
जीएसटी सुधारों पर राजनीतिक जंग: कांग्रेस बोली अभी बाकी है GST 2.0 का इंतज़ार
असली जीएसटी 2.0 का इंतज़ार अभी भी जारी है। क्या यह नया जीएसटी 1.5 (अगर इसे ऐसा कहा जा सके) निजी निवेश, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करेगा
Congress On GST : देश के अप्रत्यक्ष कर ढांचे जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) में बड़े बदलावों का ऐलान होते ही राजनीति गरमा गई है। केंद्र सरकार द्वारा किये गए इन सुधारों को जहाँ एक ओर “जीएसटी 2.0” की संज्ञा दी जा रही है, तो वहीं कांग्रेस ने इसे केवल “जीएसटी 1.5” करार देते हुए कई सवाल खड़े किये हैं।
सरकार का दावा – कर ढांचा होगा सरल
बुधवार को जीएसटी परिषद की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। इसके तहत साबुन, साइकिल, टीवी और स्वास्थ्य व जीवन बीमा जैसी आम उपयोग की वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर दरें घटा दी गईं। परिषद ने मौजूदा दरों को घटाकर अब केवल दो स्तरीय ढांचा – 5% और 18% अपनाने पर सहमति जताई।
वित्त मंत्री ने बैठक के बाद कहा कि ये सुधार उपभोक्ताओं और उद्योग दोनों के लिए राहत लाएंगे।
कांग्रेस का हमला – यह असली जीएसटी 2.0 नहीं
जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि मौजूदा बदलाव आधे-अधूरे हैं और इसलिए इन्हें “जीएसटी 2.0” नहीं बल्कि “जीएसटी 1.5” ही कहा जा सकता है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लंबे समय से जीएसटी 2.0 की वकालत करती रही है- जो दरों की संख्या घटाए, बड़े पैमाने पर उपभोग होने वाली वस्तुओं पर टैक्स की दरें कम करे, टैक्स चोरी, गलत वर्गीकरण और विवादों को न्यूनतम करे, इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (जहाँ इनपुट पर आउटपुट की तुलना में अधिक टैक्स लगता है) समाप्त करे, एमएसएमई पर प्रक्रियागत नियमों का बोझ कम करे और जीएसटी के दायरे का विस्तार करे।
केंद्रीय वित्त मंत्री ने कल शाम संवैधानिक निकाय जीएसटी परिषद की बैठक के बाद बड़े ऐलान किए। हालाँकि, जीएसटी परिषद की बैठक से पहले ही प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2025 के अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में इसके निर्णयों की सारगर्भित घोषणा कर दी थी। क्या जीएसटी परिषद अब केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है?
निजी खपत में कमी, निजी निवेश की सुस्त दरें और अंतहीन वर्गीकरण विवादों के बीच केंद्र सरकार को अब मानना पड़ा है कि जीएसटी 1.0 अपनी अंतिम सीमा तक पहुँच चुका है। दरअसल, जीएसटी 1.0 की डिज़ाइन ही त्रुटिपूर्ण थी, और कांग्रेस ने जुलाई 2017 में ही इस पर ध्यान दिला दिया था, जब प्रधानमंत्री ने अपना यू-टर्न लेकर इसे लागू करने का निर्णय लिया था। इसे गुड एंड सिंपल टैक्स कहा गया था, लेकिन यह ग्रोथ सप्रेसिंग टैक्स साबित हुआ।
कल के घोषणाओं ने सुर्खियाँ बटोरीं क्योंकि प्रधानमंत्री पहले ही प्री-दीवाली डेडलाइन तय कर चुके थे। यह माना जा रहा है कि दर कटौती के लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचेंगे। हालाँकि, असली जीएसटी 2.0 का इंतज़ार अभी भी जारी है। क्या यह नया जीएसटी 1.5 (अगर इसे ऐसा कहा जा सके) निजी निवेश, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करेगा- यह देखना बाकी है। क्या इससे एमएसएमई पर बोझ कम होगा - यह तो समय ही बताएगा।
इस बीच, राज्यों की एक अहम मांग, जो कि सहकारी संघवाद की सच्ची भावना से की गई थी-यानी राजस्व की पूर्ण सुरक्षा के लिए पाँच और वर्षों तक मुआवज़ा अवधि का विस्तार -अभी भी अनसुलझी है। वास्तव में, दर कटौती के बाद इस मांग का महत्व और भी बढ़ गया है।
परिषद की भूमिका पर उठे सवाल
जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस भाषण का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने पहले ही परिषद के फैसलों की घोषणा कर दी थी। ऐसे में सवाल है कि क्या जीएसटी परिषद अब केवल एक औपचारिक संस्था बनकर रह गई है?
जीएसटी 1.0 पर पुराना विवाद
कांग्रेस ने यह भी दोहराया कि जुलाई 2017 में लागू किया गया जीएसटी 1.0 मूल रूप से त्रुटिपूर्ण था। तब इसे “गुड एंड सिंपल टैक्स” कहा गया था, लेकिन व्यवहार में यह “ग्रोथ सप्रेसिंग टैक्स” यानी विकास को दबाने वाला कर साबित हुआ।
राज्यों की मांग अभी भी अधर में
कांग्रेस ने केंद्र को यह भी याद दिलाया कि राज्यों ने सहकारी संघवाद की भावना से राजस्व क्षतिपूर्ति अवधि को पाँच और वर्षों तक बढ़ाने की मांग की थी। दर कटौती के बाद यह मुद्दा और गंभीर हो गया है, लेकिन अब तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है।
सरकार का दावा है कि सुधारों से उपभोक्ताओं को सीधा लाभ मिलेगा और निवेश को गति मिलेगी। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि असली जीएसटी 2.0 का इंतज़ार अभी बाकी है।
अब देखना होगा कि यह नया कर ढांचा निजी निवेश, खासकर विनिर्माण क्षेत्र और एमएसएमई को राहत दे पाएगा या नहीं।
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