बीजेपी के मैनिफेस्टो 2024 में एविएशन सेक्टर पर जोर,हकीकत के कितने करीब
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बीजेपी के मैनिफेस्टो 2024 में एविएशन सेक्टर पर जोर,हकीकत के कितने करीब

बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र 2024 में कमर्शियल एयरक्रॉफ्ट में जोर देने का फैसला किया है. लेकिन क्या यह सच्चाई के करीब है. क्या भारत उतना निवेश कर सकेगा.


आम चुनाव 2024 के लिए बीजेपी ने जो संकल्प पत्र जारी किया है उसे मोदी की गारंटी के नाम से भी जाना जा रहा है. उस संकल्प पत्र में एविएशन सेक्टर में भारत को वैश्विक शक्ति बनाने की बात लिखी गई है. खासतौर से एविएशन सेक्टर में मेंटिनेंस, रिपेयर और ऑपरेशंस का हब बनाने का जिक्र है. लेकिन क्या यह वास्तव में संभव है. मोदी की गारंटी में पैसेंजर एयरक्रॉफ्ट को विकसित करने के साथ एयरोस्पेस मैन्यूफैक्चरिंग के लिए पॉलिसी बनाने की बात है. लेकिन सवाल है कि क्या यह सिर्फ आदर्श बात है या इसमें व्यवहारिकता भी है.


सारस का अनुभव

कमर्सियल एयरक्रॉफ्ट सारस के निर्माण की दिशा में करीब 30 साल बीत चुके हैं, लेकिन सारस को पंख नहीं लग पाया है. यही नहीं फंड की कमी के साथ पॉलिसी चेंज की वजह से इंडियन एयरफोर्स में भी इसे शामिल करने का सपना पूरा नहीं हो सका है. द नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज ने 19 सीटर सारस का डिजाइन किया था, इसके दो प्रोटोटाइप भी बने हुए हैं. लेकिन अलग अलग रिपोर्ट के मुताबिक प्रोडक्शन की कीमत 30 मिलियन डॉलर यानी करीब 250 करोड़ रुपए हैं. हर एक एयरक्रॉफ्ट की कीमत 50 करोज है. इस प्रोजेक्ट को मौजूदा बीजेपी सरकार नहीं बल्कि साल 1991 में जमीन पर लाया गया था.

क्या जमीन पर उतारा जा सकता है प्रोजेक्ट

इस प्रोजेक्ट को अभी भी अमलीजामा पहनाया जा सकता है. छोटे कमर्सियल एयरक्रॉफ्ट का निर्माण भी किया जा सकता है. हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि ड्रोनियर, एंब्रेयर और एटीआर से मिलने वाली चुनौती के बीच खरीदार के तौर पर दूसरे देशों को ढूंढना भी कठिन है.बीजेपी द्वारा कमर्शियल जेट मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट गठित करने का सपना पूरा हो सकता है क्योंकि एचएएल की तरफ से जरूरी उपकरणों और एयर बस और बोइंग को डोर की सप्लाइ की जा रही है. यह सुनने में अच्छा लगता है कि कमर्सियल एयरक्रॉफ्ट बनाने की जरूरत है. बोइंग और एयरबस को 1.6 बिलियन डॉलर के पार्ट की जरूरत पड़ती हैं, करीब 10 कंपनियां ,सीधे तौर पर इन्हें पार्ट्स की सप्लाइ करती हैं. जबकि 90 फीसद एमएसएमई के अधीन है.

बड़े निवेश की जरूरत

पूर्ण तौर पर कमर्सियल एयरक्रॉफ्ट बनाने में जो ए 320 और बी 737 का मुकाबला कर सके उसके लिए बड़े निवेश की जरूरत पड़ती है. उदाहरण के लिए बोइंग और एयरबस दोनों रिसर्च और डेवलपमेंट पर करीब 15 से 20 बिलियन डॉलर खर्च करती हैं. करीब 10 साल पहले सीआईआई- पीडब्ल्यू की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने अगले 15 से 20 वर्षों में 200 बिलियन से लेकर 300 बिलियन डॉलर निवेश करना होगा. इसके साथ ही मौजूदा समय में कमर्शियल एयरक्राफ्ट के निर्माण में होने वाले खर्च को भी शामिल करना होगा.

उदाहरण के लिए बी 787 ड्रीमलाइनर के विकास में आने वाला खर्च अनुमानित तौर पर 5.5 बिलियन डॉलर है. लेकिन इसे बाजार में लाने में 20 साल लग गए और इस तरह से कुल खर्च 22 बिलियन डॉलर पर जा पहुंची. इसी तरह से एयरबस ए 350 की कीमत लगभग 10 बिलियन डॉलर है. और यह तब है जब इनके पास बुनियादी सुविधाओं की कमी नहीं है. इसमें कोई दो मत नहीं कि एयरोस्पेस, डिफेंस और स्पे साइंस में भारत किसी से पीछे नहीं है. लेकिन कमर्शियल एयरक्रॉफ्ट के निर्माण में अनुभव की कमी है. भारत के पास जो औद्योगिक आधार है वो मिलिट्री एयरक्रॉफ्ट, स्पेस व्हीकल के लिए है जिसका कमर्शियल एयरक्रॉफ्ट की डिजाइन से कोई नाता नहीं है.

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