Petrol - Diesel Price
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क्या पेट्रोल-डीजल के दामों में होगी कटौती?

कच्चे तेल के दामों में गिरावट से भारत को 1.8 लाख करोड़ की बचत, पर क्या जनता को मिलेगी राहत?

कच्चे तेल की कीमतें गिरकर चार साल के सबसे निचले स्तर 60.23 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर पहुँच गई है.


इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें इस हफ्ते घटकर प्रति बैरल 60.23 अमेरिकी डॉलर हो गईं, जो पिछले 4 वर्षों में सबसे कम हैं. इसकी वजह वैश्विक आपूर्ति में वृद्धि की आशंका है, जबकि मांग को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है, यदि कच्चे तेल की कीमतों में नरमी का रुझान बना रहता है, तो कच्चे तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) के आयात पर भारत 1.8 लाख करोड़ रुपये तक की बचत कर सकता है. रेटिंग एजेंसी ICRA ने ये जानकारी दी है.

भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 85% से अधिक आयात के माध्यम से पूरा करता है. वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने कच्चा तेल खरीदने पर 242.4 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए थे. घरेलू उत्पादन मांग का लगभग आधा ही पूरा कर सका, जिसके चलते LNG के आयात पर भी 15.2 अरब डॉलर खर्च हुए.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें इस सप्ताह की शुरुआत में चार साल के निचले स्तर, यानी 60.23 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गईं. इसकी वजह यह है कि वैश्विक आपूर्ति बढ़ रही है, जबकि मांग की स्थिति अनिश्चित है। ब्रेंट क्रूड और अमेरिका का वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड फरवरी 2021 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गए, हालांकि बाद में यूरोप और चीन में मांग बढ़ने और अमेरिका में उत्पादन घटने के संकेतों के चलते कीमतें बढ़कर 62.4 डॉलर प्रति बैरल तक आ गईं. इसके बावजूद ये दरें मार्च 2024 की तुलना में 20 डॉलर प्रति बैरल कम हैं, जब आम चुनावों से पहले पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 2 प्रति प्रति लीटर की कटौती की गई थी.

ICRA का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025-26 (अप्रैल 2025 से मार्च 2026) में कच्चे तेल की औसत कीमतें 60-70 डॉलर प्रति बैरल के बीच बनी रहेंगी. इसके चलते अपस्ट्रीम कंपनियों की कमाई लगभग 25,000 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है. अपस्ट्रीम कंपनियां वे हैं जो कच्चे तेल का उत्पादन करती हैं. हालांकि, इस स्थिति में कच्चे तेल के आयात पर 1.8 लाख करोड़ रुपये और LNG के आयात पर 6,000 करोड़ रुपये की बचत होगी.

ICRA ने कहा कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के लिए ऑटो-ईंधन पर रिफाइनिंग मजबूत बने रहेंगे, जबकि एलपीजी पर होने वाली अँडर रिकवरी में कमी आएगी. ग्लोबल टैरिफ और उनके विकास पर प्रभाव को लेकर अनिश्चितता के बीच, OPEC+ द्वारा मई 2025 से प्रतिदिन 4.11 लाख बैरल और जून 2025 से फिर से 4.11 लाख बैरल उत्पादन बढ़ाने की घोषणा ने तेल की कीमतों को 31 मार्च के करीब 77 डॉलर प्रति बैरल से घटाकर 60-62 डॉलर कर दिया है.

ICRA ने कहा कि यदि कच्चा तेल 60-70 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहता है, तो वित्त वर्ष 2025-26 में अपस्ट्रीम कंपनियों का कर पूर्व लाभ ₹25,000 करोड़ तक कम हो सकता है. इसके बावजूद, घरेलू अपस्ट्रीम कंपनियों की कैपिटल एक्सपेंडिचर जारी रहेगा. ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के लिए ऑटो-ईंधन पर रिफाइनिंग मार्जिन 2.5-4 रुपये प्रति लीटर की दीर्घकालिक औसत से ऊपर रहेगा और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के साथ एलपीजी पर अंडर रिकवरी कम होने की संभावना है.

पेट्रोल और डीजल की कीमतें बाजार द्वारा नियंत्रित होती हैं, एलपीजी की कीमतें सरकार तय करती है. तेल कंपनियां इसे लागत से काफी कम दरों पर बेचती हैं और इस नुकसान की भरपाई सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप में की जाती है. एलपीजी पर कम और सरकार द्वारा मिलने वाली सब्सिडी डाउनस्ट्रीम कंपनियों के मुनाफे को बढ़ाने का काम करेंगी भले ही 8 अप्रैल 2025 से पेट्रोल डीजल पर 2 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी गई हो. हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट के कारण रिफाइनरियों को इन्वेंट्री हानि हो सकती है. इसके अलावा, एक्साइज ड्यूटी में आगे और बढ़ोतरी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.

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