
बैकफुट पर ट्रंप, एक्सपोर्टर ले रहे राहत की सांस, अब भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड वार्ता पर नजर
ट्रंप ने चीन को छोड़ भारत समेत दूसरे देशों के लिए 90 दिनों तक के लिए रेसिप्रोकल टैरिफ को होल्ड पर डाल दिया है
US Tariff Pause: अपने टैरिफ अटैक से पूरी दुनिया को झकझोर देने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस मुद्दे को लेकर अब बैकफुट पर आ गए हैं. ट्रंप ने चीन को छोड़कर बाकी सभी देशों को राहत देते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ के लागू होने पर 90 दिनों के लिए रोक लगा दी है. चीन पर उन्होंने रेसिप्रोकल टैरिफ को बढ़ाकर 125 फीसदी कर दिया है. ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ पर 90 दिनों के लिए रोक लगाने के बाद भारत के एक्सपोर्टर्स फिलहाल के लिए बेहद राहत महसूस कर रहे हैं.
फिलहाल टल गया वैश्विक आर्थिक तनाव!
रेसिप्रोकल टैरिफ के लागू होने पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत करते हुए फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स ऑर्गनाइजेशन (FIEO) के सीईओ और डीजी डॉ अजय सहाय ने कहा, हम सभी काफी राहत महसूस कर रहे हैं. अमेरिका को होने वाले उत्पादन में अब कोई रुकावट नहीं आएगी. रेसिप्रोकल टैरिफ को 90 दिनों के लिए टालना कूटनीतिक वार्ताओं और व्यापार समझौतों के लिए बातचीत की दिशा में एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगा. ये फैसला तत्कालिक रूप से आर्थिक तनाव को टालने के लिए एक रणनीतिक विराम को दर्शाता है, जिससे समस्याओं का अब समाधान निकाला जा सकेगा. अजय सहाय ने कहा, भारत पहले ही अमेरिका के साथ द्विपक्षीय ट्रेड एग्रीमेंट के माध्यम से शामिल हो चुका है, जिससे उसे अगले 90 दिनों के भीतर अंतिम रूप देने में मदद मिलेगी.
ट्रंप के ऐलान से एक्सपोटर्स को राहत
एक्सपोर्टर्स इसलिए भी राहत महसूस कर रहे हैं क्योंकि रेसिप्रोकल टैरिफ के चलते भारत से आयात करने वाले अमेरिका के आयातकों ने अपने ऑर्डर को होल्ड पर डाल दिया था. उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि आयात पर ज्यादा टैरिफ देना होगा जिससे आयातित चीजें महंगी हो जाएगी जिसका भार उपभोक्ताओं पर पड़ेगा ऐसे में सेल्स पर असर पड़ेगा. उनके सामने ये प्रश्न उठ खड़ा हुआ था कि उपभोक्ता ऊंची कीमत देने को तैयार होगा या नहीं. क्लोथिंग मैन्युफैक्चरर्रस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चीफ मेंटॉर राहुल मेहता ने कहा, ये तात्कालिक राहत है. खासतौर से उन लोगों को राहत मिलेगी जिनका शिपमेंट तैयार था क्योंकि उन्हें अब अतिरिक्त खर्च (टैरिफ) के लिए भुगतान नहीं करना पड़ेगा. लेकिन 90 दिनों के बाद क्या होगा ये भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड बातचीत पर निर्भर करेगा. इस फैसले के वापस लेने के कारणों पर राहुल मेहता ने कहा, ट्रंप के सलाहकारों ने उन्हें ये सलाह दी होगी इसका अमेरिका पर दुष्प्रभाव पड़ेगा. अमेरिका के उपभोक्ताओं में नाराजगी बढ़ सकती है तो राजनीतिक मुद्दा बन सकता है और सहयोगी भी इससे निराश होंगे.
अमेरिका को सता रहा अलग-थलग पड़ने का डर
जीटीआरआई ( Global Trade Research Initiative) के अजय श्रीवास्तव ने कहा, पहले लगा कि यह सभी देशों पर टैक्स लगाने की कोशिश है, लेकिन असली टारगेट फिर से चीन ही है जैसे पहले व्यापार युद्ध में था. अमेरिका ने बाकी देशों पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया ताकि वह अकेला न पड़ जाए लेकिन फिर भी सख्त दिखे. ट्रंप ने कहा कि 75 देश बातचीत को तैयार हैं, लेकिन यूरोप, कनाडा और चीन पहले ही जवाब दे चुके हैं. अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, अमेरिका ने खुद माना कि उसे नुकसान हो सकता है. घरेलू महंगाई और बाहर की नाराज़गी के कारण यह नीति अमेरिका के अपने लोगों और कारोबारियों को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है.
सोच समझकर करना चाहिए अमेरिका से डील
भारत के सामने मौजूद विकल्पों पर अजय श्रीवास्तव ने कहा, भारत को अमेरिका से बड़े समझौते नहीं करना चाहिए क्योंकि अमेरिका भारत से ऐसी मांगे कर सकता है जो किसानों, छोटी दुकानों और देश की सुरक्षा के लिए नुकसानदायक हों, जैसे जीएम फूड लाना, दवाओं के दाम बढ़ाना,और ई-कॉमर्स कंपनियों को सीधी बिक्री की छूट देना. उन्होंने कहा, सिर्फ 90% इंडस्ट्रियल गुड्स पर टैक्स हटाने वाला सीमित "ज़ीरो-टू-ज़ीरो" समझौता बेहतर रहेगा लेकिन कार और खेती से जुड़ी चीजें इससे बाहर रखनी चाहिए. उन्होंने कहा, भारत को चीन के साथ मिलकर काम करना चाहिए क्योंकि केमिकल्स, मशीन और इलेक्ट्रॉनिक सामान में दोनों देश मिलकर उत्पादन कर सकते हैं इससे निर्यात भी बढ़ेगा और भारत में रोजगार सृजन भी होगा.