मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या से सियासत में भूचाल, चुनाव से पहले गरमाई बिहार की राजनीति
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मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या से सियासत में भूचाल, चुनाव से पहले गरमाई बिहार की राजनीति

चुनाव से ठीक पहले मोकामा में हुई इस हत्या ने NDA के अपराध-मुक्त बिहार के दावे पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। वहीं, विपक्ष को भी “जंगलराज” के पुराने आरोपों का जवाब देने का मौका मिल गया है।

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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण से ठीक कुछ दिन पहले पटना के बाहरी इलाके मोकामा में हुए एक राजनीतिक हत्या कांड ने पूरे इलाके का माहौल गरमा दिया है। यह घटना न सिर्फ़ मोकामा, बल्कि आसपास के जिलों में भी तनाव का कारण बन गई है। 76 वर्षीय दुलारचंद यादव की गुरुवार (30 अक्टूबर) को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी और आरोप है कि उन्हें बाद में वाहन से कुचल दिया गया। शव को बरह अनुमंडलीय अस्पताल लाया गया, जहां भारी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात रहे, ताकि स्थिति बिगड़े नहीं।

दुलारचंद यादव स्थानीय स्तर पर "ऑल इंडिया यादव संघ" के अध्यक्ष और “नेताजी” के नाम से जाने जाते थे। 1990 के दशक में वे खुद को बिहार के “ताल का बादशाह” (जलभूमि क्षेत्र का राजा) कहा करते थे। उनके बचपन के दोस्त रामबृक्ष यादव बताते हैं कि वो कहा करते थे — ‘लालू बिहार के बादशाह हैं और मैं ताल का।

राजनीति में वे 1995 में निर्दलीय और 2010 में जनता दल (सेक्युलर) के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार हार गए। दुलारचंद को राजनीति का चतुर “मैनेजर” माना जाता था, जिनकी पकड़ चुनावी अंकगणित पर मज़बूत थी। यही कारण था कि 1990 के दशक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपनी लोकसभा सीट (बरह) से चुनाव के दौरान उनकी रणनीतिक मदद ली थी।

जन सुराज पार्टी से जुड़े थे दुलारचंद

इस बार दुलारचंद प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज पार्टी (JSP) के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के लिए काम कर रहे थे। यह सीट बिहार की “बाहुबली राजनीति” के लिए जानी जाती है और उनकी हत्या ने इसे फिर चर्चा में ला दिया है। मोकामा विधानसभा क्षेत्र पिछले दो दशकों से अनंत सिंह के प्रभाव में है, जिन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2005 से लेकर अब तक वे किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ें — जीत उन्हीं की हुई। 2022 में हथियार बरामदगी केस में अयोग्य घोषित होने के बाद उनकी पत्नी नीलम देवी ने उपचुनाव में जीत हासिल की थी। इस बार अनंत सिंह फिर से जेडीयू (JD-U) के टिकट पर मैदान में हैं।

जातीय समीकरण और चुनावी असर

दुलारचंद के करीबी मानते हैं कि JSP उम्मीदवार पीयूष, अनंत सिंह के अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) वोट बैंक में सेंध लगा सकते थे। मोकामा में धनुक जाति (EBC) की बड़ी आबादी है और पीयूष खुद उसी समुदाय से हैं। मोकामा में लगभग 2.7 लाख मतदाता हैं, जिनमें भूमिहार, यादव, धनुक, कुर्मी-कोयरी और मुस्लिम समुदाय का प्रभाव है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यादव-धनुक गठजोड़ ने अनंत सिंह के लिए खतरा पैदा कर दिया था।

RJD को फायदा पहुंचाने की थी योजना?

दुलारचंद के पुराने साथियों रामबृक्ष यादव और कृष्णा यादव का कहना है कि वे “लालू यादव के आदमी” थे और RJD को जीत दिलाने की रणनीति पर काम कर रहे थे। उनका दावा है कि JSP की जीत के बाद पीयूष RJD में शामिल होने वाले थे और इसी तरह EBC वोटों की हिस्सेदारी बढ़ाकर RJD उम्मीदवार वीना देवी को फायदा पहुंचाना लक्ष्य था।

हत्या के दिन क्या हुआ?

गुरुवार को अनंत सिंह तर तर गांव में प्रचार के लिए पहुंचे थे। कुछ ही देर बाद पीयूष और दुलारचंद भी उसी इलाके में प्रचार करने वाले थे। स्थानीयों के अनुसार, दोनों पक्षों के समर्थक बसवां चक और खुशाल चक गांवों के बीच आमने-सामने आ गए और झड़प हुई। इसी दौरान गोलियां चलीं और दुलारचंद की मौत हो गई।

समर्थकों का आरोप

बरह अस्पताल के बाहर मौजूद समर्थकों ने दावा किया कि दुलारचंद को तीन गोलियां मारी गईं और बाद में वाहन से कुचल दिया गया। उन्होंने हत्या का आरोप अनंत सिंह पर लगाया। एक समर्थक सुग्रीव यादव ने कहा कि असल निशाना पीयूष थे, लेकिन दुलारचंद ने उन्हें बचाने की कोशिश की। पटना ग्रामीण के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मृतक के पैर में गोली के निशान मिले हैं और यह जांच की जा रही है कि वे वाहन से कुचले गए या नहीं। FIR अनंत सिंह और उनके दो भतीजों रणवीर और करमवीर सहित पांच लोगों के खिलाफ दर्ज की गई है। अनंत पक्ष से भी एक प्रति-FIR दर्ज कराई गई, जिसमें उनके समर्थकों के घायल होने का दावा किया गया है।

जंगलराज बनाम कानूनराज की बहस

मोकामा की इस घटना ने बिहार की सियासत को हिला दिया है। महागठबंधन (RJD, CPI-ML, आदि) ने नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि अब साफ़ है कि असली गुंडों को कौन संरक्षण दे रहा है। तेजस्वी यादव ने सरकार पर तंज कसा कि “यह हत्या बताती है कि बिहार में कानून का नहीं, बाहुबलियों का राज चल रहा है।” नीतीश कुमार ने भी 1 नवंबर को जारी अपने वीडियो संदेश में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था को बहाल रखा जाएगा।

जातीय विभाजन फिर उभरा

मारे गए दुलारचंद यादव (पिछड़ा वर्ग) समुदाय से थे और वे EBC उम्मीदवार (धनुक) के लिए प्रचार कर रहे थे, जबकि आरोपी भूमिहार (सवर्ण) समुदाय के बाहुबली के समर्थक बताए जा रहे हैं। इस समीकरण ने RJD को राजनीतिक फायदा पहुंचाया है, जो पिछड़ों और EBC वोटों को एकजुट करने में लगी है। विपक्ष इस घटना को “सवर्ण बनाम पिछड़ा संघर्ष” के प्रतीक के रूप में पेश कर रहा है — वही सामाजिक विभाजन, जिसने कभी लालू यादव की राजनीति को मजबूत किया था।

दुलारचंद बने यादव समाज के शहीद

बरह और आसपास के गांवों में दुलारचंद को “शहीद” के रूप में पेश किया जा रहा है। लोग कह रहे हैं कि एक यादव ने अपने प्राण देकर धनुक भाई को बचाया, यही असली एकता है। मोकामा और आसपास के इलाकों में अब शिक्षा, स्वास्थ्य या विकास जैसे मुद्दों की बजाय जातीय और सुरक्षा का सवाल चुनावी चर्चा में छा गया है।

NDA पर बढ़ा दबाव

चुनाव से ठीक पहले मोकामा में हुई इस हत्या ने NDA के अपराध-मुक्त बिहार के दावे पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। वहीं, विपक्ष को भी “जंगलराज” के पुराने आरोपों का जवाब देने का मौका मिल गया है। अब वही पूछ रहा है कि “कानूनराज कहां है? मोकामा की यह घटना न सिर्फ़ एक हत्या है, बल्कि बिहार के चुनावी परिदृश्य में नया मोड़ लेकर आई है — जहां जाति, अपराध और सत्ता की राजनीति फिर एक बार आमने-सामने हैं।

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