14 01:16 GMT

Anura Kumara Dissanayake: श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) की रविवार (15 दिसंबर) से नई दिल्ली की तीन दिवसीय राजकीय यात्रा शुरू होने वाली है. हालांकि, यह पहली बार होगा, जब भारतीय नेतृत्व पारंपरिक अभिजात वर्ग से नहीं बल्कि श्रीलंका के नेतृत्व से निपटेगा. अधिकारियों का कहना है कि दोनों पक्षों को एक ठोस शुरुआत के लिए आम सहमति बनाने की कवायद करनी चाहिए. बता दें कि दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) फरवरी में अपने वामपंथी दल जनता विमुक्ति पेरमुना (जेवीपी, पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट) के प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आए थे. लेकिन तब वे सत्ता के गलियारों से बहुत दूर थे. हालांकि नई दिल्ली को एहसास था कि उनके राष्ट्रपति बनने की पूरी संभावना है. ऐसे में5 वर्षीय मार्क्सवादी ने सितंबर में राष्ट्रपति चुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया और फिर नवंबर में संसदीय चुनाव में जेवीपी के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) को भारी जीत दिलाकर श्रीलंका (Sri Lanka) में एक नई राजनीतिक लहर का संकेत दिया.

दोनों देशों के अधिकारियों का कहना है कि जब दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) अपने विश्वासपात्र और विदेश मंत्री विजिता हेराथ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों से मिलेंगे तो चर्चा के लिए बहुत कुछ होगा और दशकों से भारत के बारे में जेवीपी (JVP) के मन में जो संदेह है, उसे देखते हुए कुछ अड़चनें भी आ सकती हैं.

विरोधाभासी आवाज

जेवीपी नेतृत्व के भीतर से पहले से ही विरोधाभासी आवाजें उभर रही हैं, जो नई दिल्ली में चिंताजनक प्रश्न पैदा कर सकती हैं. भले ही इस द्वीपीय राष्ट्र के साथ लंबे समय तक उतार-चढ़ाव भरे संबंधों के दौरान श्रीलंका (Sri Lanka) के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बड़े बदलाव आए हों. श्रीलंका (Sri Lanka) में इस बात पर आम सहमति है कि भारत ने आर्थिक संकट और संप्रभु ऋण चूक के बाद 4 बिलियन डॉलर की मदद देकर खुद को एक विश्वसनीय भागीदार साबित किया. समय पर मिले भारतीय समर्थन ने श्रीलंका को आवश्यक आयातों को बनाए रखने और बहुपक्षीय ऋणदाताओं पर चूक से बचने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने में मदद की.

आर्थिक रूप से श्रीलंका (Sri Lanka) अभी भी मुश्किलों से बाहर नहीं है. यही कारण है कि दिसानायके, अपने पूर्ववर्तियों द्वारा पैदा की गई भारी वित्तीय समस्याओं से उबरने के लिए बेताब हैं. इसलिए वे भारत के साथ हाथ मिलाना चाहते हैं और चीन के साथ भी, जहां वे जल्द ही यात्रा करेंगे. ऐसे कई मुद्दे हैं, जो द्विपक्षीय एजेंडे पर हावी रहेंगे. इनमें वे क्षेत्र शामिल हैं, जिनके बारे में जेवीपी बहुत सहज नहीं है और जिन पर उसने अतीत में आलोचनात्मक बातें कही हैं. इसमें आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (ईटीसीए) लंबित है, बहुचर्चित मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए), दोनों देशों के बीच भूमि गलियारा बनाने की योजना, अडानी अनुबंध जो कानूनी पचड़ों में फंस गए हैं तथा त्रिंकोमाली को एक क्षेत्रीय ऊर्जा केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना शामिल है.

भारतीय मछुआरों का मुद्दा

एक अन्य मुद्दा जिस पर श्रीलंका (Sri Lanka) में तमिलों और सिंहलियों दोनों के बीच काफी गुस्सा है, वह है भारतीय मछुआरों द्वारा लगातार किए जाने वाले हमले और उनके द्वारा समुद्र में चलने वाले ट्रॉलरों का प्रयोग, जिससे समुद्री संपदा नष्ट हो रही है. जबकि भारतीय समुद्री संसाधनों को छीन रहे हैं, जिसके बारे में श्रीलंकाई कहते हैं कि वह उनका है.भारत और चीन अपनी अस्थिर सीमा पर बाड़बंदी कर सकते हैं. लेकिन श्रीलंका (Sri Lanka) के मामले में वे एकमत नहीं हैं. भारत और अमेरिका श्रीलंका (Sri Lanka) चीनी जासूसी जहाजों के दौरे का विरोध करते हैं. वहीं, चीन श्रीलंका से कहता है कि विदेशी संबंध बनाते समय उसे “विदेशी दबावों” के आगे नहीं झुकना चाहिए. एक से ज़्यादा मौकों पर दिसानायके ने यह साफ़ कर दिया है कि श्रीलंका (Sri Lanka) चीन-भारत प्रतिद्वंद्विता में शामिल नहीं होना चाहता. साथ ही, जेवीपी (JVP) नेताओं ने जेवीपी और चीनी कम्युनिस्टों के बीच लंबे समय से चली आ रही वैचारिक मित्रता के बावजूद भारतीय सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखने का वादा किया है.

तमिल चिंता

इसका मतलब यह नहीं है कि श्रीलंका (Sri Lanka) सिर्फ़ भारत को खुश करने के लिए चीन से दूर रहना चाहेगा. दरअसल, देश के तमिल-बहुल इलाकों सहित विकास सहायता में चीन की भागीदारी अब पहले से कहीं ज़्यादा है. श्रीलंका में यह बात आम तौर पर देखी जा रही है कि भारत अब दक्षिण एशिया में निर्विवाद शक्ति नहीं रह गया है, भले ही वह प्रमुख क्यों न हो. वास्तव में भूटान के अलावा, श्रीलंका भारत के कुछ मित्रों में से एक है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ नई दिल्ली के संबंध ठंडे हैं और नेपाल भारत के प्रति उदासीन बना हुआ है. अफगानिस्तान और मालदीव इसके निकट नहीं हैं.

हालांकि, दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) इसे पसंद नहीं करेंगे अगर भारतीय पक्ष ऐसी नीति को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है, जो कोलंबो को प्रांतों को सत्ता सौंपने के तरीके को तय करती हुई दिखाई देती है. जबकि जेवीपी तमिल चिंताओं के प्रति सजग है, वह कुछ ऐसा लेकर आना चाहता है, जिसे तमिल शिकायतों के घरेलू समाधान के रूप में देखा जाएगा. किसी भी स्थिति में कई श्रीलंकाई लोगों का मानना है कि वर्तमान भारतीय सरकार को तमिल अल्पसंख्यकों के लिए बोलने का कोई अधिकार नहीं है. क्योंकि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ वर्तमान में जो व्यवहार किया जाता है, वह सही है. भारत और श्रीलंका के बीच व्यापार के साथ-साथ ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रों पर भी बातचीत होने की उम्मीद है. कोलंबो में पहले रह चुके एक भारतीय राजनयिक ने बताया कि कनेक्टिविटी, साइबर सुरक्षा और कौशल विकास पर भी चर्चा होगी.

भारत की उदारता

श्रीलंका (Sri Lanka) के पूर्व रक्षा सचिव ऑस्टिन फर्नांडो का कहना है कि दोनों पक्षों को पिछले रुख पर पुनर्विचार करने और समीक्षा करने के लिए नए दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी. दोनों को राजकीय यात्रा को आम सहमति बनाने की कवायद के रूप में देखना चाहिए. फर्नांडो ने यह भी रेखांकित किया कि दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) की यात्रा से कोई द्वितीयक विरोधाभासी मुद्दे पैदा नहीं होने चाहिए और दूसरी ओर इसे मैत्रीपूर्ण शालीनता के साथ आयोजित किया जाना चाहिए. उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच सदियों से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं और इसे जारी रहना चाहिए.

जेवीपी प्रमुख के रूप में दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) निश्चित रूप से भारत के साथ संबंध सुधारना चाहेंगे, एक ऐसा देश जिसे उनके मार्क्सवादी संगठन ने पारंपरिक रूप से "विस्तारवादी" करार दिया है. 1980 के दशक के उत्तरार्ध में जब दिसानायके (Anura Kumara Dissanayake) जेवीपी (JVP) में शामिल हुए तो समूह द्वीप में भारत की सैन्य तैनाती के बाद मुखर और खूनी भारत विरोधी प्रदर्शनों में शामिल था. यह वह दौर था, जब जेवीपी (JVP) ने कभी भी भारत विरोधी उन्माद को नहीं छिपाया. इसने व्यापारियों और दुकानदारों को भारतीय उत्पाद न बेचने के लिए मजबूर किया. इसने उच्च मांग वाली सस्ती, लेकिन प्रभावी भारतीय दवाओं का आयात करने के लिए एक वरिष्ठ महिला स्वास्थ्य अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी.

जब निरुपम सेन श्रीलंका में भारत के राजदूत थे (2004-2009) तब उन्होंने पहली बार तत्कालीन जेवीपी (JVP) प्रमुख को उच्चायोग में भारतीय स्वतंत्रता दिवस समारोह में आमंत्रित किया था. इससे संबंधों में आई बर्फ पिघलने में मदद मिली. लेकिन जेवीपी को भारत को दोस्ताना नज़रिए से देखने में काफी समय लगा. साल 2022 के आर्थिक पतन के बाद भारत की उदारता ने जेवीपी और श्रीलंका (Sri Lanka) में कई अन्य लोगों के साथ मित्रता बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई. लेकिन जेवीपी (JVP) में अभी भी ऐसे सदस्य हैं, जो 'बड़े भाई' नई दिल्ली से सावधान रहते हैं.

Tags:    

Similar News