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सरकारी धन के वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंचने, गलत डेटा के चलते कल्याणकारी योजनाओं का 7% तक बढ़ जाता है बजट

NITI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर जिस पैमाने पर काम कर रहा है, ऐसा पहले नहीं था. जैसे डेटा की मात्रा बढ़ रही है, वैसे-वैसे यह जरूरी हो गया है कि डेटा की गुणवत्ता में भी उसी गति से सुधार आए चाहे वह आज का नया डेटा हो या दशकों पुराने रिकॉर्ड.


केंद्र सरकार हर वर्षों कल्याणकारी योजनाओं पर करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करती है. ये डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी का दौर है. लेकिन जरा सोचिए गलत या दोहराए गए लाभार्थी रिकॉर्ड के चलते देश के खजाने पर कितना बड़ा बोझ पड़ता होगा. इसके चलते कितना राजकोषीय नुकसान होता होगा. नीति आयोग के एक रिपोर्ट के मुताबिक, Fiscal Leakage यानी सरकारी पैसे के वास्तविक और निर्धारित लाभार्थियों तक नहीं पहुँचने या गलत या डुप्लीकेट लाभार्थियों के रिकॉर्ड के चलते कल्याणकारी योजनाओं पर किए जाने वाले खर्च का बजट 4-7 फीसदी तक बढ़ जाता है.

नीति आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर तेज रफ्तार से बढ़ रहा है. आज UPI हर महीने लाखों करोड़ रुपये का लेनदेन करता है, आधार अरबों पहचान सत्यापित करता है, और आयुष्मान भारत योजना 50 करोड़ नागरिकों तक पहुंच चुकी है. जैसे-जैसे डेटा की मात्रा बढ़ रही है, वैसे-वैसे यह जरूरी हो गया है कि डेटा की गुणवत्ता में भी उसी गति से सुधार आए चाहे वह आज का नया डेटा हो या दशकों पुराने रिकॉर्ड जिसका अभी भी इस्तेमाल किया जाता है. ये जरूरी है कि रिकॉर्ड सटीक, पूर्ण और अप-टू-डेट होने चाहिए. क्योंकि यदि एक भी अंक गलत हो जाए, तो पेंशन रुक सकती है या सब्सिडी गलत खाते में जा सकती है. अब डेटा क्वालिटी कोई तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि जन सेवा की पहली शर्त बन चुकी है. भारत में डेटा की गुणवत्ता जितनी बेहतर होगी उतनी ही डिजिटल गवर्नेंस मजबूत होगी.

NITI फ्रंटियर टेक हब की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर आज जिस पैमाने पर काम कर रहा है, वह एक दशक पहले कल्पना से भी परे था. अप्रैल 2025 में, UPI ने 17.89 अरब लेनदेन किए जिनकी कुल कीमत 23.9 लाख करोड़ रुपये थी जो कई मिडिल साइज वाली अर्थव्यवस्थाओं की मासिक GDP के बराबर है. वित्त वर्ष 2024-25 में आधार ने 27.07 अरब पहचान को सत्यापित किया. आयुष्मान भारत के तहत 36.9 करोड़ कार्ड जारी किए जा चुके हैं. लेकिन अगली चुनौती कवरेज नहीं, बल्कि डेटा की सटीकता है. ऐसे में केवल 5% भी रिकॉर्ड में खामी हो तो इसके चलते बड़ा नुकसान हो सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, डेटा की गुणवत्तता और सही पहचान अभियान के चलते PM-Kisan योजना से 1.71 करोड़ अपात्र नाम हटाए गए और सरकार को वित्त वर्ष 2023-24 में 9000 करोड़ रुपये की बचत हुई. दो सालों में 2. 3.5 करोड़ फर्जी LPG कनेक्शन हटाए गए जिससे 21,000 करोड़ रुपये की बचत हुई और 3. 1.6 करोड़ फर्जी राशन कार्ड हटाये जाने के चलते 10,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष अनुमानित बचत सरकार खजाने को हो रही है. 2017 में मिड-डे मील योजना से जुड़े एक अभियान में 4.4 लाख Ghost Students सामने आए, जो फर्जी तरीके से फंड ले रहे थे. एक राज्य में 2 लाख फर्जी नाम सिर्फ इसलिए हटे, क्योंकि बायोमेट्रिक अटेंडेंस अनिवार्य कर दी गई.

डिजिटल प्लेटफॉर्म का असली मोल तभी पता लगता है जब प्रत्येक रिकॉर्ड सही और पूर्ण. हर गलत अंक एक जीवन रुकवा सकता है, हर डुप्लिकेट दावा एक ईमानदार को बाहर कर सकता है. आधार नामांकन में एक गलत अंक के चलते पेंशन रुक सकती है. डुप्लिकेट मोबाइल नंबर के चलते अस्पताल क्लेम अटक सकता है. भूमि रिकॉर्ड में नाम की गलती से प्राकृतिक आपदा के बाद मुआवज़ा देर से मिलेगा. ऐसी लाखों गलतियाँ मिलकर हजारों करोड़ रुपये की बर्बादी और कीमती फैसलों में देरी का कारण बनती हैं. खराब डेटा की कीमत जीवन और धन दोनों को चुकानी पड़ती है.

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशक में भारत ने पहचान, भुगतान और रजिस्ट्रियों की बुनियाद रखी. अब आने वाली सेवाएं जैसे फार्म-क्रेडिट, पोर्टेबल स्किल सर्टिफिकेट, और AI आधारित हेल्थ अलर्ट — इन्हीं डेटा पर आधारित होंगी. यदि डेटा रिकॉर्डिंग सटीक हो, तो सेवाओं की लागत कम रहती है लेकिन रिकॉर्ड में त्रुटियां हैं, तो इससे परेशानी बढ़ सकती है.

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