
ट्रंप की टैरिफ नीति पर FIEO ने जताई चिंता, भारत का निर्यात प्रभावित होने की आशंका
US-India trade: अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने के बाद फियो ने क्षेत्रीय प्रभावों पर चिंता जताई है। साथ ही सरकार से रणनीतिक कार्रवाई और सहायता का आग्रह भी किया है।
Trump Tariffs: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित नए टैरिफ (आयात शुल्क) का प्रभाव भारतीय निर्यातकों पर साफ़ देखा जा रहा है। 27 अगस्त 2025 से प्रभावी होने जा रहे इन टैरिफों के तहत भारतीय मूल की वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा, जिससे कुल शुल्क 50% तक पहुंच जाएगा। ऐसे में भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (FIEO) ने अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने पर गहरी चिंता जताई है। संगठन का कहना है कि इस फैसले से भारत का सबसे बड़े निर्यात बाजार अमेरिका में भारतीय वस्तुओं की पहुंच गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
फियो के अध्यक्ष एससी. रल्हन ने इस फैसले को भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ा झटका बताया। उन्होंने कहा कि इससे अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात पर गंभीर असर पड़ सकता है। वर्तमान में भारत से अमेरिका को होने वाले लगभग 55 प्रतिशत निर्यात — जिनकी कुल कीमत करीब 47 से 48 अरब अमेरिकी डॉलर है — अब 30 से 35 प्रतिशत मूल्य निर्धारण नुकसान की श्रेणी में आ जाएंगे। इस नुकसान के चलते भारतीय उत्पाद चीन, वियतनाम, कंबोडिया, फिलीपींस और अन्य दक्षिण-पूर्वी व दक्षिण एशियाई देशों के प्रतिस्पर्धी उत्पादों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। फियो ने आग्रह किया है कि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार को जल्द रणनीतिक कदम उठाने होंगे।
तिरुपुर, नोएडा और सूरत के कपड़ा तथा परिधान विनिर्माताओं ने बढ़ती लागत प्रतिस्पर्धा के बीच उत्पादन रोक दिया है। यह क्षेत्र वियतनाम और बांग्लादेश जैसे कम लागत वाले प्रतिद्वंद्वियों के सामने पिछड़ रहा है। समुद्री खाद्य, विशेष रूप से झींगा के लिए, अमेरिकी बाजार भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा अवशोषित करता है और टैरिफ वृद्धि से भंडार में कमी, आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान और किसानों पर संकट आने का खतरा है।
रल्हन ने दोहराया कि निर्यात के अन्य श्रम-प्रधान क्षेत्रों - चमड़ा, चीनी मिट्टी, रसायन, हस्तशिल्प, कालीन आदि में खासकर यूरोपीय, दक्षिण पूर्वी और मैक्सिकन उत्पादकों के मुकाबले, उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता में भारी गिरावट आ रही है। देरी, ऑर्डर रद्द होना और लागत लाभ के ह्रास का इन क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
वर्तमान उभरते परिदृश्य को देखते हुए फियो प्रमुख ने आग्रह किया कि तत्काल सरकारी सहायता की आवश्यकता है, जिसमें कार्यशील पूंजी और तरलता बनाए रखने के लिए ब्याज सहायता योजनाओं और निर्यात ऋण सहायता को बढ़ावा देना शामिल है। इसे और अधिक समर्थन देने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों के सहयोग से एमएसएमई पर विशेष ध्यान देते हुए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों से इस संबंध में विशेष निर्देश के साथ ऋण की कम लागत और आसान उपलब्धता की आवश्यकता है।
रल्हन ने ऋणों के मूलधन और ब्याज के भुगतान पर एक वर्ष की अवधि तक रोक लगाने का भी आग्रह किया। इसके अतिरिक्त मौजूदा सीमा में 30 प्रतिशत की स्वतः वृद्धि और ईसीएलजीएस की तर्ज पर कोलैटेरल मुक्त ऋण देने पर भी ज़ोर दिया जा सकता है। क्योंकि इससे सरकारी खजाने पर ज़्यादा बोझ डाले बिना इन कंपनियों के बोझ को कम करने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा पीएलआई योजनाओं का विस्तार, बुनियादी ढांचे को मज़बूत करना और यूरोपीय संघ ओमान, चिली, पेरू, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी), अफ्रीका और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों के साथ श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए शीघ्र उत्पादन के प्रावधान के साथ त्वरित व्यापार समझौतों (एफटीए) के माध्यम से प्रतिस्पर्धात्मकता और आक्रामक बाज़ार विविधीकरण को मज़बूत करने के लिए कोल्ड-चेन/भंडारण परिसंपत्तियों में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि, अमेरिका के साथ तत्काल राजनयिक जुड़ाव के लिए बातचीत की संभावना का लाभ उठाना अभी भी महत्वपूर्ण है। एक अन्य दृष्टिकोण उन्नत वैश्विक ब्रांडिंग के माध्यम से ब्रांड इंडिया और नवाचार को बढ़ावा देना, गुणवत्ता प्रमाणन में निवेश करना और भारतीय वस्तुओं को वैश्विक स्तर पर अधिक आकर्षक बनाने के लिए निर्यात रणनीति में नवाचार को शामिल करना हो सकता है।
फियो आजीविका की रक्षा, वैश्विक व्यापार संबंधों को मज़बूत करने और इस अशांत दौर से निपटने के लिए निर्यातकों, उद्योग निकायों और सरकारी एजेंसियों के बीच त्वरित, समन्वित कार्रवाई की अपील करता है। अब उठाए गए कदम यह निर्धारित करेंगे कि भारत कितनी प्रभावी रूप से बाहरी झटकों का सामना कर पाता है और वैश्विक निर्यात परिदृश्य में अपनी उपस्थिति को दोबारा स्थापित कर पाता है।