
क्या सवर्ण ही हैं भाजपा की असली ताकत? उम्मीदवार सूची से उठा सवाल
भाजपा द्वारा बिहार चुनाव 2025 के लिए घोषित उम्मीदवारों की सूची यह दिखाती है कि पार्टी की नीतियां और नारे अक्सर मेल नहीं खाते। सवर्णों को टिकटों में भारी हिस्सा देकर भाजपा ने यह जता दिया है कि वह सामाजिक समीकरणों की बजाय अपने पारंपरिक वोट बैंक पर दांव लगाने को प्राथमिकता दे रही है, भले ही वह आबादी में अल्पसंख्यक क्यों न हों।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जिन 101 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उनमें से 50 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार ऊपरी जातियों (सवर्णों) से हैं। यह स्थिति न सिर्फ भाजपा की सामाजिक न्याय के नारों और व्यवहार के बीच की खाई को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि पार्टी राज्य में चुनाव जीतने के लिए लंबे समय से सवर्ण समुदाय पर निर्भर रही है।
राजपूत और भूमिहारों पर बड़ा भरोसा
भाजपा ने मंगलवार को 71, बुधवार को 12 और बुधवार रात को 18 उम्मीदवारों की सूची जारी की। एनडीए के भीतर सीटों के बंटवारे के तहत भाजपा और जेडीयू को 101-101 सीटें मिली हैं, जबकि चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) को 29 और रालोसपा व हम को 6-6 सीटें दी गई हैं।
इन 101 में से भाजपा ने 49 उम्मीदवार ऊपरी जातियों से उतारे हैं, जबकि 2023 की जातीय जनगणना रिपोर्ट के अनुसार सवर्णों की आबादी राज्य में महज 10.57% है। इसमें भूमिहार (2.86%), ब्राह्मण (3.66%), राजपूत (3.45%) और कायस्थ (0.60%) शामिल हैं। इन 49 उम्मीदवारों में राजपूत 21, भूमिहार 16 और ब्राह्मण व कायस्थ से 1-1 उम्मीदवार हैं।
बहुसंख्यकों को नाममात्र प्रतिनिधित्व
हालांकि, मैथिली ठाकुर जैसी युवा लोक गायिका और पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा जैसे चेहरे भाजपा की सूची में शामिल हैं, अधिकांश उम्मीदवार पुराने नेता ही हैं। यह विडंबना है कि सामाजिक न्याय का दम भरने वाली भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की सूची में पिछड़े वर्गों को बहुत कम जगह दी है। बिहार की जातीय गणना रिपोर्ट के अनुसार, ओबीसी 27.1%, ईबीसी 36.01%, अनुसूचित जाति (दलित) 19.6% और अनुसूचित जनजाति 1.68% आबादी के हिस्सेदार हैं — यानी कुल 85% आबादी, जिसे भाजपा ने बाकी के 50% टिकटों में समेट दिया।
क्या खोखले हैं भाजपा के ‘सामाजिक न्याय’ के नारे?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की उम्मीदवार सूची ने उन नारों को खोखला साबित कर दिया है, जिन्हें पार्टी के शीर्ष नेता जातीय सर्वे के बाद उठाते रहे हैं, जैसे – जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी और जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी अतीत में अपनी पिछड़ी जाति की पहचान को उजागर कर सामाजिक न्याय की बात की थी, लेकिन उम्मीदवारों की सूची कुछ और ही कहानी बयां करती है।
पिछड़ा वर्ग की एकता टूटी, सवर्णों की पकड़ मजबूत
राजनीतिक विश्लेषक सत्यनारायण मदन का कहना है कि भाजपा सवर्ण तुष्टीकरण की ओर बढ़ रही है। क्योंकि पिछड़े वर्गों में एकता की कमी है। उन्होंने कहा कि राजपूत और भूमिहार, बिहार में जमीन, कारोबार और नौकरशाही, मीडिया और न्यायपालिका में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं और राजनीतिक रूप से संगठित हैं — इसके विपरीत ईबीसी और दलित वर्ग बिखरे हुए हैं। मदन ने मुसहर समुदाय का उदाहरण देते हुए कहा कि यह अत्यंत वंचित दलित जाति राज्य की 3.08% आबादी का हिस्सा है, जो लगभग राजपूतों के बराबर है, लेकिन भाजपा की सूची में एक भी मुसहर उम्मीदवार नहीं है।
यादवों और मुस्लिमों को न्यूनतम प्रतिनिधित्व
भाजपा ने यादव समुदाय से सिर्फ चार उम्मीदवार चुने हैं, जबकि यह समूह 14.26% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है और आमतौर पर राजद का समर्थन करता है। वहीं, मुस्लिम समुदाय, जिसकी आबादी करीब 17% है, से भाजपा ने कोई भी उम्मीदवार नहीं चुना है। चौंकाने वाली बात यह है कि बनिया जाति, जो भाजपा का पारंपरिक समर्थक मानी जाती है और जिसकी आबादी 2.31% है, से भी केवल चार उम्मीदवार शामिल किए गए हैं। मिठापुर मंडी के व्यापारी सोनू गुप्ता ने कहा कि हम तो हर चुनाव में भाजपा को वोट देते रहे हैं, हार-जीत की परवाह किए बिना। हम ही असली भाजपा वोटर हैं।
सवर्ण – भाजपा की रीढ़
भाजपा का सवर्णों पर भरोसा नया नहीं है। 1990 के बाद मंडल राजनीति के दौर में कांग्रेस से मोहभंग होने पर सवर्णों ने भाजपा को समर्थन देना शुरू किया, जो आज तक जारी है। राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर के अनुसार, सवर्ण भाजपा की मुख्य ताकत हैं और पार्टी इन्हें कभी नजरअंदाज नहीं कर सकती। साल 2020 के चुनाव में भाजपा ने 110 सीटों में से 51 पर सवर्ण उम्मीदवार उतारे थे और 2015 में 157 सीटों में से 65 पर।
राजनीतिक बाहुबली भी ज्यादातर सवर्ण
1990 के दशक से अब तक भाजपा को समर्थन देने वाले अधिकतर राजनीतिक बाहुबली और प्रभावशाली नेता सवर्ण समुदाय से रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में 40 में से 12 सांसद (30%) सवर्ण समुदाय से हैं। 2019 में यह संख्या 13 थी।