
बिहार की सिकटा सीट पर बदलते समीकरण, अबकी बार किसकी जीत?
सिकटा विधानसभा सीट पर कांग्रेस, वर्मा और आज़म परिवार का दबदबा रहा है। 2020 में माले ने जीत दर्ज कर नया इतिहास रचा। अब समीकरण बदल रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और उम्मीदवारों को लेकर गहमागहमी तेज़ हो गई है। सिकटा सीट उन चुनिंदा क्षेत्रों में से एक है जहां दशकों तक कुछ चुनिंदा परिवारों का दबदबा रहा है। रायफुल आज़म का परिवार और वर्मा परिवार यहां की राजनीति में लंबे समय तक प्रभावी रहे।
सिकटा सीट का परिचय
सिकटा विधानसभा क्षेत्र पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित है और यह वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें आती हैं वाल्मीकि नगर, रामनगर (एससी), नरकटियागंज, बगहा, लौरिया और सिकटा। 1952 से यहां लगातार चुनाव होते आ रहे हैं।
शुरुआती दौर: कांग्रेस का वर्चस्व
1952 और 1957 में कांग्रेस के फजलुर रहमान ने लगातार जीत दर्ज की। 1977 में वे जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे और ऊर्जा मंत्रालय में राज्य मंत्री बने।
रायफुल आज़म और उनके परिवार का उदय
1962 में रायफुल आज़म ने स्वतंत्र पार्टी से जीत हासिल की। इसके बाद कभी हार, कभी जीत का सिलसिला चलता रहा। 1969 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीतकर फिर अपनी पकड़ मज़बूत की।
1972 और 1977 में उनके बेटे फैयाजुल आज़म ने कांग्रेस संगठन के टिकट पर लगातार जीत दर्ज की।
वर्मा परिवार का दबदबा
1980 और 1985 में जनता पार्टी के धर्मेश प्रसाद वर्मा विजयी रहे। वे शिकारपुर घराने से आते थे। बाद में उनके परिवार से जुड़े कई लोग भी राजनीति में सक्रिय रहे।
1991 से दिलीप वर्मा का सिकटा से जीत का सिलसिला शुरू हुआ। उन्होंने अलग-अलग दलों — चंपारण विकास पार्टी, भाजपा, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय — से चुनाव लड़ा और कई बार जीत हासिल की।
समीकरण में बदलाव
2005 अक्तूबर में कांग्रेस के फिरोज आलम ने दिलीप वर्मा को हराकर बाज़ी पलट दी। हालांकि 2010 में दिलीप वर्मा ने फिर वापसी की और जीत दर्ज की।2015 का चुनाव दिलचस्प रहा जब दिलीप वर्मा भाजपा से और उनके सगे भाई धर्मेश वर्मा समाजवादी पार्टी से मैदान में थे। नतीजा यह रहा कि दोनों भाइयों को हार का सामना करना पड़ा और जदयू के फिरोज आलम विजयी हुए।
2020 में नया इतिहास
2020 विधानसभा चुनाव में सिकटा सीट पर भाकपा (माले) के वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने निर्दलीय दिलीप वर्मा को हराकर सीट छीन ली। इस बार फिरोज आलम जदयू से चुनाव लड़े, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे।
सिकटा विधानसभा सीट का इतिहास परिवारवादी राजनीति, बदलते समीकरणों और दल-बदल की कहानियों से भरा है। कभी कांग्रेस, फिर जनता पार्टी, उसके बाद वर्मा और आज़म परिवार का दबदबा रहा, और अब माले ने यहां नई शुरुआत की है। आगामी चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या परिवारों का प्रभाव लौटेगा या फिर नए समीकरण जन्म लेंगे।