BRICS बनाम डोनाल्ड ट्रंप, क्या उभरती शक्तियां दिखा पाएंगी दम?
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BRICS बनाम डोनाल्ड ट्रंप, क्या उभरती शक्तियां दिखा पाएंगी दम?

ट्रंप की टैरिफ धमकी के बीच BRICS समूह अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने की कगार पर है, लेकिन भारत की भूमिका और अंदरूनी मतभेद इसके लिए बाधा बन रहे हैं।


जैसे-जैसे दुनिया में बहुपक्षीय संस्थाएं कमजोर हो रही हैं और भू-राजनीतिक तनाव तेज़ हो रहे हैं, उभरती अर्थव्यवस्थाओं के संगठन BRICS पर एक बार फिर वैश्विक नजरें टिकी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समूह को एंटी-अमेरिकन बताते हुए उस पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी है। इस कदम ने BRICS को एक नए और निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है। क्या यह समूह अमेरिकी एकतरफावाद का विश्वसनीय विकल्प बन सकता है? जिनेवा के वरिष्ठ पत्रकार और वैश्विक व्यापार विशेषज्ञ डी. रवि कंठ ने इस पर विस्तृत विश्लेषण दिया।

ट्रंप को BRICS से इतनी चिढ़ क्यों है?

ट्रंप की नाराजगी को अमेरिका के वैश्विक दबदबे में गिरावट के संदर्भ में समझना जरूरी है। जैसे-जैसे अमेरिकी प्रभुत्व कम हो रहा है, वैसे-वैसे दक्षिण-दक्षिण सहयोग के किसी भी प्रयास को अमेरिकी वर्चस्व के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। विशेषकर डॉलर के वैश्विक व्यापार में प्रभुत्व को चुनौती देने की चर्चाएं अमेरिका को असहज कर रही हैं।


जहां पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति चुपचाप इन समूहों को कमजोर करते थे, ट्रंप खुलेआम आक्रामक रणनीति अपनाते हैं। BRICS पर प्रस्तावित टैरिफ किसी आर्थिक तर्क पर नहीं बल्कि इस विश्वास पर आधारित है कि ये देश अमेरिका से अनुचित लाभ ले रहे हैं। जबकि ऐतिहासिक रूप से वैश्विक व्यापार प्रणाली का सबसे बड़ा लाभार्थी अमेरिका स्वयं रहा है।

क्या BRICS समूह एकजुट रह सकता है?

यह सवाल जितना ज़रूरी है, उतना ही जटिल भी। BRICS के प्रत्येक सदस्य की अमेरिका के साथ अलग-अलग तरह की रणनीतिक साझेदारी है। भारत, उदाहरण के लिए, अमेरिका के और निकट आया है और अक्सर उसकी विदेश नीति से मेल खाता है, जो BRICS की एकता को प्रभावित करता है।

भारत अभी भी डॉलर आधारित लेन-देन प्रणाली पर टिका हुआ है, जबकि बाकी सदस्य स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने पर जोर दे रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्री और रिजर्व बैंक गवर्नर ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल भारत डॉलर प्रणाली से नहीं हटेगा, जिससे BRICS में वैकल्पिक भुगतान ढांचे की कोशिशें धीमी पड़ी हैं।चीन की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक पकड़ भी कई सदस्यों के लिए चिंता का विषय है, लेकिन अगर सभी देश व्यावहारिक रुख अपनाएं, तो ये अंतर्विरोध दूर किए जा सकते हैं।

क्या BRICS डॉलर पर निर्भरता खत्म कर सकता है?

हालांकि अभी BRICS किसी साझा मुद्रा की योजना नहीं बना रहा, लेकिन समूह के भीतर आपसी व्यापार को स्थानीय मुद्राओं में करने की कोशिश की जा रही है। इससे डॉलर पर निर्भरता घटेगी और अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ सुरक्षा मिलेगी विशेषकर रूस जैसे देशों को। हालांकि चीनी युआन का बढ़ता प्रभुत्व कुछ देशों को असहज कर सकता है, लेकिन ट्रंप की आर्थिक राष्ट्रवादी नीतियों के चलते डॉलर की साख भी सवालों के घेरे में है। इसलिए दीर्घकालिक रूप से इस बदलाव की संभावना न केवल बनी हुई है, बल्कि धीरे-धीरे यह एक व्यवहारिक दिशा बनती जा रही है।

अब तक BRICS की उपलब्धियां क्या रही हैं?

हालांकि यह समूह अभी अपनी पूर्ण क्षमता तक नहीं पहुंचा है, लेकिन दक्षिण-दक्षिण व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना, भले ही सीधे BRICS की नहीं है, लेकिन इसने कई विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है। BRICS ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रणनीतिक संवाद के लिए जगह दी है, भले ही वो कानूनी संधियों के माध्यम से बाध्यकारी न हो।

BRICS और वैश्विक असंतुलन

विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे मंचों पर BRICS देश अक्सर अपने रुख को समन्वित करते हैं। हालांकि मतैक्य हमेशा नहीं बनता, लेकिन इनकी उपस्थिति विकासशील देशों की वार्ताओं की दिशा तय करती है। जब हर सदस्य देश आंतरिक संकट और बाहरी दबाव झेल रहा हो, तब सामूहिक कार्रवाई कठिन हो जाती है। लेकिन जैसे-जैसे अमेरिकी प्रभाव कमजोर हो रहा है, BRICS की एकजुटता की संभावना मजबूत हो रही है।

भारत की अध्यक्षता से क्या उम्मीदें?

2026 में भारत BRICS की अध्यक्षता संभालेगा, लेकिन विशेषज्ञ रवि कंठ ज्यादा उम्मीद नहीं करते। उन्होंने कहा कि भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान भी ज्यादातर उपलब्धियां केवल ब्रांडिंग और सुर्खियों तक सीमित थीं। भारत द्वारा पश्चिम और इज़राइल से जुड़े व्यापारिक गलियारों को प्राथमिकता देना, BRICS ढांचे को दरकिनार करना दर्शाता है कि भारत की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। हालिया BRICS सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने BRICS का नाम तक नहीं लिया, जबकि ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला ने समूह को एकजुट करने का खुली अपील की।

BRICS के लिए चुनौतीपूर्ण लेकिन निर्णायक दौर

BRICS इस समय एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ इसे अपनी प्रासंगिकता, एकजुटता और वास्तविक रणनीतिक ताकत को साबित करना होगा। ट्रंप की आक्रामकता और अमेरिकी वर्चस्व की लड़खड़ाहट इसे नया मौका दे रही है। लेकिन अंदरूनी अंतर्विरोध और अलग-अलग प्राथमिकताएं इसकी राह में बड़ी बाधाएं भी हैं।

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