आरजेडी हुई आधी, लालू की दूरी से लेकर परिवारिक कलह तक—5 फैक्टरों ने कराई दुर्गति
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आरजेडी हुई आधी, लालू की दूरी से लेकर परिवारिक कलह तक—5 फैक्टरों ने कराई दुर्गति

Grand Alliance: महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर आखिरी समय तक सहमति नहीं बन सकी। करीब एक दर्जन सीटों पर फ्रेंडली फाइट की स्थिति बनी, जिससे वोट बंटे और नुकसान उठाना पड़ा।


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Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के ताजा रुझानों ने तेजस्वी यादव की उम्मीदों को जोरदार झटका दिया है। तेजस्वी चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जीत का भरोसा जताते रहे और यहां तक कि शपथ लेने की तारीख तक बता रहे थे, लेकिन नतीजों की दिशा बिल्कुल अलग दिखाई दे रही है।

आरजेडी की स्थिति 2020 से भी कमजोर

अब तक के रुझानों में आरजेडी सिर्फ 33 सीटों पर आगे है। यह संख्या 2020 के मुकाबले आधी से भी कम है, जब पार्टी को 78 सीटें मिली थीं और वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस बार चुनाव आयोग के अनुसार जेडीयू 83 और भाजपा 80 सीटों पर आगे चल रही है। एनडीए की सहयोगी लोजपा-आर लगभग 22 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है, जबकि HAM भी 4 सीटों पर आगे है। इस तरह एनडीए 200 सीटों के आसपास बना हुआ है। जबकि महागठबंधन कुल मिलाकर भी 50 से कम सीटों पर सिमट सकता है।

अगर यही रुझान नतीजों में बदलते हैं तो यह चुनाव आरजेडी के लिए 2010 जैसा झटका साबित हो सकता है, जब पार्टी सिर्फ 22 सीटें जीत सकी थी। यह नतीजे तेजस्वी यादव के राजनीतिक सफर के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।

कांग्रेस की भी खराब स्थिति

राहुल गांधी ने इस चुनाव में सीधे तौर पर प्रचार की कमान संभाली, लेकिन परिणाम उनकी उम्मीदों के बिल्कुल विपरीत रहे। कांग्रेस ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 5 सीटें ही मिलती दिखाई दे रही हैं। यह पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

आरजेडी की खराब स्थिति के प्रमुख कारण

लालू प्रसाद यादव का चुनाव प्रचार में न होना

लालू यादव इस बार चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं थे। वे केवल बैकएंड से रणनीति बनाते नजर आए। इसके दो नुकसान हुए। समर्थकों में निराशा रही, क्योंकि वे लालू को मैदान में देखने के आदी थे। विपक्ष ने “जंगलराज” का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, जिससे आरजेडी को नुकसान हुआ।

परिवार में कलह और तेजप्रताप यादव का अलग रास्ता

तेज प्रताप यादव ने अपना अलग दल बनाकर चुनाव लड़ा। वे न सिर्फ खुद हार गए, बल्कि कई जगहों पर आरजेडी के वोट भी काटे। ये हालात आरजेडी के लिए वैसा ही झटका साबित हुए, जैसा 2017 में यूपी में सपा को परिवारिक विवाद के कारण झेलना पड़ा था।

नीतीश–मोदी की मजबूत जुगलबंदी

एनडीए ने चुनाव की शुरुआत से ही बेहतर तालमेल बनाए रखा। सीटों का स्पष्ट और समय पर बंटवारा हुआ। पीएम मोदी और नीतीश कुमार कई बार एक मंच पर नजर आए, जिससे वोटरों में भरोसा बढ़ा। इसके उलट महागठबंधन पूरे चुनाव में बिखरा हुआ दिखा।

वादों के बजाय नीतीश के काम पर भरोसा

तेजस्वी यादव ने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने जैसे बड़े वादे किए। लेकिन नीतीश कुमार की 10 हजार रुपये सहायता योजना और सरकार के कामकाज पर भरोसे ने तेजस्वी के वादों को कमजोर कर दिया।

सीट बंटवारे में विवाद

महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर आखिरी समय तक सहमति नहीं बन सकी। करीब एक दर्जन सीटों पर फ्रेंडली फाइट की स्थिति बनी, जिससे वोट बंटे और नुकसान उठाना पड़ा।

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