भ्रामक विज्ञापनों से सावधान! बिक्री बढ़ाने के लिए किए जा रहे खोखले दावे
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भ्रामक विज्ञापनों से सावधान! बिक्री बढ़ाने के लिए किए जा रहे खोखले दावे

विज्ञापनों का लोगों पर गहरा असर पड़ता है. इसलिए चाहे वह सरकार हो या फिर कंपनियां, अपने प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापनों का सहारा लेती हैं.


Misleading Advertisements: विज्ञापनों का लोगों पर गहरा असर पड़ता है. इसलिए चाहे वह सरकार हो या फिर कंपनियां, अपने प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापनों का सहारा लेती हैं. पिछले कुछ सालों में कई विज्ञापनों ने बाजार में अपनी छाप छोड़ी है और इनमें कही गई बातें जुबान पर चढ़ जाती हैं. हालांक, विज्ञापनों ने किसी भी ब्रांड की मार्केटिंग में अहम भूमिका निभाई है. इसका खरीदारों के निर्णयों और धारणाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है. किसी भी ब्रांड को सुर्खियों में लाने और उपभोक्ताओं का ध्यान खींचने में विज्ञापन अहम भूमिका निभाते हैं. हालांकि, कुछ ब्रांड अपने विज्ञापनों में भ्रामक दावों का सहारा लेते हैं और उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए भावनात्मक अपील का उपयोग करते हैं. जैसे कि ASCI ने साल 2019 में केलॉग के स्पेशल K अनाज के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा दिया था. क्योंकि इसमें पेट की चर्बी कम करने के बारे में निराधार दावे किए गए थे. इसी तरह बाबा रामदेव की पतंजलि को भ्रामक विज्ञापनों के लिए सुप्रीम कोर्ट में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. साल 2023-24 में ASCI ने 8,299 विज्ञापनों का मूल्यांकन किया, जिनमें से 81 फीसदी विज्ञापन भ्रामक पाए गए.इसके अलावा 98 फीसदी विज्ञापनों में संशोधन की आवश्यकता थी.

भ्रामक विज्ञापनों को सोशल मीडिया ने आसान बना दिया है. विज्ञापन नकली समाचार लेख या सोशल मीडिया पोस्ट के रूप में बिना समर्थन वाले स्वास्थ्य दावों के साथ दिखाई दे सकते हैं, जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं. इन प्लेटफ़ॉर्म की निगरानी के प्रयासों के बावजूद डिजिटल विज्ञापनों के लिए अनुपालन दर 75% पर कम बनी हुई है. जबकि प्रिंट और टीवी के लिए यह 97% है.

ब्रांड कंटेंट की मुख्य चिंताओं में से एक यह है कि कोई भी व्यक्ति समुदाय को प्रभावित कर सकता है. चाहे वह कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो. यह कुछ ऐसा है जिसे लेकर पूरा विज्ञापन समुदाय चिंतित है.मशहूर हस्तियों ने खरीद निर्णयों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. एक अच्छी तरह से बनाया गया वीडियो विज्ञापन लोगों को खुशी, उत्साह, पुरानी यादें महसूस करा सकता है.

प्रतिष्ठित विज्ञापन एजेंसियां नैतिक मानकों और अनुपालन को बनाए रखने के लिए समान प्रोटोकॉल का पालन करती हैं. हालांकि, चुनौती थर्ड-पार्टी कंपनियों के साथ है. ये कंपनियां अक्सर डायरेक्ट सेलिंग एजेंट (DSA) की तरह काम करती हैं और समान कड़े प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर सकती हैं. ब्रांड अक्सर अलग दिखने और ग्राहकों को आकर्षित करने के दबाव का सामना करते हैं. यह दबाव भ्रामक विज्ञापनों के प्रसार को जन्म दे सकता है. इन विज्ञापनों के निर्माण के पीछे सीमित मात्रा में शोध किया जा सकता है, जिससे अक्सर उपयोगकर्ता प्रभावित होते हैं.

भ्रामक विज्ञापन प्रथाओं में फंसे ब्रांडों के लिए कानूनी नतीजे, उपभोक्ता प्रतिक्रिया और विश्वास की हानि के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. उद्योग विशेषज्ञ उपभोक्ता विश्वास और वफादारी बनाए रखने के लिए विज्ञापन में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व पर जोर देते हैं. भ्रामक विज्ञापनों के बार-बार संपर्क से न केवल ब्रांडों में बल्कि पूरे विज्ञापन उद्योग में उपभोक्ता का भरोसा खत्म हो सकता है. साल 2023-24 में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सबसे अधिक उल्लंघन हुए. 19% भ्रामक विज्ञापन इस उद्योग से उत्पन्न हुए. भ्रामक स्वास्थ्य दावे न केवल उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा करते हैं. अवैध ऑफशोर सट्टेबाजी (17%), पर्सनल केयर (13%) और शिक्षा (12%) जैसे क्षेत्रों में भ्रामक विज्ञापनों का बढ़ना सख्त नियमों की आवश्यकता को रेखांकित करता है. जबकि, इन ब्रांडों को कानूनी चुनौतियों और सार्वजनिक जांच का सामना करना पड़ा है. उन्होंने रीब्रांडिंग और पारदर्शिता पहलों के माध्यम से उपभोक्ता चिंताओं को दूर करने और विश्वास हासिल करने के लिए कदम भी उठाए हैं.

साल 2020 में पतंजलि आयुर्वेद का दावा था कि उसका उत्पाद "कोरोनिल" COVID-19 को ठीक कर सकता है, जिसमें वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव था, जिसके कारण सरकार ने इसके विज्ञापन को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया. इसी तरह आयुर्वेदिक उत्पादों को उनकी प्रभावशीलता के बारे में भ्रामक दावों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है. जैसे कि साल 2017 में कैंसर को ठीक करने का दावा करने वाले प्रतिबंधित जीवन रसायन विज्ञापन. विज्ञापनों का प्राथमिक उद्देश्य बिक्री को बढ़ावा देना है, जिसमें झूठे दावे हो सकते हैं. उदाहरण के लिए साल 2015 में फॉक्सवैगन के "क्लीन डीजल" घोटाले ने कथित तौर पर खुलासा किया कि कंपनी ने उत्सर्जन परीक्षणों को धोखा देने के लिए सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल किया और अपनी कारों को पर्यावरण के अनुकूल के रूप में गलत तरीके से प्रचारित किया.

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