Economic Survey: AI भारत के विकास में करेगा चुनौतियां पेश, उच्च विकास दर को बनाए रखने में होगी दिक्कत
भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन का आर्थिक सर्वेक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करता है.
Economic Survey 2024: भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंथा नागेश्वरन का आर्थिक सर्वेक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, न कि केवल देश की गुलाबी तस्वीर पेश करता है. जैसे कि चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि का पूर्वानुमान 6.5-7 प्रतिशत है. जबकि, बाजार की अपेक्षाएं काफी हाई हैं. यह आर्थिक सर्वेक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में एक गंभीर नजरिया पेश करता है.
दूसरे सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत के सामने आज जो चुनौतियां हैं, वे 1980 और 2015 के बीच चीन के उदय के समय से बहुत अलग हैं. भारत आज भू-राजनीति, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. वहीं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के आगमन से निम्न, अर्ध और उच्च कौशल स्तर पर काम करने वाले श्रमिकों पर निगेटिव असर पड़ सकता है. इससे आने वाले वर्षों में भारत के उच्च विकास दर के लिए बाधाएं पैदा होंगी. वित्तीय प्रदर्शन के मामले में कॉर्पोरेट क्षेत्र का प्रदर्शन कभी इतना अच्छा नहीं रहा. 33,000 से अधिक कंपनियों के परिणाम बताते हैं कि वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 23 के बीच भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र का टैक्स -पूर्व लाभ चौगुना हो गया.
वहीं, केंद्र सरकार ने पूंजी निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए सितंबर 2019 में करों में कटौती की. वित्त वर्ष 19 और वित्त वर्ष 23 के बीच निजी क्षेत्र के गैर-वित्तीय सकल स्थायी पूंजी निर्माण में संचयी वृद्धि वर्तमान मूल्यों में 52 प्रतिशत है. इस दौरान, सामान्य सरकार (जिसमें राज्य शामिल हैं) में संचयी वृद्धि 64 प्रतिशत है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि अंतर बहुत बड़ा नहीं लगता है. लेकिन डेटा को विभाजित करने पर एक अलग तस्वीर उभरती है. मशीनरी और उपकरण तथा बौद्धिक संपदा उत्पादों में निजी क्षेत्र के जीएफसीएफ में वित्त वर्ष 23 तक चार वर्षों में संचयी रूप से केवल 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि, आवास, अन्य भवन और संरचनाओं में जीएफसीएफ में 105 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. एम एंड ई और आईपी उत्पादों में निवेश की धीमी गति भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण हिस्सेदारी बढ़ाने की खोज में देरी करेगी, भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार में देरी करेगी और उच्च गुणवत्ता वाली औपचारिक नौकरियों की केवल एक छोटी संख्या का सृजन करेगी.
आरबीआई मौद्रिक नीति समिति का इस वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि का नवीनतम पूर्वानुमान 7.2 प्रतिशत है. वित्त वर्ष 2020 को समाप्त होने वाले दशक के दौरान भारत ने 6.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से वृद्धि की है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह कमोबेश अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं को दर्शाता है. यह कभी-कभी चर्चा में आने वाले 8 प्रतिशत या उससे भी कम वृद्धि दर है और चीन द्वारा अपने उच्च-विकास काल के दौरान हासिल की गई दोहरे अंकों की वृद्धि दर से भी बहुत कम है. सर्वेक्षण में निर्यात में वृद्धि की उम्मीद है. लेकिन निजी पूंजी निर्माण की संभावनाओं के बारे में यह सतर्क है. क्योंकि अतिरिक्त क्षमता वाले देशों से सस्ते आयात की आशंका है. ऐसा लगता है कि यह मांग की कमजोर स्थितियों के बारे में चिंताओं को साझा नहीं करता है. उपभोग और निवेश के कारण घरेलू मांग की स्थिति मजबूत है और निकट भविष्य में औद्योगिक उत्पादन के सुचारू विस्तार के लिए अनुकूल है. सर्वेक्षण यह भी कहता है कि मानसून की प्रगति ग्रामीण मांग के पुनरुद्धार का समर्थन करेगी. लेकिन यह इंगित करता है कि मानसून का मौसम अभी भी कुछ दूर है. यह मानता है कि उपभोग की मांग को एक और बढ़ावा वास्तविक मजदूरी में वृद्धि से मिलेगा. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों और घरेलू खाद्य कीमतों में कमी के साथ मुद्रास्फीति में नरमी आने की उम्मीद है.
भारत के विकास में चीन द्वारा हासिल की गई दोहरे अंकों की वृद्धि दर को देखने की संभावना नहीं होने का एक बड़ा कारण यह है कि चीन की मजबूत वृद्धि वैश्वीकरण के चरम पर थी और अब माहौल बहुत अलग है. यही कारण है कि सर्वेक्षण कहता है कि भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था को भारी काम करना है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि रिकवरी को बनाए रखने के लिए घरेलू मोर्चे पर कड़ी मेहनत करनी होगी. क्योंकि व्यापार, निवेश और जलवायु जैसे प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर सहमति बनाना बेहद मुश्किल हो गया है.
सर्वेक्षण कहता है कि निजी क्षेत्र को नेतृत्व करना चाहिए. इसमें कहा गया है कि जहां सामान्य सरकारी सकल स्थिर पूंजी निर्माण (GFCF) वित्त वर्ष 21 और वित्त वर्ष 23 के बीच संचयी रूप से 42 प्रतिशत बढ़ा. वहीं गैर-वित्तीय निजी क्षेत्र के समग्र GFCF में 51 प्रतिशत की वृद्धि हुई. लेकिन साथ ही मशीनरी और उपकरण और बौद्धिक संपदा उत्पादों में निजी क्षेत्र के GFCF में वित्त वर्ष 23 तक के चार वर्षों में संचयी रूप से केवल 35% की वृद्धि हुई है. इस बीच, 'आवास, अन्य भवन और संरचनाओं' में इसके GFCF में 105% की वृद्धि हुई है.
इसमें कहा गया है कि आईपी उत्पादों में निवेश की धीमी गति से भारत की जीडीपी में विनिर्माण हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश में देरी होगी. भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार में देरी होगी और अन्यथा की तुलना में उच्च गुणवत्ता वाली औपचारिक नौकरियों की संख्या में कमी आएगी. सर्वेक्षण निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र से निवेश जारी रखने का आग्रह करता है. सर्वेक्षण इंगित करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ते कार्यबल की जरूरतों को पूरा करने के लिए गैर-कृषि क्षेत्र में 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है. यह मौजूदा योजनाओं जैसे पीएलआई (5 वर्षों में 60 लाख रोजगार सृजन), मित्रा टेक्सटाइल योजना (20 लाख रोजगार सृजन), मुद्रा आदि को पूरक बनाने का प्रस्ताव करता है. जबकि उनके कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है. इसके बाद यह कार्यबल को कुशल बनाने, एमएसएमई को बढ़ावा देने और कृषि प्रसंस्करण और देखभाल अर्थव्यवस्था में रोजगार का विस्तार करने की बात करता है.
लेकिन यह इस बात पर भी जोर देता है कि चूंकि रोजगार का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र में पैदा होता है. इसलिए यह कॉर्पोरेट क्षेत्र का कर्तव्य है कि वह आम जनता को रोजगार मुहैया कराए. सर्वेक्षण में कहा गया है कि अतिरिक्त मुनाफे में डूबे भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए यह समझदारी भरा कदम है कि वह रोजगार सृजन की अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से ले. क्योंकि ऐसा नहीं है कि निजी क्षेत्र जरूरत पड़ने पर लोगों को रोजगार नहीं देगा.