
अमेरिका की पेनल्टी टैरिफ में दो दिन शेष, आखिरी मिनट का चमत्कार ही दे सकता है राहत
निर्यातक असमंजस में हैं, क्योंकि भारत ने वाशिंगटन के साथ बातचीत जारी रखते हुए भी अपना रुख कड़ा कर लिया है, तथा तीसरी लॉबिंग फर्म को भी शामिल कर लिया है; देखना है कि 27 अगस्त क्या लेकर आएगा ?
US India Tariff: अमेरिका की ओर से भारत पर 25% की अतिरिक्त दंडात्मक टैरिफ (जो कि पहले से ही लागू 25% की जवाबी टैरिफ के ऊपर है) लागू होने में अब केवल दो दिन बचे हैं। लेकिन इस बीच राहत की कोई ख़ास उम्मीद नहीं दिख रही है, जब तक कि अंतिम समय पर कोई “चमत्कार” न हो जाए।
रूस से तेल खरीद पर विवाद
भारत और अमेरिका दोनों ने ही रूस से तेल आयात के मुद्दे पर अपनी-अपनी स्थिति को और कड़ा कर लिया है। हालांकि, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यह भरोसा दिलाया है कि बातचीत पूरी तरह बंद नहीं हुई है — “संवाद जारी है, दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है और आगे देखेंगे कि यह कहाँ पहुँचती है।”
लॉबिंग के लिए नई फर्म
वॉशिंगटन से खबर है कि भारत ने अमेरिका प्रशासन से अपने पक्ष को और मज़बूती से रखने के लिए एक नई लॉबिंग फर्म नियुक्त की है। अमेरिकी न्याय विभाग में हाल ही में दाख़िल दस्तावेज़ों के अनुसार, वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास ने पूर्व सीनेटर डेविड विटर की फर्म Mercury Public Affairs के साथ समझौता किया है।
यह अनुबंध अल्पकालिक है, जो 15 अगस्त से 15 नवंबर 2025 तक चलेगा। इस दौरान भारत को हर महीने 75,000 डॉलर का भुगतान करना होगा।
यह उन दो अन्य लॉबिंग फर्मों से अलग है, जिन्हें भारत वर्षों से नियुक्त किए हुए है —
SHW Partners LLC (पूर्व ट्रम्प सलाहकार जेसन मिलर के नेतृत्व में) के साथ सालाना 1.8 मिलियन डॉलर का अनुबंध,
और BGR Associates को हर महीने 50,000 डॉलर का भुगतान।
ट्रम्प का कड़ा रुख
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जो अपने सख़्त व्यापार सलाहकार पीटर नवारो को पहले ही भारत के ख़िलाफ़ खड़ा कर चुके हैं, अब उन्होंने अपने क़रीबी सहयोगी सर्जियो गोर को भारत का नया राजदूत नामित किया है।
ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया Truth Social पर लिखा:
“दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र (दक्षिण एशिया) के लिए यह ज़रूरी है कि वहाँ मेरा ऐसा प्रतिनिधि हो, जिस पर मैं पूरी तरह भरोसा कर सकूँ, जो मेरे एजेंडे को आगे बढ़ाए और हमें अमेरिका को फिर महान बनाए में मदद करे।”
भारत ने अभी तक इस नियुक्ति पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। अमेरिकी सीनेट की मंजूरी के बाद ही गोर औपचारिक रूप से राजदूत बनेंगे। तब तक वे व्हाइट हाउस में Presidential Personnel Office के निदेशक बने रहेंगे। नए कार्यभार में उन्हें दक्षिण और मध्य एशिया के मामलों में विशेष दूत की ज़िम्मेदारी भी मिलेगी।
उपराष्ट्रपति का बयान
रविवार (24 अगस्त) को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने भी स्पष्ट किया कि अमेरिका जल्दबाज़ी में अपना रुख़ बदलने वाला नहीं है। वॉशिंगटन में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत पर 25% की यह अतिरिक्त दंडात्मक टैरिफ इसलिए लगाई है ताकि रूस को उसके तेल निर्यात से होने वाली आमदनी को रोका जा सके। जब तक रूस-यूक्रेन युद्ध का गतिरोध बना है, यह टैरिफ़ जारी रहेगी।
भारत का पलटवार: कृषि और डेयरी बाज़ार नहीं खुलेगा
भारत ने भी अपने रुख को सख्त कर लिया है। भारत ने साफ़ किया है कि वह अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए न तो अपना कृषि और डेयरी बाज़ार खोलेगा, न ही रूस से तेल खरीदना बंद करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की सुरक्षा का वादा किया है। उन्होंने कहा कि भारत इस चुनौती का सामना आत्मनिर्भरता से करेगा — उर्वरक, जेट इंजन, ईवी बैटरियों जैसी वस्तुओं का देश में ही निर्माण होगा। साथ ही, जीएसटी का बोझ घटाकर आम लोगों की जेब में अधिक पैसा छोड़ा जाएगा।
जयशंकर का तर्क
विदेश मंत्री जयशंकर लगातार भारत के रूस से तेल आयात का बचाव कर रहे हैं। रविवार शाम को एक कारोबारी कार्यक्रम में उन्होंने अमेरिका और यूरोप की “दोहरी नीति” पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा:
चीन रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक है।
यूरोपियन देश रूस से सबसे अधिक एलएनजी (Liquefied Natural Gas) खरीदते हैं।
फिर अमेरिका और यूरोप भारत से परिष्कृत तेल उत्पाद क्यों खरीदते हैं, जिनमें रूसी तेल इस्तेमाल हुआ है?
जयशंकर ने कहा — “अगर आपको भारत से तेल या परिष्कृत उत्पाद खरीदने में समस्या है, तो मत खरीदिए। कोई आपको मजबूर नहीं कर रहा। लेकिन हक़ीक़त यह है कि यूरोप खरीद रहा है, अमेरिका खरीद रहा है। अगर पसंद नहीं है, तो खरीदना बंद कर दीजिए।”
भारतीय निर्यातकों की परेशानी
अमेरिका की इस टैरिफ़ से भारतीय निर्यातक बड़ी मुसीबत में हैं। उनके पास अभी इंतज़ार करने और केंद्र सरकार से राहत पैकेज की उम्मीद रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
एक निर्यातक ने बताया कि सरकार ने उन्हें 25,000 करोड़ रुपये के पैकेज का भरोसा दिया है, जिसमें —
“निर्यात प्रोत्साहन योजना” के तहत 10,000 करोड़ रुपये से अधिक,
और “निर्यात दिशा योजना” के तहत 14,500 करोड़ रुपये से अधिक की मदद शामिल है।
केंद्र ने लोकसभा में बताया कि अमेरिका का 50% टैरिफ़ भारत के लगभग 48.2 अरब डॉलर के निर्यात को प्रभावित करेगा। यह 2024 में अमेरिका को भारत के कुल 87.34 अरब डॉलर निर्यात का लगभग 55% है।
हालाँकि, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयाँ, परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद जैसे कई हाई-टेक निर्यात अमेरिका की “छूट सूची” में हैं।
सबसे ज़्यादा नुकसान रोजगार देने वाले क्षेत्रों को होगा —
वस्त्र उद्योग,
रत्न और आभूषण,
चमड़ा और जूता उद्योग।
इन क्षेत्रों में ऑर्डर पहले ही रुक गए थे, यहाँ तक कि 7 अगस्त को लागू 25% जवाबी टैरिफ़ से पहले भी। हालांकि, पहले से भेजे गए माल को अमेरिका पहुँचने के लिए 17 सितंबर तक का संक्रमणकाल मिला है।
निर्यात पर असली असर अक्टूबर में साफ़ होगा। अभी तक यह पता नहीं कि 25% जवाबी टैरिफ लागू होने से पहले निर्यातकों ने कितनी एडवांस बुकिंग कर ली थी। वाणिज्य मंत्रालय इस तरह का बारीक डेटा नहीं देता।
मंत्रालय के ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि कुल माल निर्यात (सभी देशों के लिए) जुलाई 2024 में 34.7 अरब डॉलर से बढ़कर जुलाई 2025 में 37.24 अरब डॉलर हो गया (7.3% वृद्धि)। अप्रैल-जुलाई 2024 के 144.76 अरब डॉलर के मुकाबले अप्रैल-जुलाई 2025 में यह 149.2 अरब डॉलर रहा (3% वृद्धि)।
विकल्प तलाशना आसान नहीं
निर्यात को विविधता देना सुनने में जितना आसान लगता है, उतना वास्तव में है नहीं। यूरोपीय और अन्य विकसित देशों में निर्यात करना कठिन है क्योंकि वहाँ के मानक बेहद सख़्त हैं —
गुणवत्ता,
ऊर्जा स्रोत (कार्बन उत्सर्जन),
श्रम मानक,
और ऑडिटिंग प्रक्रियाएँ।
पिछले सप्ताह वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने भी माना कि मुक्त व्यापार समझौते (FTA) अब और जटिल होते जा रहे हैं, क्योंकि इनमें सिर्फ़ व्यापार ही नहीं बल्कि श्रम, पर्यावरण, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), और सरकारी खरीद जैसे गैर-व्यापारिक मुद्दे भी शामिल हो रहे हैं।
संसद समिति की सिफ़ारिश
वित्त पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट (19 अगस्त 2025 को संसद में प्रस्तुत) में सिफ़ारिश की कि भारत को अपनी निर्यात रणनीति का पुनर्गठन करना चाहिए। इसमें विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) की प्रतिस्पर्धात्मकता पर ज़्यादा ध्यान देना और बाज़ारों का अधिक विविधीकरण शामिल हो।
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सुझाव कागज़ पर अच्छा भले लगे, पर मौजूदा “टैरिफ संकट” का तात्कालिक समाधान नहीं है।
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