
लाखों का बिजली बिल सिर्फ 2-3 मजदूर: कैसे पता चला Gensol का EV प्लांट था फर्जी
Gensol BluSmart में हुई गड़बड़ियां ये सवाल उठाती हैं कि क्या निवेशकों, ऑडिटर्स या विश्लेषकों को इन अनियमितताओं का अंदाजा था.
Gensol-BluSmart: क्या निवेशकों और ऑडिटर्स को कुछ नहीं दिखा? SEBI यानी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने जब Gensol Engineering के फाउंडर्स अनमोल और पुनीत जग्गी पर कार्रवाई की तब उसे कई गड़बड़ियां मिलीं. इनमें एक बड़ा मामला था पुणे के चाकण इलाके में बने Gensol के EV मैन्युफैक्चरिंग प्लांट का, जो असल में सिर्फ नाम का प्लांट निकला. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 30,000 EV का दावा किया गया था, लेकिन असलियत कुछ और थी. जनवरी 2025 में Gensol ने स्टॉक एक्सचेंज को बताया कि उसने 30,000 इलेक्ट्रिक गाड़ियों के प्री-ऑर्डर लिए हैं. ये जानकारी Bharat Mobility Global Expo 2025 में दी गई थी.
SEBI की जांच में पता चला कि ये प्री-ऑर्डर असल में सिर्फ 9 कंपनियों के साथ एमओयू (MOU) थे, जिसमें न तो कीमत तय थी और न ही डिलीवरी की कोई जानकारी. ये सिर्फ इच्छा जताने वाले कागज थे, जिससे ये दावा भ्रामक साबित हुआ.
NSE अधिकारी ने खोली असलियत
9 अप्रैल 2025 को NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का एक अधिकारी जब Gensol के पुणे प्लांट पर पहुंचा, तो पाया कि वहां सिर्फ 2-3 मजदूर थे और कोई मैन्युफैक्चरिंग गतिविधि नहीं हो रही थी. बिजली बिल की जांच में सामने आया कि पिछले 12 महीनों में सबसे ज्यादा बिजली खर्च 1,57,037 दिसंबर 2024 में हुआ, जो कि एक असली फैक्ट्री के लिए बहुत कम है.
कई बड़े दावे और वापस लिए गए सौदे
जनवरी 2025 में Gensol ने Refex नाम की कंपनी के साथ 2,997 इलेक्ट्रिक गाड़ियों का ट्रांसफर करने और 315 करोड़ का लोन Refex को देने की बात कही, लेकिन 2 महीने बाद ये डील रद्द हो गई. फरवरी 2025 में Gensol ने कहा कि उसने अपनी अमेरिकी सब्सिडियरी Scorpius Trackers को बेचने के लिए 350 करोड़ की डील पर साइन किया है, लेकिन जब SEBI ने पूछा कि ये वैल्यूएशन किस आधार पर तय हुई, तो Gensol कोई ठोस जवाब नहीं दे पाया.
क्रेडिट रेटिंग में गिरावट और झूठे दस्तावेज
मार्च 2025 में दो बड़ी रेटिंग एजेंसियों CARE और ICRA ने Gensol की रेटिंग को गिराकर D यानी डिफॉल्ट कर दिया. क्योंकि कंपनी लोन चुकाने में देरी कर रही थी. इसके जवाब में कंपनी ने झूठा दावा किया कि उसने सारे लोन समय पर चुकाए हैं. SEBI की जांच में सामने आया कि Gensol ने IREDA और PFC जैसे सरकारी वित्त संस्थानों को फर्जी दस्तावेज दिए. जब रेटिंग एजेंसियों ने टर्म लोन के कागज मांगे, तो Gensol ने इन दो संस्थानों के बारे में फर्जी Conduct Letters भेजे. जिन्हें IREDA और PFC ने जारी ही नहीं किया था.
EV लोन का मिसमैच
IREDA और PFC ने Gensol को कुल 977.75 करोड़ का लोन दिया था, जिसमें से 663.89 करोड़ 6,400 EVs खरीदने के लिए था. Gensol ने बाद में खुद माना कि उसने केवल 4,704 EVs खरीदे, जिसकी कीमत थी 567.73 करोड़. सप्लायर Go-Auto Pvt Ltd ने भी इसकी पुष्टि की. SEBI ने बताया कि Gensol को 20% अतिरिक्त इक्विटी भी लगानी थी, जिससे कुल खर्च ₹829.86 करोड़ होता. लेकिन इसमें से 262.13 करोड़ का हिसाब नहीं मिला.
वही SEBI की जांच से ये साफ होता है कि Gensol ने बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन जमीन पर हकीकत अलग थी. अब सवाल ये उठता है क्या निवेशकों, ऑडिटर्स और विश्लेषकों को कुछ नहीं दिखा? और अगर दिखा, तो उन्होंने क्या किया?