पहले खुद को बदलें फिर बिहार की सोचें,  प्रशांत किशोर के पूर्व सहयोगी ने खोली पोल
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पहले खुद को बदलें फिर बिहार की सोचें, प्रशांत किशोर के पूर्व सहयोगी ने खोली पोल

डॉ मंज़र नसीम का कहना है कि वो प्रशांत किशोर की नीति और नीयत से बेहद प्रभावित थे। लेकिन समय के साथ उनमें बदलाव आ गया। बता दें कि डॉ मंजर, पूर्वी चंपारण के चनपटिया से बीएसपी उम्मीदवार हैं।


दो साल पहले तक प्रशांत किशोर यानी पीके को बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा माना जा रहा था। उनके जनसुराज अभियान को जनता का समर्थन मिल रहा था, और राजनीतिक विश्लेषक इसे एक नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत बता रहे थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। कभी उनकी कोर टीम का अहम हिस्सा रहे मंजर नसीम ने चुप्पी तोड़ते हुए पीके की नीयत पर बड़ा सवाल उठा दिया है।

आखिर मंजर नसीम ने क्या कहा, क्यों कहा, और इससे जनसुराज अभियान की साख पर क्या असर पड़ सकता है।मंजर का दावा है कि "दो साल पहले सब ठीक था, लेकिन अब प्रशांत किशोर की नीयत में खोट आ गई है"। उनका कहना है कि जनसुराज का मकसद बिहार की जनता की आवाज़ बनना था, लेकिन अब यह आंदोलन ‘जन’ से ज़्यादा ‘व्यक्तिगत छवि’ का माध्यम बन गया है।

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मंजर नसीम के बयान ने प्रशांत किशोर की साफ़ छवि पर गहरा असर डाला है। जो नेता जनता के बीच ‘विकल्प की राजनीति’ लेकर आए थे, उन पर अब ‘नीयत में खोट’ का आरोप लग रहा है।क्या यह बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले जनसुराज के लिए झटका साबित होगा?क्या पीके अपनी पुरानी साख वापस हासिल कर पाएंगे? इस सवाल के जवाब में मंज़र नसीम कहते हैं कि अगर दो साल पहले वाले पीके आज भी वैसे तो बात बन सकती थी। इसमें दो मत नहीं कि वो लोगों के दिलों पर राज कर रहे थे। लेकिन टिकट बंटवारे में उनका चरित्र दूसरे दलों की तरह नजर आया।

डॉक्टर नसीम कहते हैं कि आप खुद सोचिये कि जिस शख्स ने टिकट पाने के कुछ आधार बनाए और कहा कि विधानसभा चुनाव में टिकट उन्हें ही मिलेगा जो जमीनी स्तर पर सक्रिय रहे। अब सवाल यह है कि क्या वो खुद अपनी बातों को भूल गए। जब हमने उनसे सवाल किया क्या आपको टिकट नहीं मिसा इस वजह से पीके को बुरा भला कह रहे हैं। इस सवाल के जवाब में डॉक्टर नसीम कहते हैं बात उनकी नहीं है। बनियापुर की कार्यकर्ता पुष्पा सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने भी अच्छा काम किया था। टिकट के लिए जो आवश्यक शर्तें थीं उन्हें पूरा किया। लेकिन क्या हुआ। टिकट किसी और को मिला। इसके साथ यह भी कहते हैं कि जो प्रशांत किशोर पहले हर मुद्दे पर चर्चा करते थे। चुनाव करीब आते ही वो अपने कोर टीम के सदस्यों से ही कन्नी काटने लगे। अब आप इसे क्या कहेंगे।

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