Economic Survey: मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में गिरावट, निजी क्षेत्र से योगदान की अपील
manufacturing sector: चाइना प्लस 1 या मेक-इन-इंडिया को लेकर कोई चर्चा नहीं है. सर्वेक्षण में भारत के विनिर्माण क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बहुत कम सुझाव दिए गए हैं.
Economic Survey 2025: भारत लगातार यह समझने की कोशिश कर रहा है कि वैश्विक निर्यात में उसका योगदान क्यों कम बना हुआ है? खासकर जब घरेलू विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) में लगातार गिरावट देखी जा रही है. आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने स्वीकार किया कि चालू वित्तीय वर्ष में भी घरेलू विनिर्माण में वृद्धि धीमी पड़ी है. उन्होंने सरकार, उद्योग जगत, शिक्षा क्षेत्र और अनुसंधान संगठनों से भारत को विनिर्माण क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनाने के लिए मिलकर काम करने की अपील की. हालांकि, सर्वेक्षण में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई ठोस सुझाव नहीं दिया गया है.
मेक इन इंडिया पीछे छूटा
पिछली रिपोर्टों के विपरीत, इस बार ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति का कोई विशेष उल्लेख नहीं किया गया है. इस रणनीति के तहत कई विकसित देश चीन के वर्चस्व को सीमित करने के लिए वैकल्पिक विनिर्माण स्थल तलाश रहे हैं. लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में इसे कोई प्राथमिकता नहीं दी गई. ‘मेक इन इंडिया’ अभियान जिसे नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख पहल माना जाता था, इस पर भी इस बार कोई विशेष चर्चा नहीं की गई.
भारत का वैश्विक विनिर्माण प्रदर्शन
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) के विश्व विनिर्माण मूल्य वर्धित (MVA) सूचकांक के अनुसार, भारत का विनिर्माण योगदान 0.2 से भी कम है. जबकि चीन का लगभग 1 के करीब है. GDP में औद्योगिक उत्पादन का योगदान न केवल चीन से कम है, बल्कि अन्य निम्न, मध्यम और उच्च आय वाले देशों से भी सबसे कम है. अगर भारत का औद्योगिक उत्पादन इतना कम रहेगा तो वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?
विनिर्माण में गिरावट और निर्यात में कमजोरी
2024-25 की जुलाई-सितंबर तिमाही में औद्योगिक वृद्धि घटकर 3.6% रह गई. निर्माण गतिविधियों और खनन कार्यों में मंदी देखी गई. जिसमें असमय बारिश ने स्थिति को और खराब कर दिया. सीमेंट उत्पादन क्षमता का एक तिहाई हिस्सा वित्त वर्ष 2024 में निष्क्रिय पड़ा रहा. जिससे यह स्पष्ट हुआ कि निर्माण और बुनियादी ढांचे में सरकारी खर्च भी धीमा पड़ गया है. अप्रैल-नवंबर 2024 में भारत इस्पात (Steel) का शुद्ध आयातक बन गया. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कीमतों के बीच बढ़ते अंतर के कारण इस्पात निर्यात घट गया. हालांकि, भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है, फिर भी इसकी उत्पादन क्षमता का 40% से अधिक भाग अप्रयुक्त रहा.
टेक्सटाइल सेक्टर की चुनौतियां
भारत का वस्त्र उद्योग (Textile Industry) कुल वस्तु निर्यात (Merchandise Exports) में 8% का योगदान देता है. इसने भी पिछले वित्तीय वर्ष में भारी गिरावट देखी. सर्वेक्षण में बताया गया कि इस उद्योग की सबसे बड़ी समस्या छोटे और असंगठित उद्यमों की अधिकता है, जिससे लॉजिस्टिक्स लागत बढ़ रही है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बहुत सीमित रहा और कौशल की भारी कमी बनी हुई है. सरकार ने इस क्षेत्र में उत्पादन और निर्यात प्रतिस्पर्धा को सुधारने के लिए बहुत कम ठोस कदम उठाए हैं.
सकारात्मक विकास
सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive - PLI Scheme) ने कुछ क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव डाला है. जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स, व्हाइट गुड्स (White Goods – घरेलू उपकरण जैसे रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन आदि. विशेष रूप से स्मार्टफोन निर्माण में सुधार देखा गया. जहां अब 99% उत्पादन स्थानीय स्तर पर हो रहा है.
R&D में निवेश
सरकार के नीतिगत समर्थन के बावजूद अभी भी भारत का अनुसंधान एवं विकास (R&D) खर्च GDP के प्रतिशत के रूप में इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर 22 देशों की सूची में सबसे कम है. (वर्ल्ड बैंक, 2020). चीन, ब्राजील और थाईलैंड जैसे उभरते बाजार भारत से अधिक R&D पर निवेश कर रहे हैं. सर्वेक्षण में यह भी बताया गया कि अमेरिका में निजी क्षेत्र R&D खर्च का 70% योगदान देता है. जबकि भारत में यह अभी भी सरकारी संस्थानों पर अधिक निर्भर है. गूगल और अमेज़न जैसी कंपनियों के उदाहरण देते हुए सर्वेक्षण ने निजी क्षेत्र से अधिक निवेश करने की अपील की है.
आगे की राह: भारत को क्या करने की जरूरत?
विनिर्माण क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना– सरकारी नीति और निजी निवेश को मजबूत करना होगा. टेक्सटाइल और इस्पात जैसे पारंपरिक उद्योगों का पुनरुद्धार– कौशल विकास और लॉजिस्टिक्स सुधार की जरूरत. अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश बढ़ाना– निजी कंपनियों को अधिक योगदान देना होगा. PLI और मेक इन इंडिया को अधिक प्रभावी बनाना– सस्ते और प्रभावी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नए सुधार लागू करने होंगे. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की स्थिति मजबूत करना– घरेलू उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग करना जरूरी.