बिहार चुनाव: रुझानों में नीतीश कुमार फिर साबित हुए राजनीति के सबसे मजबूत चेहरे
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बिहार चुनाव: रुझानों में नीतीश कुमार फिर साबित हुए राजनीति के सबसे मजबूत चेहरे

Nitish Kumar का असर किसी खास पहचान की राजनीति पर नहीं, बल्कि 'समावेशी मॉडल' पर आधारित है, जो समाज के सभी तबकों को जोड़ता है।


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Bihar Elections 2025: वोटों की गिनती के शुरुआती दौर से ही यह स्पष्ट हो गया कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की पकड़ आज भी बरकरार है। वे पिछले 20 वर्षों से राज्य की सत्ता संभालते आ रहे हैं और इस बार भी रुझान उनकी मजबूती को रेखांकित करते नजर आ रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जनता दल (यूनाइटेड) बिहार की 243 सीटों में से 75 से अधिक पर आगे चल रही थी। सुबह 11:30 बजे तक जेडीयू 83 सीटों पर बढ़त बनाए हुए था। यह संख्या राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की 33 सीटों की बढ़त से काफी अधिक थी और उसके सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की 78 सीटों की बढ़त को भी पीछे छोड़ रही थी। यह प्रदर्शन 2020 के चुनाव की तुलना में बड़ा बदलाव माना जा रहा है, जब जेडीयू मात्र 43 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह नतीजे नीतीश कुमार की राजनीतिक क्षमता और जनसमर्थन को वोटों में बदलने की योग्यता को साबित करते हैं, भले ही हाल के दिनों में उनकी सेहत को लेकर चिंताएं थीं। सामाजिक विश्लेषक एमके चौधरी ने कहा कि 2010 का चुनाव नीतीश कुमार का स्वर्णिम दौर था। जेडीयू ने 115 और बीजेपी ने 91 सीटें जीती थीं, जिससे आरजेडी को करारी हार मिली थी। इस बार भी वैसा प्रदर्शन दोहराना उनकी स्वीकार्यता का बड़ा संकेत है।

जेडीयू नेताओं के अनुसार, नीतीश कुमार ने चुपचाप, लेकिन प्रभावी तरीके से पूरे राज्य में प्रचार किया। जेडीयू का कहना है कि इस जीत का श्रेय नीतीश कुमार को जाता है। उन्होंने बिना शोर-शराबे के पूरे राज्य में अभियान चलाया। जनता की प्रतिक्रिया से साफ था कि लोग अपने वोटों के जरिए बड़ा संदेश देना चाहते हैं। लोगों की सोच बदली है, वे अब ज्यादा आकांक्षी हैं, जबकि विपक्ष उन्हें पुराने नजरिए से देखता रहा।

पार्टी का कहना है कि नीतीश कुमार का असर किसी खास पहचान की राजनीति पर नहीं, बल्कि “समावेशी मॉडल” पर आधारित है, जो समाज के सभी तबकों को जोड़ता है। अगर महिलाएं इतनी बड़ी संख्या में मतदान कर रही हैं तो यह बदलाव की कहानी खुद-ब-खुद बयां करता है। नतीजे पहले से ही स्पष्ट थे, बस विपक्ष उसे पढ़ना नहीं चाहता था।

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