जीएसटी फंड का दुरुपयोग, मुआवजा भुगतान में देरी से बढ़ा केंद्र-राज्य तनाव
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जीएसटी फंड का दुरुपयोग, मुआवजा भुगतान में देरी से बढ़ा केंद्र-राज्य तनाव

केंद्र ने 3.1 लाख करोड़ जीएसटी उपकर ग़लत जगह खर्च किया, राज्यों को मुआवजे में देरी और कानून का उल्लंघन भी किया।


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हाल के दिनों में जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) की दरों में कटौती को लेकर खूब शोर-शराबा हुआ। लेकिन इस हंगामे के बीच शायद ही किसी ने यह ध्यान दिया हो कि केंद्र सरकार लगातार जीएसटी (राज्यों को मुआवजा) अधिनियम, 2017 का उल्लंघन कर रही है। न केवल आंकड़ों की परतों में सच्चाई को छिपाया जा रहा है, बल्कि राज्यों को राजस्व से वंचित भी किया जा रहा है।

सबसे बड़ा और स्पष्ट मामला है जीएसटी मुआवजा उपकर (Compensation Cess) का दुरुपयोग, जो राज्यों को उनके कर राजस्व की भरपाई के लिए बनाया गया था। याद रहे, 2017 में राज्यों ने अपने नौ अप्रत्यक्ष कर छोड़ दिए थे, जिन्हें केंद्र के आठ अप्रत्यक्ष करों के साथ मिलाकर जीएसटी में शामिल किया गया।

3.1 लाख करोड़ का गबन

कानून कहता है कि जीएसटी उपकर से जो राशि वसूली जाएगी, उसे गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स कम्पेन्सेशन फंड में जमा किया जाएगा और केवल राज्यों को मुआवजा देने के लिए उपयोग होगा।लेकिन बजट दस्तावेज़ बताते हैं कि केंद्र ने 2018-2025 के बीच 3.1 लाख करोड़ रुपये इस फंड में जमा करने के बजाय भारत की संचित निधि (CFI) में डाल दिए।यह गड़बड़ी आठ में से छह वित्तीय वर्षों में हुई (सिवाय 2020-21 और 2022-23 के)।

आंकड़ों में गड़बड़ी

सामान्य स्थिति में उपकर से जितनी वसूली (लाल बार) होती, उतना ही मुआवजा फंड से राज्यों को भुगतान (पीला बार) होता। लेकिन कहीं भी यह मेल नहीं खाता।

2017-18 में यह अंतर 21,466 करोड़ था।

2018-19 में यह 25,806 करोड़ तक बढ़ गया।

कुल मिलाकर, 47,272 करोड़ रुपये राज्यों तक नहीं पहुंचे।

यह जीएसटी कानून का सीधा उल्लंघन था।

सीएजी की आपत्ति और केंद्र की अनदेखी

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने 2020 में इसे स्पष्ट रूप से अवैध कार्रवाई बताया और केंद्र से पैसा लौटाने को कहा।लेकिन 2019-20 में केंद्र ने और आगे बढ़कर 83,503 करोड़ रुपये गबन कर लिए। यानी 95,553 करोड़ वसूले, पर केवल 12,050 करोड़ रुपये ही फंड में डाले।

ऋण के नाम पर मुआवजा

महामारी के समय 2020 में राज्यों ने संसद में कहा कि सीएफआई से उन्हें मुआवजा दिया जाए। पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ़ इनकार किया। इसके बजाय केंद्र ने RBI से 1.1 लाख करोड़ (2020-21) और 1.6 लाख करोड़ (2021-22) का कर्ज लिया और इसे राज्यों को ऋण के रूप में दिया।बाद में 2022 में कानून में संशोधन कर यह कर्ज खुद चुकाने का निर्णय लिया गया और उपकर वसूली की समय सीमा मार्च 2026 तक बढ़ा दी गई।

भुगतान में देरी और अधूरी पारदर्शिता

जीएसटी मुआवजा योजना 5 साल (मई 2022 तक) चलनी थी। लेकिन केंद्र ने यह दावा करते हुए सुर्खियां बटोरीं कि 31 मई 2022 तक पूरा मुआवजा दे दिया गया।हकीकत यह है कि 2024 और 2025 में भी राज्यों को भुगतान जारी रहा और 2026 में भी 500 करोड़ रुपये देने का अनुमान है। यानी भुगतान 4 साल से ज्यादा देर तक खिंचा।इसके अलावा बजट दस्तावेज़ों में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग आंकड़े दिए गए हैं, जिससे पूरी तस्वीर साफ़ नहीं हो पाती।

लगातार वित्तीय कुप्रबंधन

सीएजी की रिपोर्ट (2020) ने बताया कि 2018-19 में 35 तरह के उपकर और लेवी से 2,74,592 करोड़ रुपये जुटाए गए, लेकिन केवल 1,64,322 करोड़ ही निर्दिष्ट फंड में डाले गए।बाकी 40% यानी 1,10,270 करोड़ सीधे CFI में रखे गए।इसी तरह स्वास्थ्य व शिक्षा उपकर, स्वच्छ भारत उपकर, स्वच्छ ऊर्जा उपकर, सड़क अवसंरचना उपकर आदि को भी फंड में जमा करने के बजाय ग़लत जगह इस्तेमाल किया गया।

जीएसटी को "सहकारी संघवाद" का सर्वोत्तम उदाहरण बताया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यहां तक कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भी इसकी सराहना की थी। लेकिन हकीकत यह है कि केंद्र ने बार-बार राज्यों के हक़ को रोका, उपकर की राशि का दुरुपयोग किया और मुआवजे को ऋण का नाम देकर अपनी वित्तीय जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की।यह पूरा प्रकरण केवल वित्तीय गड़बड़ी नहीं, बल्कि सहकारी संघवाद की भावना को चोट पहुँचाने वाली गंभीर लापरवाही है।

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