
भाई बनाम भाभी, जेठ बनाम भाभी, नरकटियागंज सीट का है अनोखा मिजाज
बिहार की नरकटियागंज सीट पर दशकों से वर्मा राजघराने का दबदबा रहा है। भाई-भाई और भाभी-जेठ की टक्कर ने इसे बिहार की सबसे दिलचस्प राजनीतिक सीट बना दिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियां तेज़ कर दी हैं। द फेडरल देश की खास सीरीज 'सीट का मिजाज' में बात करेंगे नरकटियागंज विधानसभा सीट की, जहां दशकों से वर्मा राजघराने का वर्चस्व रहा है।
नरकटियागंज सीट
नरकटियागंज पश्चिमी चंपारण ज़िले में आती है और वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें शामिल हैं—वाल्मीकि नगर, रामनगर (एससी), नरकटियागंज, बगहा, लौरिया और सिकटा।यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। इससे पहले यह शिकारपुर विधानसभा क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। यहाँ 2010 में पहली बार चुनाव हुए।
2010 में पहला चुनाव और भाजपा की जीत
2010 में इस सीट पर पहली बार मुकाबला हुआ। भाजपा के सतीश चंद्र दुबे ने कांग्रेस के आलोक प्रसाद वर्मा को 20,228 वोटों से हराया।तीसरे स्थान पर निर्दलीय फखरुद्दीन खान रहे, जिन्हें 22,381 वोट मिले।सतीश चंद्र दुबे बाद में राज्यसभा और लोकसभा दोनों पहुँचे और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। उनके लोकसभा सदस्य बनने के बाद सीट खाली हुई और 2014 में उपचुनाव हुए।
2014 का उपचुनाव और रश्मि वर्मा की एंट्री
2014 में भाजपा ने रश्मि वर्मा को मैदान में उतारा। उन्होंने कांग्रेस के फखरुद्दीन खान को 15,742 वोटों से हराकर विधानसभा की दहलीज़ पर कदम रखा।रश्मि वर्मा का परिवार 1957 से सक्रिय राजनीति में है। उनके पति आलोक प्रसाद वर्मा 2010 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हार चुके थे।
2015 में भाई बनाम भाभी
2015 में कांग्रेस से विनय वर्मा (आलोक प्रसाद वर्मा के चचेरे भाई) ने जीत दर्ज की। उन्होंने भाजपा की रेनू देवी को 16,061 वोटों से हराया।दिलचस्प बात यह रही कि उसी चुनाव में रश्मि वर्मा भाजपा टिकट न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी बनीं और अपने ही चचेरे जेठ विनय वर्मा के खिलाफ लड़ीं। उन्हें 39,200 वोट मिले और वे तीसरे स्थान पर रहीं।
2020 में भाभी बनाम जेठ
2020 में भाजपा ने रश्मि वर्मा को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस से फिर विनय वर्मा उतरे। इस बार भाभी-जेठ की सीधी टक्कर हुई और रश्मि वर्मा ने 21,134 वोटों से बड़ी जीत दर्ज की।
विवादों में रहीं रश्मि वर्मा
2022 में उनके इस्तीफे की खबरें सुर्खियों में रहीं। 2023 में सोशल मीडिया पर उनकी कथित आपत्तिजनक तस्वीरें वायरल हुईं, जिन्हें उन्होंने भ्रामक बताया।अपहरण, रंगदारी और आर्म्स एक्ट के मामलों में भी उनका नाम जुड़ा।
दीवान राजघराने की राजनीतिक विरासत
नरकटियागंज सीट वर्मा परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।सिंहेश्वर प्रसाद वर्मा (विनय वर्मा के पिता) ने 1957 में शिकारपुर से जीत दर्ज की।उमेश प्रसाद वर्मा ने 1962 में यहां जीत हासिल की।इस घराने के विपिन बिहारी वर्मा 1950-52 में पहली लोकसभा के सदस्य भी रहे।
कुल मिलाकर, नरकटियागंज सीट पर दशकों से दीवान वर्मा राजघराने का दबदबा है। कभी भाई-भाई तो कभी भाभी-जेठ आमने-सामने होते रहे हैं। आगामी 2025 चुनाव में भी इस सीट पर परिवार बनाम परिवार का दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है।