CIBIL Score
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केडिट हिस्ट्री ना होने की आड़ में नहीं ठुकराया जा सकता है किसी व्यक्ति के लोन के आवेदन को

RBI ने अपने मास्टर डायरेक्शन में कहा है कि पहली बार लोन लेने वालों के आवेदन को केवल इसलिए ना ठुकराया जाए केवल क्योंकि उनके पास क्रेडिट हिस्ट्री नहीं है.


सरकारी या निजी बैंक, होम लोन देने वाली हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां या कर्ज देने वाली कोई भी वित्तीय संस्थान केवल इसलिए किसी कर्ज लेने वालों के आवेदन को ठुकरा नहीं सकती हैं क्योंकि उनका कोई पुराना क्रेडिट हिस्ट्री नहीं है. वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है सेंट्रल बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 6 जनवरी 2025 को अपने मास्टर डायरेक्शन में क्रेडिट संस्थानों (Credit Institutions) को सलाह दी है कि पहली बार लोन लेने वाले ग्राहकों के आवेदन सिर्फ इसलिए खारिज न किया जाया क्योंकि उनके पास क्रेडिट हिस्ट्री नहीं है.

लोन मंजूरी के लिए न्यूनतम क्रेडिट स्कोर तय नहीं

वित्त मंत्रालय ने 18 अगस्त 2025 को संसद में प्रश्नकाल में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने गाइडलाइन में कहा है कि सभी बैंकों और क्रेडिट संस्थानों को किसी भी व्यक्ति को लोन देने से पहले उसकी क्रेडिट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट जिसमें क्रेडिट स्कोर होता है उसेजरूर देखना चाहिए. यह रिपोर्ट किसी व्यक्ति की साख और उसकी लोन चुकाने की क्षमता को बताता है. लेकिन RBI ने यह भी साफ किया है कि लोन मंजूर करने के लिए कोई न्यूनतम क्रेडिट स्कोर तय नहीं किया गया है. बैंक और लोन देने वाले दूसरे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन अपनी नीतियों और व्यावसायिक फैसलों के आधार पर निर्णय लेते हैं. क्रेडिट स्कोर इसमें सिर्फ एक कारक है, बाकी कई बातों को भी देखा जाता है. RBI ने यह भी सलाह दी है कि पहली बार लोन लेने वालों के आवेदन को केवल इसलिए ना ठुकराया जाए केवल क्योंकि उनके पास क्रेडिट हिस्ट्री नहीं है.

यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफेस पर हो रहा काम

दरअसल ऐसी शिकायतें मिली है जिसमें देखा गया है कि जिस व्यक्ति का कोई क्रेडिट हिस्ट्री नहीं है यानी उस व्यक्ति ने पूर्व में कोई लोन नहीं किया है या फिर उसके पास कोई क्रेडिट कार्ड नहीं है इसलिए कोई क्रेडिट हिस्ट्री नहीं होने के चलते सिबिल स्कोर नहीं होने के चलते वित्तीय संस्थान उसे कस्टमर्स को लोन देने से इंकार कर देते हैं. बैंकिंग सेक्टर के जानकार और वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर अश्वनी राणा ने कहा, किसी भी ऐसे ग्राहक जो पहली बार लोन लेने के लिए आवेदन कर रहे हैं उनके आवेदन को ठुकराया नहीं जा सकता है. कस्टमर्स के क्रेडिट हिस्ट्री जानने का CIBIL स्कोर के अलावा तरीका मौजूदा है जिसमें इनकम टैक्स रिटर्न और दूसरे बैंकों के बैंक स्टेटमेंट शामिल है. उन्होंने बताया कि यही वजह है कि सरकार यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफेस पर काम कर रही है जो CIBIL का विकल्प बन सकता है.

NFIR में होगी क्रेडिट और अन्य वित्तीय जानकारी

2023-24 के लिए पेश किए बजट में सरकार ने एक राष्ट्रीय वित्तीय सूचना रजिस्ट्री (National Financial Information Registry) बनाने की घोषणा की थी. यह एक केंद्रीकृत डेटाबेस होगा, जिसमें लोगों की क्रेडिट और अन्य वित्तीय जानकारी रखी जाएगी. इससे बैंकों और संस्थानों को किसी भी उधार लेने वाले की पूरी जानकारी देखकर सही आकलन करने में मदद मिलेगी. सरकार ने बताया था कि यह व्यवस्था RBI की सलाह से बनाई जाएगी. हालांकि सरकार ने भी स्पष्ट किया है कि फिलहाल, CIBIL (TransUnion CIBIL Limited) को बदलने की कोई योजना नहीं है.

क्रेडिट स्कोर पता करने का है कितना चार्ज?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भारत में क्रेडिट जानकारी का काम करने के लिए 4 कंपनियों के रजिस्ट्रेशन की अनुमति दी है जिसमें ट्रांसयूनियन सिबिल (TransUnion CIBIL), इक्विफैक्स (Equifax), एक्सपेरियन (Experian) और

क्रिफ हाईमार्क (CRIF High Mark) शामिल है. RBI के मुताबिक, कोई भी कंपनी किसी व्यक्ति को उसका क्रेडिट स्कोर देने के लिए अधिकतम 100 रुपये ही ले सकती है. साथ ही, RBI ने 1 सितंबर 2016 से यह नियम भी बनाया है कि अगर किसी व्यक्ति की क्रेडिट हिस्ट्री उनके पास उपलब्ध है तो साल में एक बार मुफ्त में पूरा क्रेडिट रिपोर्ट (क्रेडिट स्कोर सहित) ऑनलाइन देना होगा. आरबीआई के नियमों के मुताबिक, क्रेडिट रिपोर्ट चेक होने पर ग्राहक को SMS/ईमेल से सूचना देना अनिवार्य है. लोन डिफॉल्ट या किस्त लेट होने पर तुरंत अलर्ट भेजना जरूरी है.

CIBIL के जरिए बैंक तय करते हैं लोन देना है या नहीं

RBI का कहना है कि जब बैंक किसी को लोन देते हैं, तो वे कई बातों की जांच करते हैं. इसमें उधार लेने वाले की क्रेडिट हिस्ट्री (CIR रिपोर्ट) भी देखी जाती है, जो क्रेडिट सूचना कंपनियों (CICs) से मिलती है. लोन से जुड़े नियम अब काफी हद तक बैंकों की बोर्ड द्वारा बनाई गई नीतियों और RBI के सामान्य नियमों पर आधारित है. इस रिपोर्ट में यह जानकारी होती है कि कर्ज लेने वाले ने पहले लोन की किस्तें समय पर चुकाई हैं या देर से, कोई लोन सेटल किया है, दोबारा रीस्ट्रक्चर (Restructured) हुआ है या फिर लोन को राइट-ऑफ (Write-Off) किया गया है. ऐसी जानकारी से बैंक यह तय कर पाते हैं कि उधार लेने वाला व्यक्ति लोन चुकाने लायक है या नहीं और उन्हें सही निर्णय लेने में मदद मिलती है.

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