
‘नीतीश बनाम तेजस्वी’: जाति और महिला वोट तय करेंगे बिहार चुनाव का गणित | कैपिटल बीट
प्रचार थमने के साथ अब सभी दल मतदान की तैयारी में जुट गए हैं। NDA नीतीश कुमार के शासन रिकॉर्ड और महिला वोट बैंक पर भरोसा कर रहा है, जबकि महागठबंधन तेजस्वी यादव के रोजगार और नकद सहायता वादों को अपनी ताकत मान रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का प्रचार बुधवार (5 नवंबर) शाम थम गया। इस चरण में 18 जिलों की 121 विधानसभा सीटों पर 6 नवंबर को मतदान होगा। चुनाव आयोग के अनुसार, कुल 3.75 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इस चरण में 1,314 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 122 महिलाएं शामिल हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन आमने-सामने हैं। वरिष्ठ पत्रकार अशोक मिश्रा ने The Federal के कार्यक्रम Capital Beat में चर्चा के दौरान कहा कि यह मुकाबला “दोनों गठबंधनों के बीच बराबरी का है।
NDA की वापसी की चुनौती
मिश्रा के अनुसार, 2020 के विधानसभा चुनाव में जिन 121 सीटों पर इस बार मतदान होना है, उन पर महागठबंधन को हल्की बढ़त मिली थी। अब वह अपनी पकड़ बनाए रखने के साथ-साथ उन जातीय समूहों तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है जो पहले NDA के साथ रहे हैं। उत्तर बिहार अब भी जद(यू) का अहम गढ़ बना हुआ है। पार्टी यहां अपनी पकड़ बनाए रखने और दक्षिण बिहार में पिछली बार की हार की भरपाई करने की कोशिश कर रही है। वहीं भाजपा, जिसने पटना और मगध क्षेत्र में कई सीटें गंवाई थीं, इस बार शीर्ष नेताओं के ज़रिए फिर से मैदान में जोश भर रही है। दोनों गठबंधनों ने अपने प्रचार में कल्याणकारी योजनाओं और जातीय समीकरणों को केंद्र में रखा है। मिश्रा ने कहा कि फिलहाल मुख्य मुद्दे कल्याण योजनाएं और जाति आधारित लामबंदी ही हैं।
महिलाओं पर केंद्रित हुआ प्रचार अभियान
पहले चरण के प्रचार में महिलाओं को साधने की रणनीति प्रमुख रही। तेजस्वी यादव ने घोषणा की कि अगर महागठबंधन सत्ता में आता है तो मकर संक्रांति के दिन हर महिला को ₹30,000 नकद सहायता दी जाएगी। इससे पहले NDA सरकार ने ‘जीविका दीदी’ योजना के तहत महिलाओं को ₹10,000 की राशि जारी की थी।
नीतीश कुमार लंबे समय से महिलाओं के सशक्तिकरण को अपने शासन की आधारशिला बनाते आए हैं। ‘जीविका नेटवर्क’ के माध्यम से उन्हें बड़ा वोट बैंक मिला है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि विपक्ष की ₹30,000 की घोषणा इस समीकरण को बदल सकती है।
मिश्रा ने कहा कि महिलाएं पारंपरिक रूप से नीतीश कुमार की समर्थक रही हैं, लेकिन तेजस्वी की बड़ी नकद सहायता योजना अत्यंत पिछड़ी जाति की महिलाओं के वोट को बांट सकती है। यह विभाजन खासतौर पर दानापुर और पटना ग्रामीण क्षेत्र जैसी सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है, जहां RJD का प्रभाव पहले से मज़बूत है।
जातीय समीकरण फिर बने चुनाव का केंद्र
बिहार की राजनीति में जाति एक बार फिर प्रमुख भूमिका में है। अत्यंत पिछड़ी जातियां (EBC), जो ‘जीविका’ योजना की मुख्य लाभार्थी हैं, अब तक नीतीश कुमार का ठोस समर्थन आधार रही हैं। लेकिन कुछ ऊंची जाति और पिछड़ी जाति की महिलाएं अब रुझान बदलती दिख रही हैं। मिश्रा ने बताया कि बिहार में आज भी मतदान पारिवारिक स्तर पर होता है — अक्सर घर के सभी सदस्य एक ही दल को वोट देते हैं। इसलिए इस चुनाव में किसी गठबंधन की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वह पूरा परिवार अपने पक्ष में कर पाए या नहीं। वहीं, RJD का युवाओं पर केंद्रित अभियान और रोज़गार के वादे बेरोज़गारी व पलायन झेल रहे युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।
तीखे बयान, गरम हुआ माहौल
प्रचार के अंतिम चरण में भाजपा नेताओं के कई तीखे बयान सुर्खियों में रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “कट्टा और कंनपटी” वाले बयान, गृह मंत्री अमित शाह की “इटली करंट” टिप्पणी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के “अप्पू-पप्पू” वाले तंज ने सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोरी। मिश्रा ने कहा कि ऐसे बयान भाजपा नेतृत्व की हताशा दर्शाते हैं और यह भी जोड़ा कि महागठबंधन के नेता जैसे लालू प्रसाद यादव और राहुल गांधी ने इन बयानों पर पलटवार से परहेज़ किया है।
भाजपा ने एक बार फिर ‘जंगलराज* का मुद्दा उठाया है, लेकिन मिश्रा का कहना है कि अब यह नारा पहले जैसा असर नहीं दिखाता। 2005 और 2010 में असरदार रहा यह मुद्दा अब युवाओं के बीच उतना लोकप्रिय नहीं है, क्योंकि उनके लिए रोज़गार, शिक्षा और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
छोटी पार्टियां और मतदाता सूचियों में गड़बड़ी से बढ़ी अनिश्चितता
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के मैदान में उतरने से इस बार नया समीकरण बना है। किशोर का फोकस बेरोज़गारी, पलायन और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर रहा है। मिश्रा का मानना है कि पार्टी की पहचान तो बनी है, लेकिन अभी उसे बड़ी चुनावी सफलता मिलना मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि जन सुराज का संदेश शहरी और युवा मतदाताओं में असर डाल रहा है, पर बिहार का वोटिंग पैटर्न अब भी जातीय निष्ठा पर आधारित है। फिर भी, पार्टी की मौजूदगी कुछ सीटों पर दोनों गठबंधनों का वोट शेयर थोड़ा प्रभावित कर सकती है। इसी बीच विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) के दौरान मतदाता नाम हटाए जाने की शिकायतें कई जिलों से आई हैं। मिश्रा के मुताबिक, करीब 2.5 लाख नाम पहले हटाए गए थे, हालांकि अभी तक क्षेत्रवार आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं।
निर्णायक मुकाबले की उलटी गिनती शुरू
प्रचार थमने के साथ अब सभी दल मतदान की तैयारी में जुट गए हैं। NDA नीतीश कुमार के शासन रिकॉर्ड और महिला वोट बैंक पर भरोसा कर रहा है, जबकि महागठबंधन तेजस्वी यादव के रोजगार और नकद सहायता वादों को अपनी ताकत मान रहा है। यह मुकाबला अब पूरी तरह संतुलित दिख रहा है। जातीय समीकरण, महिला मतदाताओं की पसंद और आख़िरी समय की लामबंदी— यही तय करेंगे कि बिहार चुनाव 2025 के पहले चरण में कौन बढ़त हासिल करेगा।

