बिहार चुनाव 2025 और X-फैक्टर, सत्ता के खेल में कौन भारी?
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बिहार चुनाव 2025 और X-फैक्टर, सत्ता के खेल में कौन भारी?

द फेडरल के एडिटर इन चीफ एस श्रीनिवासन के अनुसार नीतीश कुमार और बीजेपी के नेतृत्व वाला NDA तथा RJD और कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन अंकगणित की दृष्टि से लगभग बराबर हैं।


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बिहार के विधानसभा चुनावों के करीब आते ही राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। द फेडरल के एडिटर-इन-चीफ एस. श्रीनिवासन का मानना है कि राज्य इस समय राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है, ऐसा मोड़ जो नीतीश कुमार के दो दशक लंबे प्रभुत्व का अंत और नए राजनीतिक व्यवधानक, प्रशांत किशोर, के उदय का संकेत दे सकता है।

श्रीनिवासन ने Talking Sense with Srini में कहा, “कागज पर गठबंधन समीकरण संतुलित लग सकते हैं, लेकिन इस बार की असली लड़ाई सिर्फ गठबंधनों के बीच नहीं है—यह विरासत और बदलाव के बीच की टक्कर है।”

गठबंधन का अंकगणित

श्रीनिवासन के अनुसार, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली JD(U) और बीजेपी के NDA और RJD तथा कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन अंकगणित की दृष्टि से लगभग बराबर हैं। उन्होंने कहा, “2020 के चुनावों में दोनों गठबंधनों ने 37.2 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। अंतर स्ट्राइक रेट में था—बीजेपी की 67 प्रतिशत क्षमता ने उन्हें 74 सीटें दिलाईं, जबकि JD(U) सिर्फ 43 सीटों तक सीमित रही।”

बिहार राजनीति की असली कहानी

श्रीनिवासन का तर्क है कि बिहार की राजनीति केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक गठबंधनों में बदलाव की भी कहानी है। उन्होंने कहा, “लालू प्रसाद यादव ने बिहार की पिछड़ी जातियों को राजनीतिक गौरव दिया। नीतीश कुमार ने प्रशासनिक व्यवस्था के साथ इसका अनुसरण किया—जैसा कि उन्हें ‘सुशासन बाबू’ कहा गया। लेकिन अब नीतीश अपने करियर की संध्या में हैं। उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी सुरक्षित हो सकती है, लेकिन उनके आसपास गंभीर भ्रष्टाचार आरोपों का सामना कर रहे लोग हैं। उनकी सरकार के खिलाफ एंटी-इंकंबेंसी असली है।”

प्रशांत किशोर: संभावित व्यवधानक

श्रीनिवासन पूर्व चुनाव रणनीतिकार से राजनीति में आए प्रशांत किशोर को इस चुनाव का “संभावित व्यवधानक” बताते हैं। उन्होंने कहा, “उन्होंने 600 दिनों में बिहार के 2,500 गांवों का दौरा किया है। वह जाति या धर्म के बजाय महिलाओं और शिक्षित, बेरोजगार युवाओं की आकांक्षाओं से जुड़ रहे हैं। अगर लालू सशक्तिकरण और नीतीश शासन का प्रतीक थे, तो प्रशांत महत्वाकांक्षा का प्रतीक हैं।”

हालांकि, श्रीनिवासन ने चेतावनी दी कि भीड़ को वोट में बदलना बिहार में अलग खेल है। उन्होंने कहा, “जाति अभी भी अंतिम निर्धारक है। जब तक किशोर इसे पार नहीं कर पाते, उन्हें ज्यादा सीटें नहीं मिल सकतीं। लेकिन गलती न करें—वह खलनायक (spoiler) बन सकते हैं। याद करें, 2020 में चिराग पासवान की पार्टी ने सिर्फ एक सीट जीती थी, लेकिन 33 विधानसभा क्षेत्रों में JD(U) को नुकसान पहुँचाया। किशोर भी इसी तरह की भूमिका निभा सकते हैं—राजा नहीं, लेकिन राजा बनाने वाले।”

सत्तारूढ़ मोर्चा: महिलाओं पर जोर

नीतीश कुमार इस बार महिला मतदाताओं पर बहुत भरोसा कर रहे हैं। श्रीनिवासन ने कहा, “2020 में महिला मतदान पुरुषों से पांच प्रतिशत अधिक था। वह मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जैसी योजनाओं पर फिर से दांव लगा रहे हैं, जिसमें स्वयं सहायता समूहों को 10,000 रुपये देने का वादा है। लेकिन विपक्षी पार्टियां इसे राज्य-प्रायोजित रिश्वत बता रही हैं, खासकर समय को देखते हुए।”

तेजस्वी यादव की चुनौती

RJD के तेजस्वी यादव अपने माता-पिता के शासन की ‘जंगल राज’ छवि को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। श्रीनिवासन कहते हैं, “तेजस्वी जानबूझकर अपनी छवि को आधुनिक बना रहे हैं। वह खुद को युवा, साफ-सुथरा और आगे देखने वाला नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। लेकिन उनकी चुनौती यह है कि मुस्लिम-यादव आधार से आगे बढ़कर अत्यंत पिछड़ी जातियों को आकर्षित करें, जो मतदाताओं का लगभग 36 प्रतिशत हैं।”

नीतीश के लिए कठिन लड़ाई

नीतीश कुमार के बारे में श्रीनिवासन स्पष्ट हैं: “उनका स्वास्थ्य, उनकी पार्टी का पतन और एक बेचैन मतदाता वर्ग सभी उनके पीछे पड़ गए हैं। किसी राजनेता को कभी कम नहीं आंका जा सकता, लेकिन नीतीश के लिए जीवन और राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई कभी इतनी कठिन नहीं रही।

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