अभूतपूर्व प्रोत्साहन के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र क्यों हो रहा है विफल ?
x

अभूतपूर्व प्रोत्साहन के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र क्यों हो रहा है विफल ?

आर्थिक मंदी और कम मांग के अलावा, कई नीतिगत और प्रशासनिक मुद्दे हैं; यहाँ कुछ पर गहराई से चर्चा की गई है


Slow Manufacturing: FY25 में भारत की विकास दर को लेकर आए आँकड़े गुमराह करने वाले, असल में अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है। 30 मई को जारी किए गए वित्त वर्ष 2025 (FY25) के लिए भारत की GDP के प्रोविजनल अनुमान भ्रामक तस्वीर पेश करते हैं। वास्तविकता यह है कि देश की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है। FY24 में 9.2% रही GDP वृद्धि FY25 में गिरकर 6.5% हो गई है – यानी 2.7 प्रतिशत अंकों की गिरावट।

भारतीय रिज़र्व बैंक (29 मई) और मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन (30 मई) द्वारा FY26 के लिए भी विकास दर 6.5% अनुमानित की गई है – जो यही दर्शाता है कि विकास दर इसी स्तर पर ठहरी रहेगी।


धीमी होती अर्थव्यवस्था

कोविड के बाद FY22 में विकास दर चरम पर 9.7% थी (FY21 में -5.8% से उछाल)। अब यह घटकर 6.5% हो गई है, जो महामारी पूर्व औसत (FY15-FY20 का 6.8%) से भी कम है।

इसका कारण रूस-यूक्रेन, इज़राइल-फलस्तीन युद्ध या अमेरिका द्वारा छेड़ी गई टैरिफ वॉर जैसे बाहरी झटके नहीं हैं। चीन, जो अमेरिका के टैरिफ का प्रमुख निशाना है, ने FY24 की चौथी तिमाही और FY25 की पहली तिमाही में अपेक्षाओं से बेहतर 5.4% वृद्धि दर्ज की।

चीन की इस वृद्धि को घरेलू मांग और औद्योगिक उत्पादन से बल मिला। यदि भारत में भी यही स्थिति होती, तो विकास की तस्वीर अलग होती।


भारत का निर्माण क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग) क्यों नहीं उभर रहा?

पिछले 11 वर्षों में सरकार द्वारा भारी प्रोत्साहनों के बावजूद भारत का निर्माण क्षेत्र प्रदर्शन करने में असफल रहा है। प्रमुख सरकारी पहलों में शामिल हैं:

  1. 'मेक इन इंडिया' (2014): FDI को उदार बनाना, एकल-खिड़की मंज़ूरी, अनुपालन भार घटाना, Jan Vishwas अधिनियम (2023) के ज़रिए अपराध-मुक्तिकरण, और आधारभूत ढांचे को बढ़ावा देना।
  2. संरक्षणवादी नीतियाँ: विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू कंपनियों की रक्षा के लिए आयात शुल्क और गैर-टैरिफ बाधाएँ।
  3. कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती (2019): भारी राजकोषीय घाटे के बावजूद टैक्स दर घटाई गई।
  4. PLI-DLI योजनाएँ (2020): लगभग ₹2.96 लाख करोड़ का बजट।
  5. मुद्रास्फीति और मांग में गिरावट के चलते RBI द्वारा रेपो और CRR में कटौती (2025)।

इसके बावजूद:

  • FY24 में मैन्युफैक्चरिंग GVA में 12.3% की वृद्धि FY25 में गिरकर केवल 4.5% रह गई, जो कृषि क्षेत्र (4.6%) से भी कम है।
  • FY20-FY25 के दौरान मैन्युफैक्चरिंग GVA की औसत वृद्धि दर 4.2% रही, जो कृषि के 4.7% से कम है।
  • FY20 में पहली बार औद्योगिक GVA वृद्धि नकारात्मक रही।


औद्योगिक क्षेत्र की उपेक्षा और नाकामी

अर्थशास्त्रीय सर्वेक्षण (2019-20) में FY20 की नकारात्मक औद्योगिक वृद्धि के कारणों में केवल क्रेडिट प्रवाह में कमी, मांग में गिरावट और वैश्विक व्यापार अनिश्चितता को बताया गया। लेकिन गहराई से कोई समीक्षा नहीं हुई।

2019 के कॉर्पोरेट टैक्स कट के बाद सरकार ने राज्यों को जीएसटी मुआवज़ा देने से भी मना कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप सरकार को FY21 और FY22 के लिए राज्यों को उधार लेकर भुगतान करना पड़ा।

2025 तक आते-आते वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निजी निवेश न होने को लेकर हाथ खड़े कर दिए और कहा “इसका जवाब मुझे नहीं देना है”।


निवेश का संकट और औद्योगिक उत्पादन में मंदी

  • FY20 के बाद से मैन्युफैक्चरिंग IIP वृद्धि औसतन 2.5% रही, जो FY13-FY19 के औसत 4% से कम है।
  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) भी 3.8% से घटकर 2.9% रह गया।
  • निर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग दर (CU) Q3 FY22 से Q2 FY25 तक औसतन 74.3% रही, जो उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं है।


नीतिगत और प्रशासनिक विफलताएँ

1. रणनीति और योजना का अभाव

2011 की राष्ट्रीय निर्माण नीति को 2014 में 'मेक इन इंडिया' में बदला गया। नई नीति लाने की कोशिश दिसंबर 2023 में छोड़ दी गई और अधूरी PLI-DLI योजना पर ज़ोर दिया गया।

इसके अलावा, 'मेक इन इंडिया' और संरक्षणवादी नीतियाँ एक-दूसरे से टकराती हैं। घरेलू उत्पादकों को आयात से बचाते हुए निर्यात बढ़ाने की कोशिश की जा रही है – जो विरोधाभासी है।

2. निर्णयों में तर्क और प्रमाण का अभाव

2019 में टैक्स कट का कोई आर्थिक औचित्य नहीं था। अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के टैक्स कट के प्रभाव का अध्ययन पहले ही बता चुका था कि इससे निवेश नहीं बढ़ता, बल्कि कंपनियाँ शेयर बायबैक करती हैं – भारत में भी यही हुआ।

RBI की रिपोर्ट (2019-20) के अनुसार, यह पैसा पूंजी निवेश में नहीं गया बल्कि नकद भंडार और ऋण भुगतान में चला गया।

3. कोई समीक्षा नहीं, न कोई सुधार

PLI योजनाओं की 4 समीक्षाएँ हो चुकी हैं, फिर भी सार्वजनिक नहीं की गईं। मार्च 2025 में PLI 3.0 योजना आई, जो केवल कंपोनेंट असेंबली (जैसे मोबाइल और सोलर) को बढ़ावा देती है – जिससे निर्यात आंकड़े बढ़े हुए दिखते हैं पर वास्तविक मूल्यवर्धन नहीं होता।


गुजरात को फोकस देना:
Micron प्लांट को ₹1.9 अरब डॉलर (₹15,000 करोड़) की सब्सिडी दी गई, जिससे सिर्फ 5,000 नौकरियाँ बनेंगी – यानी हर नौकरी की लागत ₹3.2 करोड़।

राज्यों की शिकायतें: महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु ने आरोप लगाए हैं कि केंद्र सरकार पीएलआई परियोजनाएँ गुजरात को दिलवाने में पक्षपात कर रही है।


इलेक्ट्रोरल बॉन्ड और पीएलआई:
अप्रैल 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 18 दवा कंपनियों ने सरकार से पीएलआई अनुदान मिलने के बाद राजनीतिक दलों को ₹522 करोड़ के बॉन्ड दिए।

4. नवाचार, R&D और कौशल की भारी कमी

R&D खर्च:
2008 में भारत का R&D खर्च GDP का 0.8% था, जो 2020 में गिरकर 0.6% रह गया। वैश्विक औसत 2.5%, अमेरिका का 3.4%, और चीन का 2.4% है।


कौशल प्रशिक्षण में गिरावट:
2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 4.4% युवा (15-29 वर्ष) औपचारिक तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त हैं और 16% अनौपचारिक स्रोतों से। यानी केवल 21% प्रशिक्षित हैं – जबकि विकसित देशों में यह लगभग 100% होता है।


‘स्किल इंडिया’ की विफलता:
2008 में NSDC के तहत शुरू हुई यह योजना 2015 में नए नाम से फिर शुरू की गई लेकिन कोई ठोस सुधार नहीं हुआ। 2017 की शारदा प्रसाद समिति की रिपोर्ट (अब सार्वजनिक नहीं) में बताया गया कि ₹2500 करोड़ खर्च कर भी युवाओं को उद्योग की ज़रूरतों के अनुसार कौशल नहीं मिला।

2025 में सरकार ने ₹8,800 करोड़ की लागत से इसका पुनर्गठन शुरू किया, लेकिन विवरण अभी उपलब्ध नहीं है।

सरकारी आँकड़े और नीतियाँ भले ही तेज़ विकास की कहानी पेश करें, लेकिन वस्तुतः भारत की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है। निर्माण क्षेत्र की गिरती वृद्धि, निवेश की सुस्ती, नीति-निर्माण में पारदर्शिता और समीक्षा का अभाव, और कौशल तथा नवाचार की कमी इसकी प्रमुख वजहें हैं।

अगर स्थिति में जल्द सुधार नहीं हुआ, तो ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों के माध्यम से आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की बातें केवल नारे बनकर रह जाएँगी।


Read More
Next Story