
कहलगांव में भाजपा ने कांग्रेस का गढ़ तोड़ा, क्या अब बनेगा नया समीकरण?
सदानंद सिंह के निधन के बाद कहलगांव विधानसभा में पहली बार चुनाव हो रहा है। भाजपा, कांग्रेस और जदयू में सियासी टक्कर, विकास और स्थानीय मुद्दे अहम हैं।
बिहार के दिग्गज नेता सदानंद सिंह का नाम राजनीति के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। उन्होंने न केवल बिहार विधानसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, बल्कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य मंत्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1985 में जब कांग्रेस ने उनका टिकट काटा, तो उन्होंने कहलगांव विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1969 में विधानसभा चुनाव में अपनी शुरुआत करने वाले सदानंद सिंह अब 2025 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाग नहीं लेंगे।
सदानंद सिंह ने अपने सियासी करियर में कुल 12 चुनाव लड़े, जिनमें से नौ में उन्हें जीत मिली। आज़ादी के बाद कहलगांव विधानसभा सीट पर 17 चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने 11 बार जीत हासिल की। 1977 में बिहार में जनता पार्टी की लहर थी, लेकिन सदानंद सिंह विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कहलगांव में विजयी रहे। उन्होंने एक बार भागलपुर लोकसभा सीट से भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली।
सदानंद सिंह के निधन के बाद बदलाव
2020 के विधानसभा चुनाव में सदानंद सिंह ने अपनी सियासी पारी को विराम दिया। इस चुनाव में कांग्रेस ने उनके पुत्र शुभानंद मुकेश को मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। 2021 में सदानंद सिंह का निधन हुआ और अब उनके निधन के बाद कहलगांव विधानसभा में पहली बार चुनाव हो रहा है।
पहली बार भाजपा का खाता खुला
कहलगांव विधानसभा सीट पर 11 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की, जबकि दो बार जनता दल, और एक-एक बार भाजपा, जदयू, सीपीआई और निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे। 2020 में पहली बार भाजपा के पवन कुमार यादव ने कांग्रेस के शुभानंद मुकेश को 42,893 मतों से हराया, जो इस सीट पर अब तक का सबसे बड़ा मत अंतर था। इसके बाद शुभानंद मुकेश जदयू में शामिल हो गए।
चुनावी बंटवारा और दावेदार
इस बार महागठबंधन और एनडीए में सीट और विधानसभा क्षेत्र का बंटवारा अभी तय नहीं हुआ है। कहलगांव कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, इसलिए महागठबंधन में इसे कांग्रेस के खाते में देने की उम्मीद है। कई दावेदार क्षेत्र में सक्रिय संपर्क अभियान चला रहे हैं। दूसरी तरफ एनडीए में भाजपा के वर्तमान विधायक पवन यादव हैं, लेकिन जदयू के कई नेता इस सीट को अपने खाते में लाने के लिए सक्रिय हैं।
विकास और चुनावी मुद्दे
वर्तमान विधायक पवन यादव ने पिछले पांच साल में हुए विकास कार्यों का ब्यौरा देते हुए कहा कि ग्रामीण सड़कों का जाल बिछा, शहर में जलापूर्ति सुदृढ़ हुई, स्टेडियम निर्माण की स्वीकृति मिली और एकचारी में रेल ओवरब्रिज का निर्माण कराया गया। स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाईं और रोजगार सृजन पर भी ध्यान दिया गया।
वहीं, राजद के प्रखंड अध्यक्ष मो. फखरुद्दीन ने आरोप लगाया कि विधायक ने कई विकास वादों को पूरा नहीं किया, जैसे एश डाइक से उड़ने वाली राख को नियंत्रित करना और कटाव पीड़ितों का पुनर्वास।
पिछले पांच साल के प्रमुख विकास कार्यों में एनएच-80 का निर्माण, 224 ग्रामीण सड़कों का निर्माण, आईटीआई कॉलेज भवन, भागलपुर-कोतवाली सड़क चौड़ीकरण, रेल फाटक पर ओवरब्रिज और एसटीपी निर्माण शामिल हैं। ताड़र कॉलेज मैदान और गोराडीह प्रखंड के विरनौध में उच्च विद्यालय मैदान में स्टेडियम निर्माण की स्वीकृति भी मिली।
इस बार चुनाव के प्रमुख मुद्दे
इस बार चुनाव में प्रमुख मुद्दे सनोखर बाजार को प्रखंड कार्यालय बनाए जाने की मांग, एनटीपीसी के एस डाइक का मुद्दा, और चंडिका स्थान के पास मेगा फूड पार्क के लिए अधिग्रहीत जमीन पर उद्योग लगाने की मांग होंगे।
कहलगांव विधानसभा सीट पर इस बार भी सियासी प्रतिस्पर्धा और रणनीति महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि यह सीट हमेशा से राजनीतिक महत्व और विकास की दृष्टि से चर्चा में रही है।